सोमवार, 2 फ़रवरी 2009
जल ,जमीन,जंगल हवा हमारा ,नही किसी के बाप का ..
आज विकास का जो परिभाषा हमें बताया जारहा हैं उसका अर्थ अधिकाधिक धन -संपत्ति एकत्रित कर ऐश आराम की जीवन जीने की शैली से लिया जाता हैं ,इसके लिए प्रकृति के साथ कुछ सिरफिरे धन -पिशाच जो दिखने में मनुष्य जैसे लगते हैं पर वास्तव में ये मनुष्य के भेष में रक्त्त पिपाषू होते हैं ,कुछ ऐसे पिशाच देश के व्यवस्था में भी घुस गया हैं ,इनके इशारे में देशके जल,जमीन,जंगलों,हवा आदि पर अपना अधिकार जताने का कानून बनाकर, प्रकृति प्रदत्त सब जीवो के लिए उपहार स्वरुप सभी साधनों पर अपना कब्जा करके किसानो ,आदिवासियो,एवं देश के जनता का मुलभुत अधिकारों को रौंदने का दुस्साहस किया जा रहा हैं , जल ,जमीं ,जंगल ,हवा पर जनता का प्राकृतिक अधिकार हैं ,यह किसी के बाप का नहीं हैं कि पूंजीपतियो को मनमानी वांटकर कमजोरों का शोषण किया जाए
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sahi kaha aapne ki hamare sansadhanon ka anuchit dohan nahin hona chahiye.
जवाब देंहटाएंउत्तम! ब्लाग जगत में पूरे उत्साह के साथ आपका स्वागत है। आपके शब्दों का सागर हमें हमेशा जोड़े रखेगा। कहते हैं, दो लोगों की मुलाकात बेवजह नहीं होती। मुलाकात आपकी और हमारी। मुलाकात यहां ब्लॉगर्स की। मुलाकात विचारों की, सब जुड़े हुए हैं।
जवाब देंहटाएंनियमित लिखें। बेहतर लिखें। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मिलते रहेंगे।
आपका
प्रवीण जाखड़
apke is mission me ham sath hai tatha blog ki is mayaroopi jadoogary nagari me apka swagat hai.
जवाब देंहटाएंsahi bat hai janab. narayan narayan
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