बुधवार, 30 सितंबर 2009

२३-०९ -२००९ को बालको में नव निर्मित बिजली सयंत्र की चिमनी धराशाई पर विस्तृत जानकारी





2 फरवरी 2001 का दिन कोरबा शहर के लिए एक मनहुस दिन सभी को आज भी याद हैं ,इसी दिन छत्तीसगढ विधान सभा में बालको निजीकरण के पक्ष और विपक्ष में गरमा- गरम बहस भी चल रहा था, 2001 में केंद्रीय सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी और राज्य में कांग्रेस के तेज तर्रार नेता और छत्तीसगढ के प्रथम मुख्य मंत्रि श्री अजित जोगी जी रहे हैं ।
बालको का निजीकरण किसी भी कीमत पर न करने का संकल्प विधान सभा में लेना था और कांग्रेस के सभी नेता एक जुटता दिखाते हुए बालको निजीकरण का विरोध ही नहीं किया बल्की यहॉं तक कहा कि हम बालको को बिजली-पानी नहीं देंगे । भारतीय जनता पार्टी की और से स्थानिय विधायक श्री बनवारी लाल अग्रवाल ,श्री ननकी राम कवंर ,विधान सभा में निजीकरण के पक्ष में भाषण दिए एवं केंद्र में बैठे भा ज पा का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा -कि बालको का निजीकरण होना ही चाहिए ।
विनिवेश मंत्रि श्री अरूण शौरी , पता नहीं कौन सी जुनून में रहे हैं, कि वे चून-चून कर लाभ में चल रही कंपनीयों को मिट्टी के मौल सौदा करते जा रहे थे । उस समय यदि बाजार मूल्य से बालको का मुल्यांकण किया जाता तो अधिकांश बुद्धिजिवीओं का कहना था -कि बालको किसी भी हालत में 5000 हजार करोड़ से कम की नहीं हो सकता हैं ।
बालको निजीकरण के साथ ही साथ उसका एक केप्टिक बिजली संयंत्र को भी एक साथ बेच दिया गया ,मात्र बिजली संयंत्र ही 1500 हजार करोड़ से कम नहीं था ,कुल मिला कर 551 करोड़ में एक विदेशी कंपनी को बालकों बेचने का सौदा पक्का करके, कोरबा वासीयों के साथ ही साथ बालको कर्मचारियों पर थौप दिया गया था ।
कांग्रेस की विधान सभा में संकल्प पास होना ,और बिजली पानी बंद कर देने का जो बातें विधान सभा में किया गया था, वह मात्र एक दिखावा साबित हुआ ,अजित जोगी तो बालको संयंत्र के भितर जाकर धरना में बैठ गए थे । केंद्र सरकार को ललकारते हुए वे कह रहे थे कि 551 करोड़ में 51 प्रतिशत हिस्सा छत्तिसगढ सरकार को दे दिया जाए ,हम बालको को अच्छी तरह चला लेंगे ,परन्तु सारी बाते केवल हवा बन कर रह गया ।
मुख्यमंत्री राजधानी जाते ही बालको निजीकरण से अपनी हाथ ही खिंच लिए ,वे यहॉं के नेताओं से मिलना तक मुनासिब नही समझे ,बेइमानी का पराकाष्टा ,गद्दारी का जिता जागता उदाहरण-- साक्षात देखकर कर्मचारि और छत्तिसगढ के जनता सहम गए थे, किंम्कर्तव्य विमुढ हो कर अनिष्ट की कल्पना करके जहर की घूंट पीकर वे अपने से जो कुछ हो सकता हैं ,जैसे भी हो, विरोध करते रहे हैं ।
मजेदार बात जो बाद में सामने आई ,वह यह कि श्रमिक संघ के नेताओं ने दिल्ली में पहले से ही सौदा करके बालको लौटे थे ,जिसके तहत अपने बच्चों और चहेतों को नौकरी के अलावा पदोन्नती के साथ भेंट आदी की पक्की इंतेजाम करते हुए मात्र श्रमिकों को वेवकुफ बनाने के लिए ,दिखावा स्वरूप बालको के हडताल में शामिल हुए थे । जिसमें भारतीय मजदूर संघ ,इंटक और समर्थीत संगठन का नाम लेना अनुचित न होगा ।



एटक और उनके कुछ चहते ने इमानदारी पूर्वक 67 दिन तक ऐतिहासिक आन्दोलन करने के पश्चात एकाएक इंटक ने आन्दोलन से समर्थन वापस लेकर ऐतिहासिक आन्दोलन के पीठ में छुरा भोंकने का काम किया ,जिसे भुल पाना सम्भव नहीं है। कांग्रेस और बीजेपी दोंनों बालको निजीकरण के मामले में मिर्जाफरी किया हैं ।
आज जो परिस्थिती बालको का है, उसे देख कर मन हाहाकार कर उठता है , बालको का पहचान एल्युमिनियम से जुड़ा हुआ था ,अनिल अग्रवाल जो एक अप्रवासी भारतीय ,इंग्लैण्ड से करोड़ों रूपये लाकर बेदान्ता समूह के नाम से ,ऐसा लगता है कि यह भारतीय कंपनी हैं ,जबकि वे विदेशी कंपनी का दलाल है -जो कि देश के साथ ईस्ट इण्डिया कंपनी से भी बढ कर गद्दारी करने की तैयारी में है।
कुछ लोगों को यह कहते हुए सुना गया हैं कि अजित जोगी ने बेदान्ता समूह से बहुत लाभ पाकर चुप हो गए और जब कार दुर्घटना में चलना फिरना भी मुस्किल हो गया था, तो लोगों को यह कहते हुए सुना गया कि ..ये बला दुनियॉ से चले क्यों नहीं गये ? मनुष्य संवेदनशील प्राणी हैं ,विपत्ति में तो कोई इस तरह की सोच भी नहीं रखता ,परन्तु जोगी जी ने लोगों का मन किस हद तक दुखाया होगा, जिसके चलते लोगों के मुंह से सहानुभूती के भी शब्द निकल नहीं रहा था । ..................
आगे चलकर उसका राज पाट खत्म हो जाता हैं, और राजधानी में जग्गी हत्याकांड में फँस कर राजनैतिक जीवन को चौपट कर बैठा ।
अति सर्वथा वर्जते ,ऐसा शास्त्रों में लिखा है , बालको के साथ भी अत्याचार का अति हो चुका है ,जो भी इस प्रकारण में लिप्त हैं , उसका भला कभी हो नहीं सकता ।बालको के एक श्रमिक नेता का जो दुर्गति हुई ,उसे देखकर भी वर्तमान श्रमिक नेताओ को होश नही आ रहा हैं , कहते हैं कि उस समय के भापजा मंत्री प्रमोद महाजन का हिस्सा भी बालको में था ......
एक कबाड़ बेचने वाला वह भी बालको का कबाड़ बेचकर जीवन चलाने वाला ,रातों रात बालको का मालिक कैसे बन सकता हैं ? सबसे पहले तो इस बात की जॉंच होनी चाहिए ,ऐसे व्यक्ति पाप छिपाने के लिए सामाजिक कार्य के आड़ में लोगों के ऑंखों धूल झोंकता हैं, दोचार सामूदायिक कार्य इसलिए किया जाता है ताकि स्थनीय लोग सोचे कि यह हमारा मसीहा है ,साधारण जनता ऐसे लोगों को बहुत बाद में पहचान पाते हैं ,जब तक समझ आता है ,तब तक सबकुछ लूट गया होता है।
जबसे वेदान्ता समूह बालको में आया हैं, यहॉं के कर्मचारियों से लेकर स्थानिय जनता ,सभी पेरेशान है1 बालको का निजीकरण न हो इसलिए कोरबा जिला बंद का अह्वान किया गया था, ऐसा बंद स्वस्फूर्त हो कर महाबंद का रूप ले लिया था ,इसका मतलब यह हुआ कि यहॉं के जनता बालको निजीकरण के पक्ष में कभी न थे, और न आज है ।
विनिवेश के नाम से विरोध को दबाने के लिए 2001 में बालको कोरबा को छावनी बना दिया गया था ,और आज जब चीन के कंपनी सेपको के सहयोगी कंपनी जे डी सी एल के भ्रष्टाचार के कारण ऊँची चिमनी धराशायी होकर सैकडों लोगों की जान चली गई और यहॉं किसी भी तरह की विरोध न हो सके इसलिए फौज मंगा लिया गया है ,शासन प्रशासन के सहयोग से चीन के भ्रष्ट कर्मचारि अधिकारीयों को कोरबा से बाहर जाने दिया गया , जिन्हें तुरन्त ग्रिप्तार करके जेल में डाल देना था ,उन लोगों को सुरक्षित दिल्ली तक जाने देना...शासन -प्रशासन की मंशा का पर्दाफाश करने में काफि हैं ।
घटना 23.09.2009 के दोपहर लगभग ३ बजकर ४० मिनट के लगभग होगा .29.09 09 तक 41 शव निकाला जा चुका था ,कुछ लोगों का कहना हैं कि यह संख्या सौ से अधिक है । सैकडों लोग घायल भी हुए कुछ लोगा लापता भी हैं । यदि स्थानीय समाचार पत्र विरोध न करते तो, हो सकता था कि भ्रष्टाचार में लिप्त सभी विदेशी चीन भाग गए होते ,इसके बाद किसकी जॉच और कैसी जॉच ....?
हमने तो भोपाल गैस काण्ड देख चुके है ,आज भी गैस से त्रस्त लोग टुट- टुट कर जीवन को ढो रहे है। और भारत सरकार महाराष्ट्र सरकार इस प्रकरण में तमाशा देख रही है ,हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने वाले एंडरसन का बाल तक बॉंका नहीं कर सकें । भारत में हत्या के आरोपी को फॉसी की सजा होती हैं ! परन्तु किसको होती हैं फॉसी की सजा ? भारतीयों को फॉसी हो जाती हैं, और विदेशीयों को हम फॉंसी नहीं दे सकते ,इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कोई प्रवासी भारतीय हो जाए तो उसके लिए कानून ही बदल जाता है ।
देश्द्रोही के अपराधी अफजल गूरू को कई साल बित जाने पर भी उसे सजा नहीं दिया जा सका हैं ..ऐसा क्यों हो रहा हैं ..... ? जिस चिमनी को सेपको द्वारा बनाई जा रही थी ,पूर्ण रूप से अमानक था ,लोहे की छड ,गिट्टी ,बालू , क्यूरींग ,पाईलिंग ,नींव आदी सभी अमानक निकला ,जिस चिमनी धराशायी हो चुकी है उसके बाजू में एक और चिमनी बन कर तैयार होने को हैं ,उसका भी यही हाल हैं कि कब वह गिरकर सैकडों लोगों का जान ल ेले और फिर एक बार जख्म को ताजा कर दे , किसीको पता नहीं है ।
एक चिमनी बनाने मे पिछले वर्ष आठ लोगों का जान ले लिया था , जान लेने वाली कंपनी को ही दूसरी चिमनी बनाने के लिए ठेका दे दिया गया हैं , भ्रश्टाचार का क्या क्या बयान करू ..... जब से एल्युमिनियम के नाम से कोरबा में अनिल अग्रवाल आया है ,तब से यहॉं लंूट ,दंगा ,गुंडागदी डकैती , शराब खोरी ,बलात्कार, हत्या ,नशेडि,गंजैडी , दूघजटना , प्रदूशण ,अवैध धंधा , वेश्यावृति,नकली नोटों का धंधा , आदी .....ऐसी कोई अपराध नहीं बचा हैं जो अनिल अग्रवाल के साथ यहॉं न आया हो ।
अत: अनिल अग्रवाल को सबसे पहले िग्रप्तार करते हुए उनके चमचों को भी िग्रप्तार करना आवश्यक है । श्रमिक संघ वाले तो ठेकेदारों से उगाही करने में मस्त रहे हैं ,इसलिए इसबार ऐसा कोई विरोध भी देखने को नहीं मिल रहा है । एकट ,इंटक ,सीटू सभी मात्र बयान बाजी तक सीमित हैं ,सैकडों लोगों का जान चला गया और आज तक एक भी लोगों का िग्रप्तारी न होना आश्चर्य ही नही , महा आश्चर्य है।
वन विभाग के जमीन पर अवैद्य रूप से चिमनी बनने का कार्य बालको कर रहा था ,न्यायालय के आदेश का पालन न करते हुए दादागीरि से कार्य करने का साहस स्थानिय प्रशासन के होते हुए भी किसने दिया हैं ,इस पर जॉच होना आवश्यक है।
श्रम विभाग के पास यह भी आकड़े नहीं हैं कि चिमनी स्थल में कितने लोग कार्य कर रहे थे ,बहुत लापता लोगों का लाश नही मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में मरने वालों की संख्या कैसे पता लगेगा ?श्रम विभाग भी बालको और ठेकेदारों से मिले हुए हैं , जॉंच निष्पक्ष रूप से होना आवश्यक हैं ।
राज्य शासन का जॉच तो मात्र दिखावा के सिवाय कुछ भी नहीं रहेगा,जॉच के नाम पर लिपाई -पुताई ही अधिक होने की सम्भवना के कारण सीबीआई से ही जॉच करना आवश्यक हैं ।
पुलिस विभाग भी इस प्रकरण में अपनी दाइत्व से बच नहीं सकता ,जहॉ घटना घटी है उस स्थान से पुलिस थाना बहुत ही नजदीक है ,फिर भी अपराधीयों को पुलिस ने घटना स्थल से जाने क्यों दी ?
घटना स्थल से लगा रिकार्ड रूम को बहुत ही सुनियोजित ढंग से जला दिया गया हैं ,ताकि भ्रश्टाचार से सम्बन्धित सम्पूर्ण दस्तावेज जल जाए और सबूत खत्म हो जाने से प्रकरण को दबाने में सरल हो । बालको आज रहने लायक नहीं रह गया हैं ,नया संयंत्र लगने के बाद ही परिवार सहित कर्मचारि रहने के लिए आते है। यहॉं तो एक बार बालको संयंत्र बन चूका था ,फिर एल्युमिनियम संयंत्र को यदि नया रूप दे कर उत्पादन बढया जाता तो कुछ समझमें भी आता और त्याग भी किया जा सकता था ,लेकिन आज बालको के संयंत्र तो पुरा का पुरा बंद हो चुका हैं । मात्र स्मेलटर को छोड कर सभी बंद है ,पी टी एस –प्रोफा्रईल एण्ड टयूब शॉप , सी डब्ल्यू एस – सेन्ट्ल वर्क शॉप ,पुराना सेल हाउस ,एल्युमिना प्लांट , सभी बंद पड़ा हुआ हैं ----
यहाँ के बाक्साईड को लांजीगढ उडीसा में भेज दिया जाता है । कर्मचारियों में भय का वातावरण तैयार करके व्ही आर एस लेने को वाद्य कर दिया गया ,बालको प्रशासन चाहती हैं कि एल्युमिनियम के आढ में बिजली का धंधा करें । हजारों एकड सरकारी भूमि को kabjaa karke ,हजारों पेडों का वली देकर ,चारों ओर अशान्ती का वातारण बनाकर ,पता नहीं कोरबा और देश का क्या विकास हो रहा हैं ।
विकास के नाम से ,विनाश का जो खेल प्रत्यक्ष दिख रहा है ,उसे देखकर भी शासन प्रशासन क्यो नहीं ? यह प्रश्न सबके मन में आज घर कर गई हैं ,लोग ऐसी नहीं कि समझती नहीं हैं ये सब समझती है ,वक्त बलवान हैं ,जरूर समय अपना हिसाब किताब मांगेगा ........... बेशर्मी का ,बेइमानी का तो हद ही हो गया हैं ,बालको प्रबंधन भ्रश्टाचार को प्राकृतिक कारण बताने की पूरी तैयारी करने में जूटी हुई है।
जिस समय चिमनी गिरी ,उसी समय थोडीसी हवा के साथ वर्षा हो रही थी ,कोरबा में जब कभी वर्षा होती हैं तो अधिकांश समय बिजली भी कडकती रहती हैं ,यहॉं के लोगों के लिए यह सब साधारण बात हैं ,प्रबंधन का कहना हैं कि हवा ,पानी के कारण चिमनी गिरी है ,यह बात करने वाले प्रबंधन किस हद तक मानव जीवन के साथ खिलवाड कर सकती हैं ,यह बयान ही समझने में बहुत है।
जब कभी ऊँची मकान निर्माण होती हैं उसके साथ ही साथ तडित चालक भी चढाया जाता है ,यह एक सामान्य सी नियम है । यदि हवा पानी ,बिजली से उची मकान और चिमनी धराशायी होने लगे तो इस दूनियॉं में ऊँची निर्माण ही बंद हो जाती ,इसका अर्थ यह हुआ कि तड़ित चालक ही निर्माण कार्य के साथ आगे नहीं बढाया गया ,यदि ऐसा होता हैं तो बहुत बड़ी खामि को किसी भी हालत में क्षमा योग्य नहीं माना जा सकता हैं ।
बालको प्रकरण तो मात्र एक उदाहरण ही हैं ,इस तरह की खामियॉं देश के अन्य भागों में आज विकास के नाम से किया जा रहा जनसंहार ,चाहे यह उडिसा के कोरियाई कंपनी पोस्तो का हो ,बिहार के कर्णपूरा क्षेत्र का हो ,हिमाचल प्रदेश के पन बिजली उत्पादन में लगे कंपनी का हो ,बडे सेजों द्वारा निर्माण किया जा रहा अन्य निर्माण कार्य हो ,सभी और पर्यावरण और जनहानी.... प्राणी और अन्य तरह की विनाश ही अधिक परिलक्षित हो रहा हैं । अत: इस तरह की विनाश अविलम्ब रोकना अतिआवश्यक हैं ।
विकास तो मानव या जीव जगत के लिए आवश्यक हैं ,विकास का अर्थ और किसके लिए विकास,यह दोनों बातों को नजर अन्दाज कर दिया जाता है ,मानव रहित और प्राणी रहित विकास से किसका भला होने वाला है ं ,यह विचार करने का भी किसी को समय नहीं मिल रहा है , शासन -प्रशासन सभी मदहोश होकर विनाश कार्य में लिप्त हैं ,एक मानसीक रोगी जिस तरह से अपनी जुनून में कुछ भी करता हैं ,और उसे रोगी मानकर चिकित्सा की व्यवस्था की जाती ,ठीक उसी प्रकार देश के शासन -प्रशासन एक मानसीक रोगी बन चुका हैं ,सही चिकित्सा यदि नहीं किया गया तो ,देश और दुनियॉं से जीवन का ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा ......
भोले भाले जनता के नाम से देश नहीं चलता ,और जो भोले भाले और निरस जीवन जीने वालों पर प्रजातंत्र जैसे शासन व्यवस्था का भार देना अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने का समान हैं ।
प्रजातंत्र में अधिकांश जनता को हमेशा जागरूकता का परिचय देना आवश्यक हैं ,यदि जनता जागरूक न हो तो प्रजातंत्र का अर्थ ही क्या रह जाएगा
सभी घटनाओं पर विचार करने पर एक बात साफ हो जाता हैं कि निजीकरण और सरकारी करण दोनों में विशेश अन्तर नहीं रह गया हैं । काम करने वाले सभी भारतीय होते हैं , हम यह मानकर चलते हैं कि यदि निजीकरण होगा तो लोग ज्यादा कार्य करेंगे और राश्ट्ीय कृत उद्योग में लोग अधिक कार्य नहीं करेंगे ,बात मात्र मानसीक तैयारी की हैं । अत: बालको जैसे अन्य उद्योगों का जो नीजिकरण के पश्चात कार्यकुशलता पूर्व संचालन नहीं कर पा रही हैं ,उन सभी उद्योगों को फिर से रािश्ट्यकरण कर देना समयानुसार उचित है ।
निजीकरण ,सेज ,विनाश से सम्बंधित जो भी ,जैसे भी विषय मिले उस पर हमें कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य करना चाहिए ------

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

ब्लोगवाणी के सिरिल जी को टिपण्णी पर एक पत्र --

सिरिल गुप्ता जी !
यदि उत्तर न दू तो अच्छा नहीं लगता ,आपने तो ब्लॉग में लिख ही दिया कि ब्लागवाणी पर यह पहला आरोप नहीं है । इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ लोग हो सकता है कि आरोप लगाने में ही कोई भला समझते हो , लेकिन ऐसे लोगों को पुछना चाहिए कि आरोप लगाने से उसका क्या भला हो रहा हैं ,यदि आरोप से उसका भला होता हो और ब्लागवाणी को विशेष नुकसान न हो तो ,ऐसे व्यक्तियों को आरोप लगाने के लिए उत्साहित करना भी ठीक हैं ।
आजकल नकारात्मक विचार भी सकारात्मक की ओर ले जा सकता है ,मैंने एक पोस्ट में लिखा है कि यदि मरा -मरा जपने से राम -राम हो सकता हैं ,तो आरोप लगाते लगाते स्वयं आरोप रहित हो जाने की सम्भावना अधिक हो सकती हैं ।

आपने धीरज खोने की बातें लिखी है ,इससे तो साफ हो जाता हैं कि समस्याओं पर आपलोगों ने बहुत अधिक ध्यान दिया हैं , तभी तो मोडरेशन के बारे में ब्लोगारों का सुझाव भी आमंत्रित किया गया हैं । मैं बहुत ही स्पष्ट रूप से आपको बताना चाहता हूँ कि ईमानदारी पूर्वक सबसे अच्छा जो विकल्प आपलोगों को सही लगे ,आपलोग वही करें ,मैं तो भारत वर्ष की भेड़तंत्र पर विस्वास ही नहीं करता ,अत: आपसे निवेदन हैं कि आप सर्वमान्य पर अधिक ध्यान न देते हुए ,जो सबसे अच्छा विकल्प आपलोगों के विचार में लगे, उसी पर आमल करें तो उत्तम होगा ।

जारा ध्यान देने की बात हैं कि आप कितनी भी अच्छी विकल्प ढूंढ ले ,क्या फिर भी आरोप से रहित रह सकेंगें ... ? मुझे लगता हैं कि सम्भव ही नहीं हैं ॥ मैंने जीवन में ऐसे कुछ कार्य जो बहुत ही इमानदारी पूर्वक किया हैं ,उसका फल भी लोगों को अच्छा ही मिला ,फिर भी आरोपों से बच नहीं सका ....
हिन्दी का विकास बहुत जरूरी हैं ,जो भी प्रयत्न और जैसी भी प्रयत्न ,आपलोगों ने शुरू किया हैं उसका एक इतिहास बनेगा .... लोग चाहे कुछ भी कहें पर न्यु का ईंट तो दफन हो जाता ,और उस पर मंजिल खड़ी होती हैं ,आप तो न्यु की ईंट हो ,तो दफन होने में किसकी भय हैं ?

मेरे संदेश याद रखने की बात कहकर सिरिल जी ! आपने बडप्पन का परिचय दिया हैं ,ईश्वर आपको सही दिशा दे ,आपलोगों को नई उमंग दे ,हिन्दी की विकास के लिए आप लोग कृत संकल्पित रहें ...यही प्रार्थना करता हूं ............

सोमवार, 28 सितंबर 2009

ताकि तकनिकी मानव को समझने में भूल न हो जाए--ब्लॉगवाणी के टीम को संदेश

ब्लागवाणी टीम को विदाई दिजीए ...यह समाचार सुनते ही मुझे दु:खद आश्चर्य हुआ ,मैंने लगातार अनेक बार ब्लागवाणी पर जाने की कोशिस करता रहा ,मुझे विस्वास ही नहीं हो रहा था कि ब्लागवाणी बंद हो सकती हैं ।
मैंने तो किसी तकनिकी कारण से खराबी होने के कारण क्षणिक परेशानी समझते हुए कोशिस पर कोशिस किए जा रहा था ,मैंने सोचा हिन्दी समाचार पत्र सा एक स्वतंत्र ब्लागवाणी बंद हो ही नहीं सकता हैं ,और भला यह बंद क्यों ? ब्लागवाणी को कोई परेशानी तो हैं नहीं ,दिनों दिन वाणी --दिन दुगणी रात चौगुणी बढत के साथ आगे बढ रही है। भला मेरे जैसे लोग अन्दर की बाते कब समझता हैं ,जब मुझे कोई झकझोर न दे, तब तक तो मैं अपनी ही धुंध में पड़ा रहता हूं ।

ब्लागवाणी भी तो एक समाचार पत्र जैसे ही हैं ,समाचार पत्र में खिंचातानी तो होगी ही , पक्ष -विपक्ष में अनेक बात सामने आना हैं, और आना भी चाहिए ,कुछ बाते कुछ लोगों को अच्छी लगेगी , कुछ को उसी बात बुरी भी लग सकती हैं ,इस दुनियॉं में सभी को खुश रखना सम्भव ही नहीं हैं ।
यदि किसी ने ब्लागवाणी पर कोई आरोप लगाया हैं ,तो उससे ब्लागवाणी को तो एक नई सोच ही मिला ना ? नई सोच तो एक दिशा देती हैं । ब्लागवाणी के टीम को विशाल हृदय का परिचय देना चाहिए,आरोप लगा हैं तो डटकर उसका मुकाबला किजीए ! आप अगर सही हैं, तो आपका बाल बॉका कोई नहीं कर सकता है ।

जब से ब्लागवाणी से जुडा हूँ , एक लगाव सा हो गया हैं, यदि आपके टीम को भी हमारे साथ कोई लगाव नहीं है, और मात्र आरोप -प्रत्यारोप के भय से इसे बंद करने तक सोचते हैं, तो कृपया हमेशा के लिए ब्लागवाणी बंद कर दे ।

यदि मैं चिट्ठा जगत में जाकर कुछ ब्लोगारों को नहीं पढा होता ,तो मैं विस्वास ही नहीं कर सकता था,कि ब्लागवाणी बंद कर दिया गया है । मैंने तो मेरे मूर्खता पर मन ही मन हंसा और आश्चर्य भी हुआ ,ऐसा लगता हैं कि दिमाग को और अधिक तेज करना होगा ,ताकि आज के तकनिकी मानव को समझने में काई भूल न हो जाए .....

रविवार, 27 सितंबर 2009

कम्युनिस्ट गाली बनकर रह गया ---सहयोग के लिए बहुत बहुत आभार

देश में क्रान्तिकारि परिवर्तण की आवश्यकता क्यों हैं ? क्रांति की बातें तो अनेक लोग और दल करती हैं ,परन्तु जब व्यवहारिक धरातल पर कार्यकलापों का मुल्यांकन किया जाता हैं, तो देश में अपवाद छोडकर सभी से निराशा ही निराशा .....कम्युनिष्टों ने तो हद ही कर दी, प.बं कम्युनिष्टों का गढ माना जाता है ,वहॉं सिंगुर की घटना ,लालगढ की घटना और बंगाल की आर्थिक सामाजिक स्थितियों को देखते हुए हम नहीं कह सकते कि कम्युनिष्ट गरिबों और मजदूरों का दल हैं ।

कम्युनिष्ट शासन ,गरिबों पर गोलीयॉं चलाती हैं और उनसे जमीन छिनकर अमीरों को बॉंटती है , बंगाल में तो कम्युनिष्टों का गुण्डागर्दी खुलेआम चलने के साथ ही साथ यदि कोई विरोध करें तो उसे भी मौत के घाट उतार दिया जाता हैं ।

चौथ वसूल करके दादाओं का धंधा चलता हैं ,राष्ट्रीय रोजगार योजना हो या गरिबी भत्ता सभी में दादाओं का हिस्सा होता हैं । सरकार को सभी खबर हैं फिर भी मौन है ,कम्युनिष्टों की ऐसा घिनौना रूप जिसे देख और सुन कर शर्म से सिर झुक जाती हैं ।

उक्त घटनाओं को देखते हुए आज भी कुछ लोग अपने आप को कम्युनिष्ट कहते हैं, उनका तर्क हैं कि मार्क्स और माओ दोनों के सिद्धान्त अच्छा हैं ,मै उन लोगों को पुछता हूं कि यदि सचमुच सिद्धान्त अच्छी होती तो अन्तिम भी अच्छा होना चाहिए था ,किन्तु जब अन्तिम ठीक उल्टा हो रहा है तो किस सिद्धान्त का तारिफ किया जाए ?

एक गायक जिसे साधारण बोलचाल में भले ही अच्छा न लगता हो , लेकिन गाने के पश्चात लोगों का मन मोह लेता है, ऐसी स्थिति को मैं अन्तिम स्थिति कहता हूँ । इसका अर्थ यह हुआ कि सिद्धान्त चाहे कुछ भी हो, पर उसकी अन्तिम स्थिति यदि कुरूप हो ,घिनौना भरा हो ,नफरत योग्य हो ,तो उस सिद्धान्त का समर्थन किसी भी हालत में नहीं किया जा सकता हैं ।

माओवादिओं के नाम से देश में जो कुछ भी हो रहा हैं ,क्या उन सभी का समर्थन करना पडेगा ? किसी की बहु बेटी को जोर-जबरदस्ती घर से उठा कर माओवादी बना देना , उनके विरोध करने पर हत्या कर देना ,घर को जला देना , स्कुलों को जला देना , बिजली खम्भों को उखाड़ कर सभी को अंधेरे में रहने को मजबुर कर देना , गरिबों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे अनाजों को लूट लेना , आदी ...अनेक घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता हैं, जो की अमानवीय और असभ्यता से परिपूर्ण है।
अमीर भी अत्याचार करते हैं और मैं उन अमीरों को फूटी ऑखों से देखना भी पसन्द नहीं करता ,परन्तु माओवादी के नाम से गरिबों पर अत्याचार कौन सी सिद्धान्त में आता हैं ?
भाई शरद कोकास ने मुझे प्रमाण पत्र दे दिया कि मैं भी मार्क्स का ही समर्थक हूँ , भाई शरद ! कृपया मुझे किसी वाद पर बॉधने का प्रयत्न न करें ,मैंने पूर्व पोस्ट में जो कुछ भी लिखा है ,उन सभी तथ्यों को मार्क्स समर्थन नहीं कर सकते है।

गुणानुपात का अर्थ यह हैं कि सुविधा, गुण के अनुपात में मिलना चाहिए ,जो अधिक गुणी है समाज उसे अधिक सुविधा दें ,शारिरीक श्रम और मानसीक श्रम में बहुत अन्तर हैं ,मैं यह भी मानता हूँ कि दोनों श्रम एक दूसरे का पूरक भी हैं, परन्तु जब आनुपातिक रूप से मानसिक श्रम अधिक हो तो उसे आनुपातिक रूप से शारीरिक श्रम के अपेक्षा अधिक सुविधा देना आवश्यक है ।

एक साफ्टवेयर इंजिनीयर को एसी की आवश्यकता हो सकती है ,परन्तु एक रास्ते में फावड़ा चलाने वाले को वह उपयोगी नहीं हैं । एक साधारण शिक्षक को पाठशाला जाने के लिए साईकल की आवश्यकता हो सकती हैं परन्तु एक अच्छी डाक्टर को मरीज देखने के लिए और त्वरीत सेवा उपलब्ध होसके इसलिए उसे मोटर साईकल या कार या हवाई जहाज की व्यवस्था किया जाना आवश्यक हैं ।
प्राकृतिक संशाधनों का उपयोग मात्र धन होने पर ही उपलब्ध करवाना ठीक नहीं है। जैसे पैट्रोल डीजल,आदी का उपयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए ।

समीर भाई ,रतन सिंह जी , राकेश झा जी को धन्यवाद १ सुमनजी ! हो सकता हैं इस पोस्ट द्वारा आपको कुछ टिप्पनी का झलक मिल जाएगा ,काजल जी ! मानव निर्मित व्यवस्था में यदि सडन पैदा हो गई हो तो उपचार भी जरूरी है !

शनिवार, 26 सितंबर 2009

ब्लोगर बंधुओं मुझे आपका सलाह चाहिए !

ब्लोग लिखकर क्या फायदा ! समय ,स्वास्थ्य और धनहानि के सिवाय कुछ भी हॉंसिल नहीं होता ,रात-रात भर जगते हुए कुछ लिखना, जिससे समाज और देश का भला हो सकें ,परन्तु मैं यह देख कर हैरान हो जाता हूँ कि अधिकांश ब्लोगर्स स्वप्रचार में ही व्यास्त रहते हैं । कुछ पोस्ट उच्चकोटि के होते हुए भी लोग उसे पढना नहीं चाहते ,स्वप्रचार एक विज्ञापण के सिवाय कुछ भी नहीं हैं । ब्लोग लिखना आज सस्ता विज्ञापण साबित हो रहा है ।

अब पढने वाले भी कितने है ...अधिक पढे जाने वाले पोस्ट लगभग 175 से 200 तक सिमीत हैं ,जितने समय और धन बरबाद हो जाती हैं वही साधन यदि समाचार पत्रों में पर्चा छपवाकर बटवा दिया जाए, तो ज्यादा उपयोगी और असरदार होने की सम्भावना अधिक हो जाने से मुझे लगता है कि ब्लोग में अधिक ध्यान देना सही प्रतित नहीं होता ।

मै उक्त बातों से सम्पूर्ण सहमत भी नहीं हूँ ...हर सोच की दो पहलू होती हैं ,पहला जो तत्काल दिमाग में आता हो और दूसरी तो दिमाग सोचने के लिए तैयार ही नहीं होती ,मनोवैज्ञानिक क्या कहते है यह मुझे पता नहीं , परन्तु मैं दूसरी पहलू के लिए सभी ब्लोगर्स बन्धुओं और मेरे अनुसरणकर्ताओं से निवेदन करना चाहता हूँ कि जिस अनछुए पहलू को मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कृपया मुझे मार्गदर्शन करने का कष्ट करें ।

देश में क्रान्तिकारि परिवर्तण की आवश्यकता हैं ,लेकिन जब क्रान्ति की बाते आती हैं तो कृपया मुझे कोई कम्युनिष्ट न कहे ,यह शब्द मुझें आज गाली जैसी लगती हैं । फ्रान्स में हाब्स,लॉक,रूसो जैसे तिकड़ी ने एक इतिहास रचना कर अमर हो गए ,मैं फ्रांस की क्रांति से अधिक प्रभावित हूँ

मुझे समाजवाद से लगाव तो हैं परन्तु आयात किया गया समाजवाद से कोई सरोकार नहीं हैं ,आज समाजवाद का तो आधार ही नहीं रह गया हैं । रूस ,चीन ,जैसे समाजवादी देश अमेरिका के पिछलग्गु बन गए हैं,ऐसी स्थिति में समाजवाद एक सपना साबित हुआ ।

सभी को बराबर का दर्जा नहीं दिया जा सकता हैं ,प्राकृतिक नियमानुसार सभी प्राणी को जीने का अधिकार हैं ,कम्युनिस्टों ने तो मात्र विचार भिन्नता के कारण से उत्पन्न भावनाओं को कुचल देता हैं ,जब विचार ही नहीं रहेगा तो आगे बढने की साधन भी समाप्त हो जाता हैं ,इसिलिए आज कम्युनिस्ट आन्दोलन मृत प्राय: हो चुका हैं ।

मैंने विचारों से सम्बन्धीत और इन विचारों से देश में एक क्रान्तिकारि परिवर्तण कैसे हो सकें इस बात को अधिक महत्व देता हूँ ,अत: सभी बन्धुओं से विचार जानने को उत्सुक हूँ ,मात्र लिखने के लिए लिखना , किसी भी रूप से मान्य योग्य नहीं हैं ।

एक बात स्पश्ट रूप से लिखना भी आवश्यक हैं कि क्रान्ति का अर्थ परिवर्तण से हैं ,वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तण करते हुए जो धन सम्पत्ति मुठि्ठ भर लोगों में केंद्रित हो चुकी हैं उसे उचित इस तरह विकेंद्रियकरण करना जिससे कि धन सम्पदा का लाभ सभी को समुचित हो सकें और समाज में सन्तुलन की स्थिति बनी रहे ,बराबरी की कल्पना मैं नहीं करता । गुणानुपात के मूल्यांकण को आधार माना जा सकता हैं ।

बन्धुओं याद रखो ....उक्त परिवर्तण का रूप भले ही कुछ बदलता हुआ व्यावहारिक भूमि पर फुलता फलता दिखें ,पर विचारानुसार लगभग परिवर्तण को कोई रोक नहीं पाएगा ,अत: परिवर्तण वेला में साथ देकर युग धर्म का निर्वाहन करना ,सभी का पुणित कर्तव्य हैं ।

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

बालको के चिमनी कांड --बहुराष्ट्रीय कंपनी का भारत में देशद्रोही के सामान हैं--

बालको में कल जो हादसा हुआ था लगभग तीस घन्टे बीत जाने पर भी लगातार लाशों का मिलना जारी है।चिमनी के मलवे में अभी अनेक लाश दबे पड़े है ,पता नहीं किन अभागों का कंकाल ही हाथ लगेगा, और यह शिनाख्त करना भी मुस्किल हो जाएगा कि किसका लाश है।

सूत्र बताते हैं कि ऐसे अनेक मजदूर हैं जिसके पास कोई प्रमाण पत्र ही नहीं है ,मजदूर ठेकेदार यदि तीस प्रमाण पत्र जारी किया हैं, उसी तीस के बदले पंचास -साठ मजदूर कार्य करने चले जाते थे ,यह कैसे सम्भव होता हैं ,यह मुझे पता नहीं, पर कहते है लेबर इन्सपेक्टर के साथ सॉंठ- गाठ करके ऐसा किया जाता है ,जो जानते हैं कि चिमनी बनाते समय इस तरह की हादसा होता हैं और मौत होने पर कम मुआवजा देना पड़े , इसलिए पहले से ही तैयारी किया जाता हैं ।

आज बालको प्रबंधन और जीडीसीएल पर गैर इरादा हत्या का मामला दर्ज किया गया हैं ,304 ए धारा लगाकर प्रथम सूचना थाने में दर्ज कर न्यायिक जॉंच की आदेश भी शासन ने दे दिया हैं , पर इससे क्या हासिल होगा , सभी जानते हैं ,जॉंच का समय बढता चला जाता हैं और तब तक सारे सबूत भी एक एक करके नष्ट हो जाने से अपराधी अन्तिम समय में न्यायिक दण्ड से बच निकलते है।
यदि मुम्बई होटल ताज का घटना हो तो देश के सभी दिल थाम कर दुआ के लिए निकल पड़ते है ,हिन्दु, मुस्लिम,इसाई सभी सारे भेद भाव भुल कर सहयोग का हाथ बढाते हैं ,देश में आक्रोश का माहोल बन जाता है । आज सैकडों लोगों का जान चला गया ,लाश अभी दबे पड़े है ,लाश सड़ चुकी हैं ,बदबु आने लगी है ऐसी स्थिति में बालको प्रबंधन के सारे जिम्मेदार लोग घटना स्थल पर जाना भी मुनासिब नहीं समझे ।

बालको प्रबंधन के स्थानीय प्रमुख श्री गूंजन गुप्ता जो 24 घन्टे के बाद घटना स्थल पर पहुँचने के कारण उपस्थित मजदूर भड़क गए और उसे मारने के लिए दौडाए ,उसके साथ भी अप्रिय घटना घट सकती थी ।

प्रत्यक्षदर्शीयों का कहना है कि लगभग तीन बज कर तीस मिनट को यहॉं ऑंधी और कड़कते हुए बिजली चमकने लगी एवं कुछ ही समय पश्चात चिमनी धराशायी हो गया ,यह भी बताया जा रहा हैं कि पहले तो चिमनी लगभग बीस मिटर जमीन के अन्दर धंश गई ,और बाद में झुकते हुए गिरी

प्रबंधन इसे एक प्राकृतिक घटना के साथ जोड़कर अपना पक्ष मजबुत बनने मे लगी हुई हैं ।यह धारणा बनाई जा रही हैं कि चिमनी तेज ऑंधी और बिजली गिरने के करण धराशायी हुई हैं । क्या तेज ऑधी और बिजली गिरने के कारण निर्माण कार्य धराशायी हो जाती हैं ? कुतुब मिनार क्यों नही गिर गई ? हजारों वर्षों तक आज भी दिल्ली में शान से खड़ी है । आज विज्ञान इतनी तरक्की कर चुकी है , फिर भी इस तरह की गिम्भर हादसा होना किसी भी तरह से प्राकृतिक नहीं कहा जा सकता हैं ।

कंक्रिट के मजबूत दीवारों से निर्मित लगभग 250 फीट की चिमनी जब गिरी तो कांक्रिट में फंसे छड़ को आसानी से हाथ से खिंचकर निकाला जाना आसान था जबकि साधारणत: छड को कंक्रिट से अलग करना बहुत कठीन होता हैं । एक बात और हैं कि १२०० मेगावाट के बिजली सयंत्र को मात्र ९०० करोड में चीन के कंपनी ने तैयार करने का ठेका लेता है और चिमनी में ३२ एम एम के छड़ के स्थान में २२ एम एम का छड़ लगा कर खर्च को कम किया गया ,जो गुणवत्ताहीन निर्माण की पोल खोलने के लिए प्रयाप्त हैं ।

एक बात यह भी हैं कि बालको में चीन के सिपको द्वाराएक और बिजली सयंत्र का निर्माण करते समय आठ लोगों की मृत्यु हो चुकी थी ,फिर भी दूसरी सयंत्र का ठेका सिपको को देना ,सन्देहास्पद हैं । तमाम तथ्यों पर निश्पक्ष जॉच कर दोशी का कठोर दण्ड देना आवश्यक है । यह देशद्रोही के समान अपराध हैं !

देशहित के मुद्दों पर समस्त ब्लोगारों को एक सशक्त दस्तक देना भी समयानुकुल जरूरी है ,अन्यथा लेखनी उठाना और प्रजातांत्रिक देश के नागरिक कहना किसी तरह उचित नहीं हैं । आशा करता हूँ कि ब्लोगर बन्धु ज्वलन्त मुद्दों पर अपना प्रतिक्रिया अपनी तरिके से अवश्य दर्ज करेंगें ।

बुधवार, 23 सितंबर 2009

गुणवत्ता विहीन बालको विद्युत सयंत्र की चिमनी गिरा-- सैकड़ो घायल ,इंजिनियर ओर मजदूरों की मौत --मलवे में दबे हैं लाश

कोरबा -बालको -का नाम पहले जो नहीं जानते थे ,आज के बालको हादसे के बाद भारत में ही नहीं बल्की दुनियॉ के लोग जानने लगेंगे । आज लगभग 3 बजे बालको द्वारा स्थापित 1200 मेगावाट के विद्युत सयंत्र की चिमनी का निर्माण कार्य में लगे के लिए काला दिवस साबित हुआ , मजदूरों को क्या पता था कि आज उनके जीवन का अन्तिम दिन होगा ,100 मिटर लगभग 250 फीस उंची कुतूब मिनार जैसे चिमनी बनने का ठेका सिपाको ,चीन के कंपनी को दिया गया था ,मात्र कुछ कागज के नोटों के लिए बालकों के प्रबंधन द्वारा गुणवत्ता विहीन कार्य करने मे माहीर चीन के सिपाकों कंपनी को 1200 मेगावाट विद्युत संयत्र का ठेका दिया गया ,यह कंपनी देशी कंपनी भेल से बहुत ही कम किंमत में निर्माण कार्य करता है ,जोकि मानक किंमत में कभी सम्भव ही नहीं होता ।

बालको जिसका सीइओ अनिल अग्रवाल है ,कभी बालको में कबाड खरीदकर अपना जीवन यापन करता था ,एका एक करोडों का मालिक कैसे बन बैठा ,यह जॉंच का भी विषय हैं । एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के दलाल जो इंग्लैण्ड से संचालित होता हैं , भारत में प्रवेश कर वेदान्ता के नाम से व्यापार करने लगा ,आज अंग्रेज प्रत्यक्ष रूप से भारत न आकर यहॉं के पीट्ठुओं से अपना काम करवा लेता है ,यदि यहॉं के अच्छा दलाल अंग्रेजों के लिए फैदेमंद हो तो उनके कंधे पर बन्दुक रख कर भारत में लूट का साम्रज्य बनाना बहुत आसान है ।

अनिल अग्रवाल ने यही काम भारत में किया हैं ,किसी जमाने में मिर्जाफर ने देश के साथ जो गद्दारी किया था ,जिसका परिणाम देश के बच्चे -बच्चे आज जानते है। भारत में फिर इतिहास दोहराया जा रहा है।

चिमनी भर भरा कर गिर पड़ी ,चिमनी के ऊपर काम कर रहे मजदुर, इंजिनियर ताश के पत्तों की तरह नीचे बिखर गए ,250 फीट नीचे आते आते अधिकांश मजदूरों का जीवन लीला समाप्त हो चुका था , लाशों को पहचान पाना मुस्किल हो चुका है ,23 लाश मलबे से निकाल लिया गया है ,लगभग 40 मजदूर और इंजिनियर चिमनी के मलबे में दबे पड़े हैं ।

संयोग से हादसे की स्थान में जाने का मुझे मौका मिल गया था , गुणवत्ता विहीन निर्माण कार्य देखकर मैं हैरान और आश्चार्य चकित था , मजदुरों और कर्मचारियों के जीवन के साथ बालकों में जिस तरह से खिलवाड़ किया जा रहा हैं, उसे दिखकर और सुनकर मन हाहाकार कर उठता हैं --

मुझे याद हैं जब बालको का निजीकरण हो रहा था और मजदुरों ने 67 दिन का ऐतिहासिक आन्दोलन कर इसका विरोध किया ,परन्तु भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों ने मिलकर लाभ में चल रही बालको को मिटि्ट के मौल वेदान्ता समूह को दान में देकर ,पता नहीं अंग्रेजों के एक बहुराष्ट्रिय कंपनी को क्यों अनुग्रहित किया । लगभग पॉच हजार करोड़ की राष्ट्रिय सम्पत्ति को विनिवेश के नाम पर मात्र पॉच सौ करोड़ में देकर ,भष्ट्राचार का मिशाल कायम किया गया ,शर्म की बात हैं ....गद्दारी की चरम सीमा !!!!!

बालको का अर्थ भारत एल्युमिनिय कंपनी ,वेदान्ता समूह ने एल्युमिनियम कंपनी का ५१ प्रतिशत अधिग्रहरण करते हुए मालिक बन बैठा , बालको में एक केप्टिक विद्युत सयंत्र पहले से ही लगाहुआ होने के कारण विद्युत आपूर्ति में को कठिनाई नहीं होती थी ,वेदान्ता समूह ने देखा कि कोरबा में कोयला अधिक उत्पादन होता हैं अत: एल्युमिनियम के बहाने घुसपैठ करते हुए विद्युत संयत्र बनाने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

विद्युत संयत्र बनाने के लिए बालको का भूमि जिसे भुस्वामीओं ने एल्युमिनियम सयंत्र के लिए प्रदान किया था ,उसी भूमि में दो -दो विद्युत सयंत्र निर्माण करने का षडयंत्र यहॉं के शासन प्रशासन को उपकृत करके रचा ,हजारों एकड़ भुमि अवैध कब्जा करके ,हजारों हराभरा पेड़ों को रातों रात हत्या करते हुए जिस विकास बनाम विनाश का नंगा नाच कोरबा में शुरू किया गया, उसका मिशाल विरले ही देखने सुनने को मिलता हैं ।

चिमनी प्रकरण में बालको प्रबंधन ,अनिल अग्रवाल वेदान्ता समूह के आका जो इंग्लैण्ड में बैठे हुए हैं ,चीन के सिपको ,स्थानिय प्रशासन ,छत्तिसगढ शासन सभी दोषी हैं ,रमन सरकार मात्र जॉच का आदेश दे कर अपना कर्तव्य से बच नहीं सकते । छत्तिसगढ को बंजर और प्रदूषित करने में डा.रमन सिंह अपराधी के श्रेणी आ जाते हैं ।

सोमवार, 21 सितंबर 2009

सोना बिन सब सुन ----

सोना में आग लग गया हैं ,अब लगातार देश के सभी लोग देख रहे हैं किन्तु इसे बुझाने के लिए कोई सामने नहीं आ रहे हैं ,खाने पीने के सभी चीजों का तो क्या कहने ....सरकार में बैठे तिकड़ी तो इस मामले में झुठा नम्बर एक साबित हुए ,लगातार छ: साल का मेरे पास लेखा जोखा हैं ,महंगाई और शेयर बाजार पर इन तिकडियो ने कब कब झुठ बोल कर अपनी चमड़ी बचाई हैं ।

अभी मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने कहा कि छ: माह में मंदी का अन्त हो जाएगा ,यही महाशय ने एक बार कहा था कि तीन माह में महंगाई खत्म हो जायेगा ,तीन साल से अधिक होजाने के बाद भी न महंगाई खत्म हुई और न ही अन्य समस्या ।

एक बात अच्छी हो गई कि लोग धीरे -धीरे ही सही लोगों का भ्रम तिकडियो से टुटने लगी हैं ,अब नाम लेना तो अच्छा नहीं लगता पर बहुत लोगों को तिकड़ी का अर्थ मालूम नहीं हैं , तिकड़ी याने मनमोहन ,मोटेंक,और चिदम्बरम देश को बरबाद करने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते है 1

जमाखोरी ,भ्रष्ट्राचारी से ही तो अधिकांश नेताओं का पेट पलता हैं ,अभी कुछ नेताओं ने सादगी अपनाने का ढोंग रच रहे है। सौ चूहे खाकर बिल्ली चले हज को वाली कहावत चरितार्थ होने लगा हैं । नेताओं के हाथ में एक सूत्र लग गई हैं वह हैं भारतीय जनता सादगी पसन्द करती है ,आप लंगोट लगा कर या नागा साधु सा भेष बनाकर समाज सेवा में कूद जाईए ...देखिए फिर क्या मजा आता हैं ।
साधुओं के लिए रातों रात महल जैसे आश्रम तैयार हो जाता हैं, अब आप ऐश किजीए ।
मैंने शुरू किया था सोना में आग लगने की बात पर ,एक मानसीक कमजोरी इस देश में प्राचीन काल से रही है। अब कमजोरी कहे या शौक ,धन सम्पत्ति तो इस देश कमी थी नहीं ,अनेक बार लूटते रहने के बाद भी सोना-चॉदी का अभाव इस देश में कभी नहीं रहा हैं ।

विवाह आदी के समय गरीब से गरीब भी कुछ सोना लड़की और लड़के को देना अपना फर्ज समझते हैं ,यही मानसीकता को भाप कर जमाखोरों को मजा आ गया हैं ,सोना -चॉदी ,खाद्यान्न जैसे जमाखोरी करके कित्रिम महंगाइ बाजार में लाद कर अरबों का खेल इस देश में शुरू हो चुका हैं । अब तो चाहते हुए भी अधिक सोना विवाह आदी के समय देने की रिवाज ही खत्म हो रहा हैं सोना दान करने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह भी हैं कि यदि नव दम्पत्ति के सामने कभी आर्थिक विपत्ति हो तो सोना उस विपत्ति से उबारने का अच्छा माध्यम हो जाता हैं ।

एक सात्विक सोच को शोषण का माध्यम बनाया गया हैं ,सरकार समाज सब चुप हैं ,यह विचार करके कि सोना खाना नहीं हैं अत: इस पर ध्यान क्यों दिया जाए । पर बात ऐसी नहीं हैं ,सोना जीवन में अनेक सुरक्षा प्रदान करता हैं ,अत: इस कित्रिम महंगाइ के विरोध में हम सभी को एकत्रित हो कर जरूर लड़ना चाहिए ।

मैं तो सोचता हूँ कि सोना खरीदना बंद कर पोस्ट आफिस या बैंक की ओर नजरे दौड़ाना अच्छी बात हो सकती हैं । शेयर बाजार जैसे उतार चढाव वाली धंधा जुआरिओं को शोभा देता हैं । सभ्य मनुष्य इससे तो दूर ही रहना पसन्द करते हैं ,जिसे रात की नींद और सुख चैन खत्म करना हो ,रक्त चाप से ग्रसीत होना हो तो शेयर बाजार में चले जाए ,रातों रात करोड़पति ओर रातों रात खकपति दोनों का मजा लिया जा सकता हैं । करोड़पति बनने के जुनून परिवार को बरबाद कर देती हैं

सोना -चॉंदी तो भारत का जीवन रेखा हैं हम चाहे कुछ भी कहे पर सोना बीन सब सून वाली बात यहा लागू होता हैं । इसलिए सोना पर अंकुश लगाते हुए कित्रिम महंगाइ को राकना अति आवश्यक हैं ।

रविवार, 20 सितंबर 2009

जब भगवान मेरे सामने रोने लगे ----

दुनियॉं को बनाने ,सवॉरने वाले सर्वशक्तीमान भगवान को कुछ भी नाम से पुकारे ,पर पुकार तो एक ही स्थान में ही जाकर रूक जाता हैं ,जैसे पिता को पिताजी कहें,पापा कहें ,कहीं -कहीं भैया ही कहते हैं ,पिताश्री कहें ,फादर कहें या अन्य भाषाओं में कुछ भी कह ले पर पिताजी ही प्रतिक्रिया करते हैं । ईश्वर को भी अनेक नामों से पुकारने पर भी ईश्वर तक आवाज जरूर पहुंचता हैं । लेकिन मैंने कभी ईश्वर को रोता हुआ न सुना हैं, और न देखा हैं । परन्तु मेरे साथ तो आज कल कुछ अजीब -अजीब घटना घटने लगी है ।
कल ही भगवान मेरे सामने आकर रोने लग गए ,मैंने पूछा कि भगवान आप क्यों रो रहे हैं ? आपको तो कोई कष्ट रूला नहीं सकता , पल भर में सारे दु:ख -कष्टों को हरने वाले आप ...आज मेरे जैसे दो कौड़ी के आदमी के सामने रो रहे हैं !
मैंने कहा प्रभू यह तो मुझसे देखा नहीं जाता ,और विश्वास भी नहीं हो रहा हैं कि सत्य ही आप भगवान हैं ? मैंने जेब से रूमाल निकाला और ऑंखो को पोछने लगा और कहा भगवान यदि आप भगवान नहीं हैं, फिर भी मुझे आप के रोने से कष्ट हो रहा हैं,क्या मैं आपका कष्ट को दूर कर सकता हूँ ?
भगवान बोले राय ! तुमको पहले मुझ पर विश्वास करना होगा कि मैं भगवान ही हूँ ,इसके पश्चात ही मेरे दु:ख का कारण बताउंगा ।मैं तो आज बुरा फंश गया ,भगवान को मैंने कहा कि प्रभू ! मैं किसी के कहने पर कैसे विश्वास करू कि आप भगवान हैं ? आज तो नकली भगवान असली भगवान से अधिक सुन्दर और चमत्कारिक होते हैं ,भारत जैसे देश में तो आपके जैसे असली भगवान की आवश्यकता ही नहीं हैं ।
यहॉं तो एक नहीं हजारों भगवान हैं ,फिर आपके कहने से मैं आपको भगवान कैसे मानलूँ ? भगवान तो जैसे आगबबूला हो गए ,बोले राय मैं नराज होता हूँ , तो प्रलय हो जाता हैं--
परन्तु तुम्हारे सामने तो रो रहा था ,अब देखो मेरे विश्व रूप ......सचमुच भगवान ने मेरे सामने विश्वरूप दिखाया ,मैं रोमांचित हो रहा था और रूप देखकर भयभीत भी...
इतने में भगवान ने कहा बस आगे मेरे बारे में कुछ न लिखना.......
अब विश्वास हो गया कि नहीं ? मैं क्या कहूँ ,एका एक भगवान के चरणों में साष्टांग हो गया और बोला प्रभु मुझे क्षमा करना ,मैं तो अबोध हूँ , नराधाम हूँ ,द्वापर के अर्जुन को जो रूप आपने दिखाया था आज विश्व में मैं दूसरा हूँ , जिसको विश्व रूप का दर्शन हुआ हैं ।

मैंने कहा प्रभू अब तो आप जो भी बोलेंगे वही करूंगा ,जल्दी -जल्दी बताईए कि क्या करने से आपका रोना बंद होगा ? प्रभुबोले ...सुनो राय! अभी -अभी गणेश जी के पूजा के समय लोगों ने नदी नालों में इतनी कचरा भर दिया कि सालों तक देश के लाखों कल कारखाने से निकलने वाली मैले से अधिक है। अब दुर्गा पूजा के बाद नदियों का क्या हाल होगा वहीं सोच -सोच कर मैं रो रहा हूँ ।
दूनियॉं में जितनी प्राणी हैं उनके लिए शुद्ध जल तो क्या अशुद्ध पानी की व्यवस्था मैं कैसे कर पाउंगा, मेरे द्वारा बनाए गए सारे व्यावस्था तो मनुष्यों ने बिगाड़ दिया हैं ,जिसके कारण वर्षा भी समय से नहीं दे पा रहा हूँ ,जिस दूनियॉं को मैंने बनाया हैं उसी दुनियॉं को आखों के सामने बरबाद होते देखना पडेगा ? यह सब सोचता हुआ रो रहा हूँ । तुम जरा इस लोगों को समझाना कि दशहारा में मूर्तियों का विसर्जन नदी नालों में न करे उसके लिए अन्य व्यवस्था किया जा सकता हैं । भारत वर्ष में तो शरीर से आत्मा चले जाने के पश्चात दाह संस्कार और दफनाने का रिवाज हैं ,मूर्तियों को दोनों विधीयों से कोई एक विधी द्वारा शान्ति किया जा सकता है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो मैं प्राणीयों के लिए शुद्ध जल तो दूर अशुद्ध पानी भी व्यावस्था नहीं कर पाउंगा ......इतना कहते हुए प्रभु अंतर्ध्यान हो गए ,परन्तु रोने की आवाज आज भी हर रात को मेरे कान में गूंजता हैं ......पता नहीं प्रभु को कब तक रोना पड़ेगा ......................................

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

रंजना जी ! राष्ट्रभाषा ओर राष्ट्रीयता दोनों समृद्धिशाली जरुरी हैं ---

अब रंजना जी से भी कुछ वार्तालाप करने की चाह हैं । आपने समीर जी के बारे में लिखने पर, कुछ खास अन्दाज में मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित कर दिया , एक बात तो साफ हैं कि भारत वर्ष
में हिन्दी के प्रति एक अलग ही मान सम्मान हैं ।
मैं समीर जी के टिप्पणी के लिए कतई नराज नहीं हूँ , ओर न ही समीर जी से असमत हूँ ,मुझे मात्र लकीर की बात पर भ्रम हो सकता हैं । यदि दूसरे से आगे बढना हो तो अपनी लकीर इतनी बढा दो, जिससे कि दूसरे की लकीर अपने आप बौना दिखने लगे,लकीर मिटाने की आवश्यकता नहीं हैं । अब इसी बात पर सारी बबाल खड़ी हो गई क्यूकि मैं लकीर मिटाने पर भी विश्वास करता हूँ ,समृद्धि के लिए लकीर मिटाने की खेल बहुत पुरानी हैं ।

बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती हैं ।
ज्ञान और भाषा में बहुत अन्तर हैं , अनेक भाषाओँ का ज्ञाता ,ज्ञानी होगा यह आवश्यक नहीं और ज्ञानी अनेक भाषाओँ का ज्ञाता होगा यह भी जरूरी नहीं हैं ।

यदि मूक ज्ञानी हो तो अनेक चमत्कारिक कार्य कर सकता हैं । जिस भाषा के कारण हमेशा गुलामी का अहसास होता हो , वह कितनी ही समृद्धशाली क्यों न हो उससे दूर रहना ही हितकर हैं । अब यदि गुंडों के हाथ में ए के 47 दे दिया जाए तो उसका उपयोग क्या होगा ? मुझे यदि मौका मिले तो मैं देश के सभी को अपनी -अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण के लिए प्रोत्साहित करूंगा । बच्चों को तो कतई अन्य भाषा से शिक्षा देना उचित नहीं हैं ।

सरलता से शिक्षा पाने का अधिकार बच्चों को हैं ,हम अन्य भाषाओँ को बचपन से उन पर लादते हैं, जिससे बच्चों का नैषार्गिक विकास रूक जाता हैं । वैज्ञानिक शोध से पता चला हैं कि अन्य भाषा से शिक्षा पाने वाले बच्चों को छ: गुणी अधिक मानसीक परिश्रम करना पड़ता हैं । एक बात और हैं कि हिन्दी इस देश के किसी की मातृ भाषा भी नहीं हैं ,परन्तु आज देश के प्राय: सभी हिन्दी समझते और बोलते भी हैं ।
देश के उ।प्र, बिहार ,में तो भोजपुरी, अंगिका , मागधी , मैथली आदी बोली जाती हैं, जिसे हिन्दी भाषी सरलता से समझ जाते हैं । हिन्दी एक सम्पर्क भाषा होने के कारण, मैं इसे गर्व के साथ अपनाने का निवेदन करता हूँ ।

आज गली -गली में जिस तरह कुकुर मुत्ते की तरह अंग्रेजी माध्यम के स्कुल खुलते जा रहे हैं और उसे चलाने वाले कोई बहुत विद्वान नहीं होते, वे तो मात्र देश के मानसीक गुलामी का फ़ायदा उठा कर शैक्षणिक व्यपार में लिप्त हैं, अत: ऐसे कुप्रयास का तो विरोध करना ही हैं , जो लकीर को मिटाने के समान होगा । इसी बात को मैं अपनी तरिके से निवेदन करना चाहता हूँ । बड़े होकर जिसे अंग्रेजी भाषी देश में जाना हो, वे अंग्रेजी सीखे ,जो चीन जाना चाहते हैं वे चाईनीज सीखे ,रूस जाने वाले रूसी सीखे ,अरब देश में अरबी सीख कर जाए, कोई मनाही नहीं है।

आपको बता दूँ कि मैं प्रतिक्रिया वादी नहीं हूँ ,दिल की गहराई से जो आवाज निकलती हैं उसे बाटंने का प्रयत्न करना चाहता हूँ ।
राष्ट्र को समृद्धिशाली बनाने के लिए ,राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीयता को समृद्धि बनाना आवश्यक हैं ।

एक मिनट में एस.के.राय को बदल दिया---इसे कहते हैं हिन्दी का ताकत

परिवर्तण ही जीवन हैं ,दुनियॉं में हर वक्त कुछ न कुछ परिवर्तण होता ही रहता हैं ,होना भी चाहिए ,एक ही धारा में चलते -चलते थकान भी महशुस होता हैं 1 आज अंग्रेजी के बहाने मेरे अनेक मित्रों ने मुझे परिवर्तण कर दिया,अंग्रेजी एस.के.राय को हिन्दी राय बना दिया ,अब तो बहुत अच्छा लग रहा हैं ,जी.के. अवधिया जी ने भी इसमें बहुत मदद किया है ,समीर भाई का तो क्या कहने, आपने तो एक सरल तरीका ही टिप में डाल दिया 1
बार -बार सेटिंग में जाकर अंग्रेजी को हिन्दी में करना चाहा ,हर बार असफलता ..... अंकिता को बुला लिया ,अंकिता मेरी बेटी हैं । बोली जादु कर देती हूँ ,एक स्थान में एस.के.राय हिन्दी में लिख कर कॉपी -पेस्ट कर दी ,मैं जिसके लिए घन्टों परिश्रम कर रहा था ,एक मिनट में सचमुच जादु हो गया ...........अब ``मेरे विचार´´ लगता हैं समीर जी के शब्दों में एस.के.राय के विचार हो जाएगा ।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

उड़न तश्तरी के समीर भाई ---आप तो मित्र हो ---

हिन्दी दिवस के स्थान पर अंग्रेजी की अर्थी दिवस पर जो विचार ब्लोग के माध्यम से मैंने लोगों तक पहुँचाने की कोशिस किया हैं उस पर अनेक टिका टिप्पणी के पश्चात मुझे लगता हैं कि हम सभी को हिन्दी के प्रति बहुत सम्मान हैं ,हो सकता हैं कि कुछ लोग किसी मजबुरी के लिए अंग्रेजी को सम्पर्क भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हो ,पर समयानूकुल हिन्दी का ही पक्ष मजबुती से सामने रखना चाहते हैं ।
आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पनी भेजी हैं, जिसे मैंने कई बार पढा ,रोचक और ज्ञानवर्धक टिप्पणी के लिए ससम्मान धन्यवाद । टिप्पणी को प्रकाशित कर दिया गया हैं । विशेष रूप से महफूज अली जी के टिप्पणी तो गागर में सागर हैं ।
संगीता पुरी जी ने भी बहुत अच्छी बाते लिखी हैं ,हिन्दी सम्पन्न बने ,पर सकारात्मक सोच के साथ ,खुद बडा हो जाए तो सामने वाला छोटा होना तय हैं और अंग्रेजी ज्ञान का भण्डार हैं ,आदी ...जरा महाभारत काल को मनन करने की कोशिस करें तो सच्चाई पर चलने वाले पाण्डव के साथ क्या घटना घटती हैं और आखीर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लड़ाई करने का उपदेश दिया ,हम सच्चाई पर चलने पर भी कौरव पक्ष आज भी सक्रिय हैं अत: न चाहते हुए भी कौरव को सबक सिखाना अति आवश्यक हैं ।आप बडा होना चाहते हैं, पर आपका कद वर्तमान परिस्थिती के कारण छोटा कर दिया जाता हैं ,अत: परिस्थिती को अनुकुल करने के पश्चात ही कद बड़ा या छोटा प्राकृतिक नियमानुसार सम्भव हैं । काशिफ आरिफ जी ने तो मुझे प्रमाण पत्र ही दे दिया ,हिन्दी ही उत्तम ...

उडन तश्तरी और समीर जी ने प्रथम टिप्पणी न देखपाने की बाते लिखी हैं ,समीरजी !मैं कार्यक्षेत्र पर था ,आप देखिए मेरी अधिकांश आलेख रात की ही होगी ,रात में प्राय: सभी मेल और अन्य टिप्पनीयॉं देखने की कोशिस करता हूं, अत: आपको रात को ही पढ पाया ।
आलेख में मैंने हिन्दी को राष्ट्र भाषा होने के साथ ही साथ एक अच्छा सम्पर्क भाषा होने के लिए भाषा में सर्वोच्च स्थान पर रखने की कोशिस किया हैं । जैसे देश की राष्टीय ध्वज मात्र कपड़े की टुकड़े नहीं होती ,उसी तरह हिन्दी भी मात्र भाषा नहीं ,पर देश की प्राण हैं ।
अंग्रेज इस देश में मात्र राज करते तो शायद विशेष क्षती नहीं होती ,अंग्रेजों ने तो यहॉं के संस्कृति पर हमला किया हैं , शिक्षा पर हमला किया हैं ,जीवन के हर पहलूओं को नेस्तानाबुत किया हैं जोर जूल्म के साथ इस देश में गुरूकुल के स्थान पर कान्वेन्ट चालु किया हैं ,यहॉं जुल्म के साथ ईसाइ मत का प्रचार किया हैं । अंग्रेजी बहुत अच्छी भाषा , और भारत वर्ष की सभी भाषा तुच्छ हैं ,ऐसा प्रचार करना किसी भी तरह क्षम्य नहीं हैं ।
यदि गान्धीजी होते तो हो सकता था कि वे अंग्रेजों को क्षमा कर देते ,पर मैं किसी भी किंमत पर उन्हें क्षमा नहीं कर सकता हूँ । मैं अंग्रेज और अंग्रेजी को अलग नहीं कर सकता ,मैं अपराध और अपराधी को भी अलग नजर से नहीं देखता , यदि दोनों भीन्न होता तो न्यायालय अपराधी को कैद की सजा क्यों देते हैं ? अपराधी के मन से अपराध को निकालकर उस अप्रत्यक्ष अपराध बोध को कैद में क्यों नहीं डाल सकते ?
अंग्रेज दुनियॉं मे जहॉं -जहॉं गया ,वहॉं बरबादी को ही प्रोत्साहन दिया हैं, अत: अंग्रेज और अंग्रेजी क्षमायोग्य नहीं । अंग्रेजी धौस जमाने की भाषा हैं अत:, मुझे इस पर कोई सहानुभूती नहीं है।
समीरजी विचार तो विचार हैं ,दुनियॉं में सभी पहलुओं के लिए सभी का विचार एक जैसे हो ,कोई जरूरी हैं क्या ? आपने अपना काम किया ,मैंने मेरा काम किया हैं , विचार भिन्नता के कारण आज के नेताओं जैसे हम थोड़े ही लडेंगे ? आप तो मित्र हैं , तभी तो एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान होता हैं । खूब लिखिए और कोशिस करूंगा जवाब भी दे सकूँ । क्षमा वगैरा की कोई आवश्यकता नहीं ....................
प्रवीण शाह को भी धन्यवाद । एक बहुत अच्छी बात आपने लिखी हैं ,कि सबसे पहले एस.के.राय को अंग्रेजी से हटा कर हिन्दी किया जाए । मैंने भी अनेक बार कोशिस किया, पर हटता ही नहीं , यदि कोई टीप हो तो मुझे अवश्य बताने का कष्ट करें । देश में कानून की किताबे ,विज्ञान और अन्य किताबे भी अभी मिलने लगे हैं, यदि हम सभी बाजार में हिन्दी की मांग करें तो अधिकाधिक छपवाने का भी व्यवस्था करना ही पड़ेगा ।

उड़न तश्तरी के लाल जी को हिन्दी टिपण्णी पर सादुवाद ओर सुझाव---

जब से मैंने ब्लोग में लिखना शुरू किया किया हैं तब से किसी पर व्यक्तिगत रूप में कुछ भी आक्षेप नहीं लगाया हैं ,न ऐसा मंशा कभी था और न आज है। जब राष्ट्रहित और जनहित की बात आती हैं तो विपरीत टिप्पनी पर लिखना मजबूरी के साथ फर्ज भी हो जाता हैं ।
मैं उड़न तस्तरी के लालजी को बताना चाहता हूँ कि जब अंग्रेजों के साथ आजादी सम्बन्धी चर्चा चल रही थी तो डोमिनियन स्टैट के बारे में भी विकल्प के रूप बात चली ,आपको पता होगा कि गान्धी जी के डोमिनियन स्टैट पर हामी भरने के कारण ,अधिकांश लोगों ने उसका विरोध भी किया ,नेताजी ने तो यहॉं तक कहॉं कि आजादी का अर्थ पुर्नस्वराज हैं ,हम लेंगे तो पूरी लेंगे ,अधुरी बातों पर हमें विस्वास नहीं हैं । डोमिनियन स्टैट का अर्थ रक्षा ,विदेश - नीति सम्बन्धी सभी अधिकार अंग्रेजों के हाथ में होगी और हमें केवल आन्तरिक मामले में अधिकार प्राप्त होगा ।
हमने अंग्रेजों को मीटाकर ही स्वराज हासिल कर सकें हैं ,यदि गुलामी का दर्द आजादी के दीवानों को न होता तो शायद देश आजाद भी नहीं होता ,अंग्रेजी का मोह जब तक हमारे मानसिक पटल से साफ न हो जाए, तब तक कितने ही अच्छे शब्द जाल से लिखते हुए लोगों को रिझा ले ,अपने पक्ष में व्होट डलवा ले , उससे देश और समाज का भला नहीं हो सकता हैं ।
लाल जी ! आज भारतवर्ष में आप सर्वे करवा लें कि कितने भारत वासी अंग्रेजी समझते और बोल सकते हैं ? मुठि्ठ भर लोग अंग्रेजी के नशे में अपने आप को महान घोषित कर रखा हैं । यदि चीन बगैर अंग्रेजी के तरक्की कर सकता हैं ,फ्रांस ,रूस ,जपान,जर्मनी,क्या अंग्रेजी के बलबुते में विकास हुआ हैं ? वहॉं तो अंग्रेजी में बाते करने पर उसे जोकर की तरह देखते हैं ।
अंग्रेजी जैसे भिखारी भाषा तो दुनियॉं में हैं ही नहीं ,जहॉं आज भी पारिवारिक रिस्तों के लिए सम्बोधन शब्दों का अभाव हैं । दुनियॉ के सभी भाषाओँ से उधार लेकर अंग्रेजी काम चलाता हैं ,अत: हिन्दी अंग्रेजी से सम्पन्न भाषा हैं, इसे समृद्ध बनाने के लिए लकीर को छोटी करने की आवश्यकता नहीं हैं ,जो छोटी हैं उसे बडी साबित करने की मुझे आवश्यकता नहीं हैं ,मैं तो हिन्दी जैसे समृद्ध भाषा को शडयंत्र पूर्वक छोटी करने का जो प्रयास करता हैं उस पर आवाज उठाता रहूंगा ,जरूरत हैं मानसिक समृद्धि की ,जरूरत हैं राष्ट्रवाद पर चलते हुए विश्व की सोच रखने की ,हम अपने घर में विदेशीपन को पनाह देकर ,राष्ट्र और राष्ट्रिय भाषा की समृद्धि कभी नहीं कर सकते हैं ।

बुधवार, 16 सितंबर 2009

भूल जाइए हिन्दी दिवस ---

मैंने अंग्रेजी दिवस मनाते हुए आज तक न देखा और न सुना हैं ,हर वर्ष धुमधाम से हिन्दी दिवस मनाने का एक परम्परा इस देश में चल निकला हैं । मेरे मित्र ने अभी हिन्दी दिवस के दिन फोन पर सम्पर्क किया और कहा कि फ्रेन्ड हिन्दी डे मनाना है होटल .....में 10 ए एम को आना जरूरी हैं । मैंने दोस्त को कहा कि भाई मैं तो आज का दिन अंग्रेजी की अर्थि दिवस के रूप में मनाना चाहता हूँ , क्या ऐसा नहीं हो सकता ?
हिन्दी दिवस में अग्रेजी की अर्थि दिवस मनाने से एक खास समाचार जनता तक पहुँचेगी कि जब तक अंग्रेजी का अर्थि इस देश से न निकले तब तक हिन्दी का भला हो ही नहीं सकता हैं । एक ही बील में सॉंप और चूहा कैसे रह सकता हैं ? अब अंग्रेजी सॉंप हैं या चूहा यह तो हम सबको मिलकर सोचना होगा । हमारे देश में तो दोनों का पूजा होता हैं ,एक ओर नाग देवता, दूसरी ओर गणेश जी के वाहन । मुझे तो बस भावना से आगे हिन्दी का विकास चाहिए ।
स्वामी विवेकान्द ने तो सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी को ही विशेष स्थान दिया था ,यदि राष्ट्रभाषा के रूप में आज भी हिन्दी उपेक्षित हैं तो उसका एक मात्र कारण हैं कि हम अंग्रेजी का गुलाम बन चूके हैं ।
जिस तरह घर के प्रियजन के मौत होने के पश्चात यथाशीघ्र शव को परम्परानुसार क्रिया कर्म किया जाता हैं ,क्योंकि सभी को भय रहता हैं कि यदि सडन लग जाए तो रहना मुस्किल हो जाएगा । ठीक उसी प्रकार जिस दिन इस देश से अंग्रेज सत्ता की मौत हो चूकी थी उसी दिन से अंग्रेजी और अंग्रेजीयत की शव को दफन कफन कर देना चाहिए था । पर ऐसा नहीं हुआ ,अत: उस शव के सडन से दुर्गन्ध तो आना ही हैं ।
जितनी जल्दी हो सके अंग्रेजी की अर्थि उठाकर दफन कर दिया जाए ,नही तो बदबू से तमाम प्रकार के रोगों से हम मरते रहेंगे ।
प्रथमत: धनादेश पर हिन्दी में ही हस्ताक्षर करना शुरू किया जा सकता हैं । अक्षरों को हिन्दी में लिखना और वाक्यों में लिखना अपने आप में कान्तिकारी कदम हो सकता हैं । मैंने यह किया हैं ,अच्छा लगता हैं, आप भी यदि सचमुच हिन्दी का भला चाहते हैं तो अवश्य शुरू किजीए । यदि असुद्ध होने लगे तो भय की क्या बात हैं ? शुद्ध असुद्ध तो हमने तय किया हैं ,जब मरा -मरा जपते हुए रत्नाकर दस्यु वािल्मकी बनकर रामायण की रचना कर सकते हैं तो क्या असुद्ध लिखते लिखते शुद्ध नहीं हो जाएगा ?
बंगला भाषी होने पर भी मैंने हिन्दी में लिखना शुरू किया हैं ,असुद्ध लिखता हूँ ,पहले और आज के लेखन में मैंने स्वयं बहुत अन्तर देख रहा हूँ ,उन अंग्रेजों के औलादों से तो मैं ठीक कर रहा हूं न ?? छोटी छोटी शुरूआत समुद्र भी बनेगा ...अवश्य बनेगा....इसलिए हिन्दी दिवस भूल जाइए ..अंग्रेजी का अर्थि दिवस प्रारंभ....तो देर किस बात की ...

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

देश के हरामखोरों को चैन से सोने नहीं दूंगा

इस देश से प्रजातंत्र और लोकतंत्र तो गुप्त सम्राज्य के पतन होने के साथ -साथ समाप्त हो चुका हैं 1
ओर पीछे चले तो सम्राट अशोक याद आता हैं ,इतिहास के जानकार दोनों पर विशेष शोध करके वस्तुस्थिति से जनता को जानकारी दे सकते हैं ,भारत वर्ष के महान लोकतंत्र हजारों वर्ष पुरानी हैं, हमें इस पर गर्व होना चाहिए ।
भारत वर्ष में प्रजातंत्र के नाम से जो शोषण तंत्र का जाल चारों ओर बिछाया गया हैं ,उसका परिणाम भी सभी के सामने हैं । देश में आज कोई भी सुरक्षित नहीं रह गया हैं । जीवन का एक -एक पल भारी पड़ जाता हैं ,विकास के नाम से ,प्रगतिशील के नाम से जो ढॉंचे खड़े किए गए हैं आज सभी एक छलवा के सिवाय अन्य कुछ भी संज्ञा देना उचित नहीं लगता ।
देश की बागडोर ऐसे -ऐसे जोकरों के हाथ में हैं ,जिस पर टिप्पनि करना भी अपने आप को छोटा साबित करने के समान हैं ।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजादी के पश्चात कम से कम बीस वर्षों तक कल्याण- कारी तनाशाही लागू करने की योजना बहुत पूर्व देश के सामने रख चुके थे ,नेताजी जानते थे कि हजारों सालों से गुलाम प्रजा एका एक देश को नहीं चला सकते , प्रजातंत्र की सबसे बडी बाधा अशिक्षा, गरिबी, असमानता, बेरोजगारी, अन्धविस्वास ,ऊँच -नीच की भावना ,जाति-प्रथा आदी हैं ,अत: जब तक इन समस्याओं से हम योजना बद्ध तरीके से समाधान न कर ले तब तक लोकतंत्र सफल नहीं हो सकती1
यहॉं के स्वार्थी और अंग्रेजों के तलुए चाटने वाले कुछ नेताओं ने नेताजी के बात नहीं मने ,एक षडयंत्र के तहत उन्हें जीते जी मृत घोषित करके ,देश के भाग्य विधाता बन बैठे ।वर्तमान हालात को देखकर चुप रहना बहुत मुस्किल हो गया तो लिखना शुरू किया , कवि -लेखक ,साहित्य कार बनने का कभी सपना न था और न हैं ,अब तो देश के हरामखोरों को चैन से सोने नहीं दुंगा ।

सोमवार, 14 सितंबर 2009

अमेरिका असभ्य,बर्बर,कंगाल--कौन कहता हैं विकसित हैं --

कौन कहता हैं कि अमेरिका विकसित देश हैं ,सभ्य हैं ,धनी हैं ? इतिहास गवांह हैं कि अमेरिका एक असभ्य ,बर्बर ,कंगाल के सिवाय कुछ भी नहीं है ,जिस देश की बुनियाद 30 लाख रेड- इंडियानों की खुन से रंगा हो ,जो वंश ड्रेकुला से सम्बन्ध रखता हो ,जो स्थानिय लोगों को बेरहमी से कत्ल कर उनके धन सम्पत्ति को लूट कर आज अपने आप को विकसित घोषित करता हो ,उसे क्या इतिहास के जानकार विकसित और सभ्य कहलाएगा ?
आज नहीं तो कल अमेरिका के वास्तविक हकदार जगेगा और अपना हक छीन कर लूटेरों का भगाने का काम जरूर करेगा ,हम ऊपरी चकाचौध को ही सत्य मानने का भ्रम कर बैठे हैं ,आज भी क्या अमेरिका कंगाल नहीं हैं ?
दुनियॉ का एक भी ऐसा देश आज नजर नहीं आता जहॉं सैकडों बैंक दिवालिया हो चुके हो ,देश के बीमा कंपनीयॉं बरबाद हो गई हो , आटो क्षेत्र का दम निकल गया हो , लाखों लोग बेरोगार होकर नारकिय जीवन जीने को मजबुर हो , जहॉं का अर्थव्यावस्था ही खत्म हो चुका हैं, वह देश क्या विकसित कहलाने योग्य हैं ?
कंगालो को आज भी हम धनी कहलाने में नहीं चुकते ,जिसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं बचा हैं और उनके नीति को मानने वाले देश भी बरबादी के कगार पर खडी हैं, फिर भी हम अमेरिका के पिछलग्गु बने हुए हैं ।
भारत वर्ष में ऐसे अनेक लोग होंगे जिसका नाम धनीराम हैं ,लेकिन रहते हैं झोपड़ी में । नाम सोनाधर पर सोने की एक अंगुठी भी नसीब नहीं ,अमेरिका का भी यही हाल है। यदि अमेरिका से विदेशी डाक्टर ,विदेशी वैज्ञानिक , शोध में लगे विदेशी विद्वान आदी स्वदेश चले आए तो अमेरिका के पास अपना कहलाने लायक क्या बचेगा ?
35 से 40 प्रतिशत इंजिनीयर ,लगभग 30 प्रतिशत वैज्ञानिक , 30 प्रतिशत शोध के विद्वान , 40 प्रतिशत लगभग डाक्टर ,सभी भारत वर्ष के हैं । यदि ये लोग स्वदेश लौट आए तो अमेरिका का क्या होगा ? हम कह सकते हैं कि देश की जनसंख्या बढ जाने के कारण अनेक समस्या पैदा होगी ,जबकि हमारे पास आज भी इतने संसाधन हैं कि उनका सही उपयोग हो तो आज 1 अरब से अधिक जनसंख्या होने पर भी हम जिस तरह जीवन यापन कर रहे हैं यदि इतनी जनसंख्या ओर हो जाए अर्थात 2 अरब भी हो जाए तो हमें को असुविधा नहीं होने वाली हैं ।
हमें मात्र ईमानदारी से संसाधनों का सन्तुलित और सही उपयोग करना होगा ,फिर भी आज हम अमेरिका से किसी भी तरह १९ नहीं हैं , एक कमजोरी जो हमें बारबार गर्त में ले जाती हैं वह हैं अमेरिका के सामने कंगाल जैसे हाथ फैलाना । १९७१ का बंगलादेश युद्ध मुझे याद आता हैं जब अमेरिका ने हमारे खिलाफ पाकीस्थान को सहयोग के लिए सातवीं बेडे को भेज दिया था । रूस ने उस समय हमारे साथ दोस्ती ईमानदारी से निभाई और अमेरिका को धमकाते हुए अपनी नोवीं बेडे को हमारे सहयोग के लिए भेज दिया था । हमारे मुर्खराज लोगों ने रूस को भुला कर अमेरिका जैस धूर्त लम्पट ,
लूटेरों के साथ दोस्ती करने बार बार दौड़ता है।
जब जब भारत ने अमेरिका से दोस्ती का हाथ बढाया तब तब अमेरिका ने लात मारा फिर भी यहॉं के नेताओं को शर्म नहीं आती ,अमेरिका का लात आशिर्वाद मानकर ,चरणामृत समझकर नेताओं ने सर पर लगाया ,कारगील के लड़ाई में भी अमेरिका ने पाकीस्थान का साथ दिया , पाकिस्थान को अमेरिका ने जब जब अर्थिक और युद्ध सामग्री दी तब तब वह भारत के खिलाफ प्रयोग किया अमेरिका को मना करने पर भी हमारा निवेदन कभी नहीं सुना, ऐसे गद्दारों के साथ आज भी कुछ अमेरिकी गुलाम जो सत्ता में बैठे हुए हैं ,वे इस देश को बरबाद करके ही दम लेगें ।

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

तमिलों को नंगा करके -आंखों में पट्टी बाँध कर -गोलिओं से भुना जा रहा हैं

एक ईमेल ने मुझे पेरशान कर रखा हैं ,मैं सोचने को मजबूर हो गया कि आज 21वीं सदी में जो कुछ भी हो रहा हैं वह तो प्राचीन पाषण काल में भी नहीं होता था ,ईमेल श्री लंका में तमिलों पर हो रही फौजी अत्याचार से सम्बन्ध रखता हैं ,एक व्ही डी ओ क्लिप भी साथ में भेजा गया , मानवतावादी संगठनों द्वारा प्रजातंत्र की रक्षा के लिए एक साथ श्रीलंका में चल रही अमानवीय कुकृत्य पर पर्दा उठाकर दूनियॉं को झकझोर कर रख दिया ।
क्या आज यह विस्वास योग्य हैं कि श्रीलंका तमिलों को पकड़ कर लिट्टे के नाम से उसे नंगा करके ऑंखों में पट्टी बॉंध कर खुलेआम गोलियों से भूल डाले ? आज श्रीलंका में वह सब कुछ हो रहा हैं ,जो मानवता के नाम से कलंक हैं ।
एक समाचार कल ही मैंने पढा हैं जिसमें अमेरिका के युद्ध सामिग्र बनाने वाले सभी कंपनीयॉं कम से कम 5 गुणा मुनाफा कमाया हैं जहॉं अमेरिका में बैंक, बीमा ,साप्टवेयर कंपनियॉं ,आटो उद्योग सभी मंदी के कारण बंद हो चुकी हैं, वही युद्ध सामिग्र बनाने वाली कंपनियॉं लाभ कैसे कमा सकती हैं ? उत्तर सरल है कि अमेरिका पक्ष -विपक्ष सभी को हथियार प्रदान कर उपकृत करती हैं और भारी मुनाफा कमाने में लगी हुई हैं ,अमेरिका यदि छोटे बड़े सभी देशो और संगठनों को हथियार न दे तो दुनियॉं में शान्ति स्थापित होने में देर नहीं लगेगी ।
अमेरिका में बने हथियारों से एक विश्व युद्ध सा चल निकला हैं , प्रजा पर प्राणाघात प्रहार किसी भी किंमत पर सहमती योग्य हो ही नहीं सकता ,चाहे यह प्रहार कोई भी ,किसी भी नाम से ही क्यों न करें । मनुष्य जब जान दे नहीं सकता तो उसे किसी का जान लेने का अधिकार भी नहीं हैं । मनुष्य में देश के सरकार ,फौज ,हथियारों द्वारा लड़ने वाले लोग सभी आ जाते है। लडाई शुरू होने से पहले ही उसके तह तक जा कर उसे खत्म करना चाहिए ,आज तो उल्टा हो रहा हैं ।
छोटी -छोटी लड़ाई की परीक्षा ली जाती हैं ,और इन्तेजार किया जाता हैं ताकि लड़ाई आप ही आप खत्म हो जाए , परन्तु ऐसा नहीं होता ,कभी कभी यदि आप ही आप लड़ाई खत्म भी हो जाए तो, आगे और अधिक उग्र रूप से वह चालू भी हो जाने के कारण उसे सम्भालना मुस्किल हो जाता हैं । एक तो दुनियॉं से हथियारों का व्यापार बंद होना चाहिए ,जो शायद ही हो ,कारण अमेरिका का बुनियाद ही हथियार हैं । दुनियॉ के बारे में उसे सोचने का समय ही नहीं हैं ।
मानवता पर अत्याचार कदापी सहन योग्य नहीं हैं ,चाहे श्री लंका हो ,इराक हो ,ईरान हो , तालिवान ,पाकिस्थान या भारत हो । मानवता के खिलाफ जो भी कार्य करें उसके खिलाफ शान्ति पूर्वक ढंग से विरोध तो सुधी जनों को अवश्य ही करनी चाहिए ,अन्यथा मानव केवल दो हाथ पैर के पशु के सिवाय कुछ भी कहलाने लायक नहीं हैं ।

रविवार, 6 सितंबर 2009

उन लोगों को शर्म नहीं आती --बेशर्म ,बेहया ,अमानुष --

करोड़ों ,अरबों की सम्पत्ति छोड़कर धीरूभाई अम्बानी इस दुनियॉं को छोड़ चले गए ,वे जीते जी शायद ही कभी सोचे होंगे कि उनके चले जाने के तुरंत बाद दोनों भाई सम्पित्त के लिए लड़ने लगेंगे, मामूली पेट्रोल पम्प में काम करने वाले धीरूभाईजी अम्बानी ने अकूत धन सम्पत्ति का जो साम्राज्य खड़े करके चले गए ,मेरे जैसे लोग यह सोच-सोच कर पेरेशान हैं कि जादू सा क्या धन- सम्पत्ति आकाश से टपका होगा ? कई पीढी तक लगातार प्रयत्न करने के पश्चात भी कुबेर सा सम्पत्ति बनाना असम्भव होता हैं ,फिर जीवन के द्वितीय सोपान में ही इतनी सम्पत्ति कहॉं से टपक गया हैं ?
इस देश में किस तरह धन बनाया जाता हैं यह तो एक साधारण सा आदमी भी आज समझने लगे हैं ।लेकिन लूट के माल जिस तरह बटवॉंरे के समय लूटेरे लड़ते हैं और बाद में इसी लड़ाई का परिणाम जेल तक का सफर बनकर अंत होता हैं ,ठीक इसी तरह ही अम्बानीभाई के साथ हुआ हैं ,इससे अधिक कहना अच्छा नहीं लगता ।
धन सम्पत्ति बनाने के लिए न्याय ,अन्याय, नीति ,अनीति का ख्याल तो रखना ही - चाहिए , आखिर धन सम्तत्ति इकट्ठा करने की हमारे धर्मशात्र अकुंश लगाती हैं । धर्म के ठेकेदार इस देश के कुबेरों को इस बात के लिए क्यों नसिहत नहीं देते, यह समझ से परे नहीं हैं । देश की सारी धन सम्पत्ति मुठि्ठ भर लोगों के हाथों में केंद्रित हो जाने के परिणाम स्वरूप आज समाज के हर अंग में विकृती परिलक्षित हो रहा हैं ।
मनुष्य मात्र धन सम्पत्ति का अम्बार लगाने का मशीन नहीं हैं ,इस दुनियॉं में उनके लिए अन्य अनेक कार्य हैं, जिसे समयानुकूल सभी को करना ही चाहिए ,हमारे गुरुजनों ने चार - आश्रम व्यावस्था की परिकल्पना भी इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया था,परन्तु आज हम अपने पूज्यजनों का कहना मानना तोहिन समझते हैं । अपरिग्रह नीति का अपमान करने में ऐसे लोगों को मजा आता हैं । देश जाए भाड़ में ,देश के लोग कंगाल हो जाए , मर जाए ,आत्महत्या कर ले , गरिबी से सड़ गल कर मर जाए, अनपढ गंवार हो कर गुलामी की जीवन ढोते रहे ,पर ऐसे धन पिशाचों को तो केवल चिटियों की भांती एकत्रित करने में ही मजा आता है, भले ही उसका कोई काम न आवे ।
धन इकट्ठा करना भी एक मानसीक रोग हैं और हम इन रोगीयों का तारिफ करते नहीं थकते । मनसीक रोगीयों का ईलाज होना चाहिए था, परन्तु हम उन्हें खुले आम छुट दे रहे हैं । क्या पागलों की तरह इन रोगीयों को ईलाज के लिए मानसीक चिकित्सालय में नहीं भेजना चाहिए ? अभी हाल ही में आन्ध्रप्रदेश की मुख्यमंत्री दुर्घटना में मारे गए ,माधव राव सिंधिया,प्रमोद महाजन आदी के पास भी तो करोड़ों की धन सम्पत्ति थी ,आज उस धन सम्पत्ति का उपयोग क्या हो रहा हैं ,यह सभी लोग देख सकते हैं । इस लिए साध्य और साधन का जो बाते धर्म ग्रन्थों में उल्लेख किया गया हैं वह कोई मजाक में नहीं लिखा गया हैं । हमें उन पर आमल करना चाहिए था ,पर कर रहे हैं उसके ठीक उल्टा , जिस पेड़ के डाली में बैठे हैं ,कालिदास उसी पेड़ के डाली को काटने लगे थे ,हम कालिदास को पकड़ कर राज कन्या से शादी कर देते हैं । आज भी हम वही सब कर रहे हैं जो हजारों वर्ष पूर्व सबक के लिए हमें विद्वानों ने बार बार चेताया करते थे , हम चेतने में भी अपमानित महशुस करते हैं ......मैं तो बस यही कहना चाहता हूँ कि बहूत हो चूका हैं .........उन लोगों को शर्म नहीं आती बेशर्म, बेहया- अमानुश ..........

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

प्रकृति बचाओ या मौत के लिए तैयार हो जाओ

विष कन्याओं की किस्सा तो अनेक स्थानों में उल्लेख मिलता हैं ,परन्तु आज विश्व के प्राय: प्रत्येक स्थान में विष मानव पैदा हो रहा हैं ,गुप्तचरी के किस्से कहानीओं से आगे सचमुच मनुष्य आज विष खाने पीने का आदी हो चुका हैं । जैसे -जैसे जल-जमीन और जंगलों से मनुष्य का नाता टुटता जा रहा हैं वैसे -वैसे मानव ही नहीं पशु भी जहरीला बनता जा रहा हैं । जहॉं देखो जहर का ही खेल हैं । प्रात: काल से सोने तक हम आज जहर पर ही निर्भर होते जा रहे हैं ,समय ऐसा आएगा जब हम जहर के वगैर जीवन की कल्पना करना भी भुल जायेंगे , हम भुल जायेंगे कि इस धरती पर कभी आक्सिजन करके कोई जीवन वायु हुआ करता था । आक्सीजन के सिलेण्डर पीठ में लटका कर हमें जीना होगा और दूसरी पीढी के लोग तो इसकी आदी हो चुकी होगी , उन्हें ये सब सामान्य लगने लगेगा । कही भी आज पर्यावरण का जिस ढंग से विनाश किया जा रहा हैं उसे सुनकर और देख कर रोंगटे खडी हो जाती हैं । आश्चर्य तो तब और अधिक होता हैं कि पर्यावरण विभाग जैसे संस्थान ही मिली भगत करके पर्यावरण का ही दुश्मन बन बैठे हैं, यदि इस विभाग को बंद कर दिया जाए तो कुछ समय तक पर्यावरण दूषित होने से बच सकती हैं ,आज इस विभाग को बंद कर देने की अतिआवश्यकता हैं । कोयला दोहन करने का तो एक जुनून सा पैदा हो गया हैं ,कोयला नही तो जीवन नहीं का एक नया नारा ही बना लिया गया हैं । आज भूगर्भ से जिस तरह खनिजों का अति दोहन हो रहा हैं जिसके चलते जल -जंगल -जमीन सीमित हो कर मानव ही नहीं सम्पूर्ण जीव जगत के लिए चुनौती बन गया हैं । प्राणी इस जगत में रह पाएगा कि नहीं यह विचारनीय प्रश्न हैं । विकास का जो परिभाशा हमें बताया जा रहा हैं वह परिभाषा ही गलत अवधारनाओं पर आधारित होने के कारण आज विनाश ही विनाश देखते हुए सुधी जन वेचैन हैं ,लिख लिखकर लोग थक गए हैं ,समझा बुझाने का कोई असर ही नहीं होता हैं, आज रक्षक ही भक्षक बन कर प्राणी जगत का विनाश करने को तूले हुए हैं ,दुर्योधन जैसे लोग आज समझने को तैयार ही नहीं ,अपनी स्वार्थ के आगे सब बौना साबित हो रहा हैं ,ऐसे घनघोर स्थिति से कैसे निजात पाया जाए यह हम सभी को तुरंत सोचना होगा ,आज हंसी मजाक का समय बीत चुका हैं, जब संकट प्राणी जगत पर आ ही गया हैं तो सबसे पहले इस संकट को खत्म करके फिर अन्य सभी कार्य किया जा सकता हैं । इस वर्ष वर्षा की कमी के कारण सुखे की स्थिति पैदा होने के पीछे मानव निर्मित षडयंत्र ही हैं । प्रकृति तो दयामयी हैं ,प्राणों का प्राण हैं ,प्रकुति माया हैं ,प्रकृति छाया हैं ,प्रकृति क्षमा हैं ,प्रकृति मॉं हैं ,सुख का भण्डार हैं ,फिर आज मॉं की गोद खाली क्यों हैं ? प्रकृति विनाश लीला दिखाने को मजबूर क्यों हैं ? किसने किया प्रकृति को मजबूर ? आज जवाब चाहिए ...समाधान चाहिए ,चाहे कुछ भी किंमत चुकाना पड़े प्रकृति के दुश्मनों का नाश आज करना ही होगा ...कौन आज प्रकृति को बचाएगा ? कौन आज सामने आएगा ? अगली पीढी को बचाने के लिए आज हमे त्याग करना ही होगा .....करो या मरो का नारा फिर से देने का समय आ चुका हैं । प्रकृति बचाओ या मौत के लिए तैयार हो जाओ । ....

हेलीकाप्टर दुर्घटना गैर इरादा हत्या हैं --पाँचों मृतात्मा को ईश्वर शान्ति प्रदान करें

आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री राजशेखर और हेलीकॉप्टर में सवार चालक दलसहित 4 अन्य लोगों का अकाल मृत्यु को किसी भी तरह सामान्य नहीं कहा जा सकता हैं । आधुनिक और नकनीकी ज्ञान पर दम्भ करने वाले लोगों को समझना चाहिए कि जब धुंध के कारण आकाश मार्ग सुरक्षित नहीं होता तो हेलीकॉप्टर को उड़ान के लिए आदेश देने वाले वे कौन लोग थे जो बीना सोचे समझे उड़ान भरने के लिए हामी भर देते हैं ? क्या ऐसे लोगों को वक्श देना चाहिए ? कल रात को मुख्यमंत्री कार्यलय यह कहने लगे कि हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुई हैं और आज दोपहर तक अथक प्रयन्त करके सभी का शव बरामद कर लिया गया । मात्र बदली के कारण यदि इस तरह की दुर्घटना हुई हैं तो हम आज भी कितने अनाड़ी और दम्भी हैं कि नकनीकी अकाल मृत्यु को रोक नहीं पा रहे हैं । अत्यन्त दु:ख के साथ लिखना पड़ रहा हैं कि जंगल में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना होने पर उसे खोजने के लिए हमें अमेरीका से मदद मांगना पड़ता हैं । मांगने का आदत जो पड़ा हुआ हैं । एक समय देश के लोगों को अमेरीका द्वारा दिया गया लाल गेहूं बॉटा गया था ,ऐसी गेहूं जिसे अमेरिका में जानवर भी नहीं खाता ,राजीव गान्धी एक बार अमेरिका से सुपरकम्प्युटर मांगने गए थे और अमेरिका ने इंकार कर दिया ,उस समय राजीव गान्धी को बहुत दु:ख हुआ था , देश के वैज्ञानिकों ने अपने ही संशाधनों से अमेरिका से भी अच्छी सुपर कम्प्युटर तैयार कर दिया जो विश्व में चुनौती से कम नहीं हैं । खैर जो भी हो हम जब अरबों रूपये रक्षा साधनों पर खर्च कर सकते हैं तो आपात काल के लिए भी हमें सम्पूर्ण तैयारी करना अति आवश्यक हैं ।इस तरह की घटना को दुर्घटना नहीं कहा जा सकता हैं यह गैर इरादा हत्या से कम नहीं हैं 1 मैं मृतात्मा की शान्ती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ ।

बुधवार, 2 सितंबर 2009

आन्ध्रप्रदेश के ५ सथिओं साथ मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी हेलीकाप्टर सहित लापता -खोज जारी

आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी हेलीकॉप्टर से दौरे पर जा रहे थे ,सुबह हैदराबाद से चित्तूर जाने के कल सुबह 9.30 के बीच गॉव वालों ने हेलीकॉप्टर को देखा था और अचानक 9.35 के बाद हेलीकॉप्टर से सम्पर्क टुटने के बाद आभी 12 घन्टे तक कोई सूराग नहीं मिल पाया हैं । मिडिया ने खबर दी हैं कि सी एम कार्यालय से जानकारी मिली हैं कि सीएम सुरक्षित है । परन्तु सवाल उठता हैं कि हेलिकॉप्टर में जब इ एल टी सिस्टम लगी हुई हैं तो वह खामौश क्यों हैं ? इ एल टी अर्थात एमरजेंसी लोकेशन ट्रांसमिटर जो खतरे को भापते हुए जोर जोर से आवाज करने लगती हैं । यदि हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुई हैं ,तो उससे आवाज आना चाहिए था, पर वह चूप हैं जो एक बहुत बड़ा सवाल बनकर उभर रहा हैं । शाम ढलते ही खोज में निकली 7 हेलीकॉप्टर, खोज करना बंद कर दिया हैं कयोंकि रात को हेलीकॉप्टर खोज का काम नहीं कर सकता हैं । सेना सतर्क हो चूकी हैं और अब तक का सबसे बड़ा खोजी आपरेशन का कार्य शुरू भी कर दिया गया हैं ,सेना द्वारा सूखोई 30 को भी इस खोज मे लगा कर बहुत अच्छा किया हैं, यह वही सुखोई हैं जो रूस ने हाल ही में हमने ख़रीदा हैं, एक उच्च तकनीकी और रडार से लैस हवाई विमान द्वारा जंगलों में खोज कार्य में जूट चूकी हैं , इसरो भी मदद कर रही है । आगे किसी तरह की भी चूक न हो इसलिए अमेरिका से भी मदद मांगा गया हैं । कुल मिला कर देश में एक आपातकाल सा माहौल निर्मित हो चुका हैं । आलाकमान भी सक्रिय हो गया , श्रीमती सोनिया गान्धी ने भी आपात कालीन बैठक बुलाई हैं । केन्द्रीय गृह मंत्री ,प्रधान मंत्री सभी सी एम के लापता होने के कारण चिन्तीत हैं । मिडिया भी अपना जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं । ऐसा लगता हैं कि बहुत ही जल्दी कामयाबी हाथ जरूर लगेगी ।ऐसी नाजुक समय में हम सभी को ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए ताकी बहुत बड़े खतरे से हम उबर सके । सबसे चिन्तनीय बात यह हैं कि जहॉं हेलीकॉप्टर से सम्पर्क कट चूकी हैं, वहॉं नक्सलीयों का गढ हैं और जंगलों से घिरा हुआ हैं , जंगल भी बीहड हैं अत: मुझे तो ऐसा लग रहा हैं कि नक्शली ,सी एम का अपहरण न कर लिया हो ! यदि नक्शली ऐसा करता हैं तो निश्चित ही फिरौती के नाम पर खूंखार साथियों को जेल से छुडाने जैसी मांग भी रख सकता हैं । अभी तो हम सी एम और उनके साथ गए 5 लोगों को सही सलामत होने का प्रार्थना ही कर सकतें हैं । मुझे एक बात से आश्चर्य होता हैं कि इलेक्ट्रानिक मिडिया अभी तक मुख्यमंत्री के साथ गए 5 लोगों का नाम भी नहीं बताया हैं । आश्चर्य तो बस्तर में हुए हेलीकॉप्टर दुर्घटना का होता हैं जिसमें अनेक साथियों के साथ एक एस पी भी शहीद हो गए थे , उस समय महिनों बाद ही हेलीकॉंप्टर का मलवा मिल पाया था , मुझे शायद दोनों घटनाओं को एक करके नहीं देखना चाहिए ,परन्तु कभी -कभी कुछ घटनाओं को भूलाया नहीं जा सकता । कुछ नाजुक घटनाओं पर सभी का रवैया सहानुभूति पूर्वक होना चहिए ,ऐसी घटनाओं को बड़े छोटे का भेद भाव भुल कर सेवा भाव से सभी को क्षमतानुसार आगे आकर अपनी हिस्सेदारी का निर्वाहन करना चाहिए । हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें कि राजशेखर रेड्डी और हेलीकॉप्टर में सवार अन्य 5 साथि सुरक्षित रहे, उनके परिवार को इस दुख के समय में ईश्वर मदद करें1

आंध्र प्रदेश के ५ साथियों के साथ मुख्य मंत्री राजशेखेर रेड्डी हेलीकॉप्टर सहित लापता-खोज जारी

आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी हेलीकॉप्टर से दौरे पर जा रहे थे ,कल सुबह हैदराबाद से चित्तूर जाने के समय 9.15 से 9.30 के बीच गॉव वालों ने हेलीकॉप्टर को देखा था और अचानक 9.35 के बाद हेलीकॉप्टर से सम्पर्क टुटने के बाद अभी 24 घन्टे तक कोई सूराग नहीं मिल पाया हैं । मिडिया ने खबर दी हैं कि सीएम कार्यालय से जानकारी मिली हैं कि सीएम सुरक्षित है । परन्तु सवाल उठता हैं कि हेलिकॉप्टर में जब इ एल टी सिस्टम लगी हुई हैं तो वह खामोश क्यों है ? इ एल टी अर्थात एमरजेंसी लोकेशन ट्रांसमिटर जो खतरे को भापते हुए जोर जोर से आवाज करने लगती हैं । यदि हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुई हैं ,तो उससे आवाज आना चाहिए था, पर वह चूप हैं, जो एक बहुत बड़ा सवाल बनकर उभर रहा हैं ।शाम ढलते ही खोज में निकली 7 हेलीकॉप्टर, खोज करना बंद कर दिया हैं कयोंकि रात को हेलीकॉप्टर खोज का काम नहीं कर सकता । सेना सतर्क हो चूकी हैं, और अब तक का सबसे बड़ा खोजी आपरेशन का कार्य शुरू भी कर दिया गया हैं ,सेना द्वारा सूखोई 30 को भी इस खोज मे लगा कर बहुत अच्छा किया हैं, यह वही सुखोई हैं जो रूस ने हाल ही में हमें दिया हैं, एक उच्च तकनीकी और रडार से लैस हवाई विमान द्वारा जंगलों में खोज कार्य में जूट चूकी हैं , इसरो भी मदद कर रही है । आगे किसी तरह की भी चूक न हो इसलिए अमेरिका से भी मदद मांगा गया हैं । कुल मिला कर देश में एक आपातकाल सा माहौल निर्मित हो चुका हैं । आलाकमान भी सक्रिय हो गया , श्रीमती सोनिया गान्धी ने भी आपात कालीन बैठक बुलाई हैं । केंद्रीय गृह मंत्री ,प्रधान मंत्री सभी सी एम के लापता होने के कारण चिन्तीत हैं । मिडिया भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं । ऐसा लगता हैं कि बहुत ही जल्दी कामयाबी हाथ जरूर लगेगी ।ऐसी नाजुक समय में हम सभी को ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए ताकी बहुत बड़े खतरे से हम उबर सके । सबसे चिन्तनीय बात यह हैं कि जहॉं हेलीकॉप्टर से सम्पर्क कट चूकी हैं, वहॉं नक्सलीयों का गढ हैं और जंगलों से घिरा हुआ हैं , जंगल भी बीहड़ हैं अत: मुझे तो ऐसा लग रहा हैं कि नक्शली ,सी एम का अपहरण न कर लिया हो ! यदि नक्शली ऐसा करते हैं तो निश्चित ही फिरौती के नाम पर खूंखार साथियों को जेल से छुड़ाने जैसे मांग भी रख सकता हैं । अभी तो हम सी एम और उनके साथ गए ५ लोगों को सही सलामत होने का प्रार्थना ही कर सकतें हैं । मुझे एक बात से आश्चर्य होता हैं कि इलेक्ट्रानिक मिडिया अभी तक मुख्यमंत्री के साथ गए ५ लोगों का नाम भी नहीं बताया हैं । आश्चर्य तो बस्तर में हुए हेलीकॉप्टर दुर्घटना का होता हैं जिसमें अनेक साथियों के साथ एक एस पी भी शहीद हो गए थे , उस समय महिनों बाद ही हेलीकॉंप्टर का मलवा मिल पाया था , मुझे शायद दोनों घटनाओं को एक करके नहीं देखना चाहिए ,परन्तु कभी -कभी कुछ घटनाओं को भूलाया नहीं जा सकता । कुछ नाजुक घटनाओं पर सभी का रवैया सहानुभूति पूर्वक होना चहिए ,ऐसी घटनाओं को बड़े छोटे का भेद भाव भुल कर सेवा भाव से सभी को क्षमतानुसार आगे आकर अपनी हिस्सेदारी का निर्वाहन करना चाहिए । हम सब ईश्वर से प्रार्थना करें कि राजशेखर रेड्डी और हेलीकॉप्टर में सवार अन्य ५ साथि सुरक्षित रहे,उनके परिवार को इस दुख के समय ईश्वर मदद करें ।

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