सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

मेरा देश भारतवर्ष, हिंदूस्थान नहीं

काव्य ,महाकाव्य को छोडकर एक भी धार्मिक ग्रन्थ नहीं हैं जिसमें जाति प्रथा का उल्लेख है ,सच कहूँ तो भारत को लोगों ने कब हिन्दुस्थान बना दिया पता ही नहीं लगा और आज तक इसे हिन्दुस्थान बनाए रखने का जीतोड मेहनत किया जा रहा हैं । भारतवर्ष का नाम शकुन्तला -दुश्यन्त के पुत्र से प्रचलित हुआ ,बहादुर और न्यायप्रिय भरत में जो गुण हमें दिखता हैं हिन्दुस्थान शव्द में उस गुण का सर्वथा अभाव है। इतिहास में उल्लेख हैं कि सप्त सिन्धु पार करके आर्य हमारे देश में आए थे ,सिन्धु नदी आज पाकिस्थान में है देश के नलायक नेताओं ने अंग्रेजों के साथ मिलकर भारत माता को टुकडों में वॉट दिया ,एक टुकडे का नाम पाकिस्थान और दूसरे का नाम हिन्दुस्थान रखकर इतिहास को ही तोड मरोड कर लोगों के सामने रखने का दु:स्साहस किया हैं ,दुर्भाग्य से गान्धीजी और नहरू भी इस समय साक्षी स्वरूप जीवित थे , कुल मिलाकर हिन्दुस्थान ,पाकिस्थान भारतवर्ष ही हैं, आर्यों का उच्चारण स के स्थान पर ह होता था, आज भी बहुत लोग र के स्थान पर ल बोलते हैं ,इसितरह की उच्चारण में गलती के कारण सिन्धु को आर्यों ने हिन्दु कहना शुरू कर दिया था और यहाँ रहने वालों को आगे चल कर हिन्दुस्थानी कहने लगे ,हिन्दु शब्द को आर्यों ने कभी जाति वाचक के रूप में नहीं लिया , स्थान विशेष के लिए इस शब्द का उपयोग किया जाता रहा है । धार्मिक और कर्मकाण्ड के समय हिन्दुस्थान का उल्लेख कहीं नहीं मिलता हैं ,आर्य कभी भारतवर्ष को हिन्दुस्थान बनाने का प्रयत्न नहीं किया ,अत: हमें हिन्दुस्थानी या हिन्दु न कह कर भारतवासी और भारत कहना ज्यादा उपयुक्त होगा ।
हमने रामायण को रामायना ,कृष्ण को कृष्णा ,महाभारत को महाभारता ,योग को योगा बना कर चुप चाप तमाशा देख रहे हैं ,आगे जाकर मौलिक नाम को सिद्ध करना भी हमारे लिए असंभव सा हो जायेगा ,शिक्षकों को जागरूक रहना आवश्यक हैं, जिन्होंने भारत को हिन्दुस्थान बनाने के लिए षडयंत्र रचा ,उन्होंने ही हिन्दु को जातियों में बाटने का साजिश किया हैं ,प्राचीन भारत में हमें कहीं इसाई नजर नहीं आते थे ,और न ही मुसलमान और पारसीं मिलता था ,प्राचीन धर्म ग्रन्थें में गीता सर्वमान्य मिलेगा ,रामायण एक महाकाव्य हैं इसे किसी भी तरह से धार्मिक ग्रन्थ नहीं कहा जा सकता हैं' जिस तरह से मुस्लिम यह मान कर चलते हैं कि कुरान का वाणी आकाश से उतरा हैं और वह ईश्वर का वाणी हैं ,उसी तरह गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने जो कुछ कहा वह देव वाणी हैं ,उसे किसी ने लिखा नहीं हैं परन्तु भगवान ने कहा हैं, इसलिए भारत में गीता ही ईश्वर वाणी हैं अन्य सभी काव्य अथवा महा-काव्य हैं । गीता में जो भी लिखा हैं वह मानव और प्राणीयों के लिए कल्याण कारी हैं इसलिए गीता का उपदेश को पालन करना ही धार्मिक कर्म हैं , भारत में रहने वाले सभी को इस धर्म का पालन करना आवश्यक हो सकता हैं , यह कानून से भी उपर हैं, कानून तो हमने बनाया हैं और गीता ईश्वर ने ,ईश्वर के नियम से उपर कोई भी नियम आमान्य योग्य हैं ,अब हमें देखना हैं कि यह वाणी क्या मात्र किसी सम्प्रदाय विशेष के लिए या कौम विशेष के लिए दिया गया हैं ? गीता के 700 श्लोकों में यह नही बताया कि यह वाणी हिन्दुओं के लिए हैं, कारण उस समय हिन्दु शब्द कोई जानते ही नहीं थे ,चूंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भारतवर्ष में हुआ था अत: भारत में रहने वालों को गीता आवश्यक रूप से मानना चाहिए ,यदि कोई गीता में दिए गए उपदेशों का पालन नहीं करता, तो वह अधार्मिक है। उसे भारत वासी कहने का हक नहीं हैं ,चूंकि भारतीय ग्रन्थ गीता है,औरइसमें ज्ञान का भण्डार के साथ ही साथ भगवान स्वयं कहते कि यदि कोई मेरे शरण में आता हैं तो मैं उसे मोक्ष देता हूँ ,मैं ही मोक्षदाता हूँ ,मैं ही उद्धारकर्ता हूँ अत: सब आडम्बरों को छोड मेरे पास आओ ,यदि भुत-प्रेतों का पूजा करोगे तो भुत -प्रेत जैसे हो जाओगे ,जड का चिन्तन करोगे तो जड हो जाओगे और मेरे पास आओगे तो मुझमे मिल जाओगे । श्री कृष्ण ने मुर्ति पूजा को जड कहा हैं अत: गीता मानने वालों को या भारतवासीयों को मुर्ति पूजा नहीं करना चाहिए । गीता में एक बात बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा गया हैं कि चार वर्णों का श्रृजन मेरे द्वारा किया गया हैं ,और यह वर्ण गुण एवं कर्म पर आधारित हैं ,इससे अधिक स्पस्ट बात और क्या हो सकता हैं ? गुण पर आधारित व्यवस्था को कुछ सिरफिरे लोगों ने, समाज विरोधी पागलों ने, जन्म पर आधारित जाति बना कर आज भी अपना उल्लु सीधा करता हैं ,जो जाति प्रथा को मान्यता देता हैं या मानता हैं वह भारत वासी कैसा हो सकता हैं? क्यों कि गीता को जो नहीं मानता वह पाखण्डी हैं । चुकि इस देश में मुस्लिम ,ईसाइ अनेक बाद मे आए हैं और अधिकांश अपना मूल धर्म को बदल दिया हैं ,देश के कानून मूल धर्म को बदलने का अधिकार कैसे दे सकती है ? जो सरकार जनता द्वारा बनाया हुआ हो ,वह सरकार ईश्वर प्रदत्त नियम को किस रूप में बदल सकता हैं ? और यह पाप कर्म अमान्य योग्य है ,इस देश के सभी लोग भारत वासी हैं चूँकि भारत का धार्मिक ग्रन्थ गीता हैं तो हर भारत वासी को गीता मानना जरूरी हैं, गीता के बाद कुछ भी माने, परन्तु भारतवासीयों को अपना मौलिकता कदापि नहीं छोडना चाहिए ,यह बात बताना आवश्यक है कि गीता मानने वाले हिन्दु नहीं वल्कि सभी भारत वासी कहलायेंगे ।
गीता के अनुसार जाति प्रथा मानना पाप कर्म हैं अत: भारत वासियों को उच- नीच पर आधारित जाति को मान्यता न देते हुए मानव धर्म पर आधारित समाज व्यवस्था बनाने मे तुरन्त आगे आना होगा , जाति प्रथा का विकृत रूप मुस्लिम सम्प्रदाय,ईसाइ आदी सभी में समा गया हैं अत: किसी भी सम्प्रदाय को जाति मानने का कोई अधिकार नहीं हैं ,सभी भारत वासियों को गीता पर आधारित समाज व्यवस्था बनाने के लिए आगे आना होगा ,संकुचित विचारधारा से परे हटकर अब देश बनाने के कार्य में जुट जाने का समय आ गया है यदि समय रहते लोग न चेते तो महाभारत का रास्ता भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उपदेशित रास्ता अपनाना ही पडेगा, इसलिए धृतराष्ट्र और दुर्योधन जैसे पापी ही फिर कटघरे में खडे नजर आयेंगे ,गीता का अधिकाधिक प्रचार करना युग धर्म हैं आज रामायण का अधिक बोलबाला हैं रामायण अधिकार छोड जंगल प्रवास पर जोर देती हैं ,गीता अधिकार के लिए लडने की बात करती हैं अत: भारत में अधिकार की लडाई हर युग होता आया हैं ,इस देश में चन्द दुर्योधनों ने सभी साधनों पर अपना अधिकार जमा बैठा है दुर्योधन बिना युद्ध के कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं इसलिए ऐसे लोग रामायण का अधिकाधिक प्रचार कर लोगो का ध्यान अधिकार से हटाने का कुटिल षडयंत्र रचा हैं, परन्तु श्रीकृष्ण के मामा विदुर भी हमेशा ऐसी परिस्थिति में मार्गदर्शक के रूप में सामने आते रहें हैं आज भी क्या यही सब होना बचा हैं ?

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