सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

१०० प्रतिशत मतदान और रामदेव बाबा

सवाल 100 प्रतिशत मतदान का हैं ,अभी रामदेव बाबा ने भष्ट्राचार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया हैं ,अन्ना हजारे ने तो चुनाव सुधार और भाष्ट्रचारी नेताओं को वापस बुलाने की मांग को लेकर बहुत सशक्त आन्दोलन चलाया ,फिर भी कोई भी आन्दोलन आज सफल होता नहीं दिख रहा हैं ,परन्तु आंशिक सफलता मिलने की उम्मीद से लोग इस तरह की आन्दोलन से जुड जाते हैं ,समाज में कुछ चेतना जागृत होती हैं ,कुछ लोग आंशिक सफलता से खुश भी हो जाते हैं,एक बार मैंने गायत्री परिवार के कार्यकलापों पर ध्यान केंद्रित किया था ,श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखे गये कुछ साहित्य का अध्ययन ही नहीं मनन भी किया ,उन्होंने एक छोटी पुस्तिका महाकाल का पुकार सुनो में सप्त क्रान्ति का सुन्दर विवरण प्रस्तुत करने के साथ -साथ यह भी लिखा कि युग सन्धी बेला में संघर्षात्मक काल से हम गुजर रहे हैं इस संघर्ष में यदि हमारे परिजन भय से आगे नहीं आते हैं तो वे मेरे परिजन कदापि नहीं हो सकते ,इसे मुर्त रूप देने के लिए युग निर्माणयोजना ,मथुरा के लीलापत जी से मेरी कई बार फोन पर बातचित हुई ,मैंने जब संघर्ष के बारे में पुछना शुरू किया तो वे मायुस हो कर बार-बार कहते थे कि आज हमारे परिजन संघर्ष के नाम से कतराते हैं,द्वीप प्रज्वलित कर यज्ञ में अधिक ध्यान दिया जा रहा है ,रचनात्मक कार्य में भी कम रूचि हैं पर यज्ञ,हवन ,आदी में सभी मस्त है ,इतनी स्पष्टवादिता मैंने बहुत कम देखा सुना हैं ,लीलापत जी आखरी समय तक संघर्ष के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते रहे एक बार तो मुझसे फोन में यह भी कहने लगे कि मै बुढापे में अन्याय के खिलाफ सडक की लडाई तक करने निकल जाता हूँ ,पर परिजन बहुत कम आते है,प्रश्न यह हैं कि इस तरह की स्थिति क्यों तैयार हो जाता हैं ?
नेताजी सुभाष जब तक संघर्ष के लिए बात नहीं करते थे तब तक कांग्रेस के लिए बहुत अच्छे थे ,जबसे अंग्रेजों के खिलाफ लडने की बातें करने लगे तब से बहुत खराब होते गए ,नौबत यहॉं तक आ गया कि कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें दल से निष्काषित कर दिए , दोबार कांग्रेस के अध्यक्ष होने के बाद भी संघर्ष के नाम से नेताजी उस समय के कांग्रेसियों के नजर मे खटकने लगे थें । सबकुछ पाने की चाहत तो हैं पर कुछ खोने की किंमत पर नहीं ,बीना संघर्ष के सबकुछ पाने का जो मजा उस समय के नेताओं ने प्राप्त किया था,आज तक उसी रास्ते में चलकर संघर्ष के रास्ते को बदनाम करने का षडयंत्र जारी हैं ,एक कहावत भी बन गया कि नेताजी,भगत बहुत अच्छे,पर मेरे घर में पैदा न होकर पडौसी के घर पैदा हो । क्या सम्पूर्ण क्रान्ति के पुरोधा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन के अन्तिम पडाव को हमने नहीं देखा ? अभी 1974 की तो बात हैं ,सभी विरोधी दलों को एकसूत्र में बाधकर जनता पार्टी बना देने की ताकत लोकनायक के अलावा और किसे प्राप्त था ?लालुप्रसाद ,मुलायमसिंह, राजनारायण आदी उसी सम्पूर्ण क्रान्ति का देन था ,स्वयं प्रधा मंत्री बन सकते थे, परन्तु देश के लिए सबकुछ त्याग करने वालों को सत्ता सुख तुच्छ लगता हैं,उन्होंनें मोरारजीभाई देसाई को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था जो ,सर्वसम्मति से पारित भी हुआ ।
एक बात तो स्पष्ट हो चुका हैं कि देश में स्वार्थी लोगों का एक जमात तैयार हो चुका है,ऐसे लोग पाना तो सब कुछ चाहते हैं पर देने के नाम से बहुत पीछे ,क्या ऐसे लोगों को मतदान करने का अधिकार देना उचित है ? मतदान तो देश प्रेमीयों को देने का अधिकार हैं और देश प्रेमी कोई भी हो सकता है;
एक खोज इस पर होना चाहिए ,बेईमान,भ्रष्ट्र ,चोर ,लुटेरे ,हत्यारों के मतदान से क्या देश को सही दिशा दिया जा सकता ?100 प्रतिशत मतदान करके भी क्या लाभ होगा ,जब तक लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध न हो ,रहने के लिए निवास नहो ,समुचित चिकित्सा की सुविधा न हो ,सुशिक्षा की व्यवस्था न हो ? एक भिखारी का मतदानसे देश का क्या भला हो सकता है ?एक शराबी ,एक नशेडी से देश के लिए क्या उम्मीद किया जा सकता हैं ? मतदान का जिसे अर्थ मालूम हो, जो मत को बेचता न हो , लोभ के कारण,भय के कारण ,मत का दूरपयोग न करता हो , जागरूक हो ऐसे चिन्तनशील
मतदाताओं द्वारा जिसे जिता कर प्रजातंत्र के प्रतितिधि के रूप में देश को प्रदान करेगा उससे देश तरक्की कर सकता हैं ,विकास कार्य में यही लोग निस्वार्थ भाव से सहयोगी बनेगा,उपयुक्त चुनाव ही प्रजातंत्र की सफलता का कुंजी हैं । अत: 100 प्रतिशत या 30 प्रतिशत कोई मायने नहीं रखता ,100 गिदड से एक शेर भला , आज तो जब तक जिम्मदार मतदाता देश में तैयार न हो जाए तब तक मतदान करने का अधिकार भी सिमीत लोगों को प्रदान करने का प्रावधान करना चाहिए,इस तरह की व्यवस्था को हम सीमित प्रजातंत्र कह सकते हैं । आज मैं बहुत ही चिन्तन मनन करके एक अच्छी उम्मीदवार को मत देता हूँ और उसी समय एक शराबी भी आकर नलायक को मतदान करता हैं ,ऐसी स्थिति में मेरा चिन्तन मनन करने का क्या अर्थ है ?मेरा मतदान का कोई अर्थ रह जाता हैं क्या ?मैं तब क्यों जाउ मतदान करने ?

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