शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

वेलेंटाइन- डे का सही अर्थ

वेलेंटाइन-डे पर मुझे मेरे साथियों ने कुछ विचार व्यक्त करने के लिए बहुत दिनों से कह रहे हैं ,सच कहूं तो इस विषय पर मुझे लिखने की रूचि नहीं थी ,लिखने के लिए बहुत कुछ हैं जो वर्तमान देश के लिए आवश्यक भी हैं ,प्रेम कोई बाजार में खरिदने-बेचने की चिज तो नहीं कि इस विषय पर बहुत विज्ञापण करते रहे ,प्रेम एक ऐसी अहसास हैं जो एकान्त में ही शोभा देती हैं ,प्रेम की अभिव्यक्ति सार्वजनिक रूप से करने की क्या आवश्यकता है ? दुनियॉं इसकी विरोध करें या समर्थन दें ,प्रेम के लिए इसकी कोई आवश्यकता नहीं होती ,प्रेम करने वाले करते रहेंगे और विरोध करने वाले विरोध भी करेंगे ,दोनों एक साथ चलता हैं ,इसलिए इतनी हंगमा करने की क्या आवश्यकता है ? भारत वर्ष में तो प्रेम कहानियॉं अमर होती हैं ,ताजमहल इसकी सबसे ज्वलन्त उदाहरण हैं ,प्रेम को एक दिन विशेष में बॉध देने से सारी समस्या उत्पन्न हो रही हैं ,प्रेम तो माता.पिता से ,भाई –बहनों से ,पास.पडौसी से ,दोस्त –दोस्त से ,ऐसी सभी से किया जा सकता हैं ,भारत वर्ष में तो इतनी पूजा पाठ,त्यौहार आदी प्रचलित हैं जिसका मकशद प्रेम भाव होता है ,होली में रंग गुलाल की त्यौहार तो बसन्त में मतवाला कर देती हैं यदि वास्तविक भाव द्वारा इसे मनाई जाए तो प्रेम की त्यौहार का रूप ही कुछ ओर दिखेगा ।रास –लीला ,से बढकर कोई वेलेंटाइन –डे ,दूनियॉं में खोजने से मिल सकेगा क्या ? रक्षा बन्धन ,भाई दूज सभी तो हमारे धरोहर हैं ,फिर नई रूप से एक त्यौहार इस देश में जबरदस्ती लादने का षड़यंत्र क्यो किया जा रहा है ? कोई भी त्यौहार मनाने के लिए या कोई भी डे मनाने के लिए आर्थिक साधनों का होना अति आवश्यक होता हैं जिस देश में ४० करोड जनता को भरपेट भोजन उपलब्ध न हो ,उस देश में एक विदेशी खर्चिला दिन लादने का कुचेष्टा से मन आहत हो उठता है ,जब देश में चारों ओर अँधेरा ही अन्धेरा नजर आता हो ,ऐसी स्थिति में प्रेम की अभिव्यक्ति किस तरह से हो सकता हैं ,यह विचारनीय प्रश्न हैं ।
जब देश गुलाम था तब नौजवानों ने मातृभुमि की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावार कर दिया करते थें,युवास्था में वे हँसते -हँसते फॉंसी के फन्दे में झुलजाया करते थे ,समय के साथ –साथ प्राथमिकता भी बदलती है ,अत: आज की स्थिति को देखते हुए हम सभी को त्याग करने के लिए वाध्य किया जाना चाहिए ,प्रेम फिर भी अमर रहेगा ,प्रेम तो हो जाने वाली विषय है ,प्रचार प्रसार से लाखों मिल दुर प्रेम की मंजिल है। मात्र दिखावा के लिए और व्यपार बनाने के लिए इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल करना कभी शोभा नहीं देता ,श्री राम सेना के कदम भी ठीक नहीं हैं उन्हें देश के नौजवानों को सही दिशा दिखाने के लिए एक कार्यक्रम पूर्व में ही तय कर लेना चाहिए था ,नौजवान चाहे दिशा सही चुने या गलत ,उनके मार्ग में जो भी बाधा बनके खडे होते हैं उसका विनाश होना निश्चित हैं ,कोई भी विरोध क्या तुफानों का मार्ग बदल सका हैं ? यदि युवा आज भ्रमित हैं तो उसके लिए मात्र युवाओं को दोष देना गलत है। देश के कर्णधारों ने इन्हें सही मार्ग दर्शन करने में असमर्थ होने के कारण आज विपरीत स्थिति निर्मित होकर हमारे समक्ष कटाक्ष के रूप में खडी है ,इसे ही कहते है बोये पेड बबूल का आम कहा से होय । फिर भी मेरे युवा साथियों ! आपने विपरीत स्थितियों में भी समाज को नई दिशा दी हैं , समाज को बदलने का यदि किसी में साहस हैं तो मात्र तुममे ,तुम्हें अपना सही मार्ग स्वयं को ढुढना होगा , एकला चलोरे ...पर विश्वास करके अन्धेरे को उजाले में परिवर्तित करना तुम्हारा कर्तव्य हैं ,आज यही तुम्हारा युग धर्म हैं ,तुम निद्रा से उठो ! अपने आप को पहचानो ! ईश्वर तुम्हें प्रेम से सरोबर कर देगी ,आज तुम्हारे लिए यही सबसे बडा वेलेंटाइन डे होगा ।

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