उच्च न्यायालय ने प्रत्यक्ष देखा भ्रष्टाचार का नंगा नाच ,न्यायालय मजबूर होकर प्रशासन को अपनी औकात बताई ,क्या उसे ऐसा करना चाहिए था ? क्या न्यायालय ने भ्रष्टाचार रोकने में असफल होने के कारण ऐसा किया ? जब देश में संविधान के अनुसार कुछ भी नहीं चल रहा है दूसरी ओर संशोधन द्वारा संविधान की आत्मा तो कब की मर चुकी है ।
मुझे याद है जब छत्तीसगढ में प्रथम उच्च न्यायालय का उद्घाटन हुआ था ,बिलासपुर शहर को तब कबाड़ खाना के अतिरिक्त कुछ कहना प्रतीत नहीं होता ,सड़कों का हाल तो देखकर रोना आता था ,नाली ,पानी की व्यवस्था ,साफ -सफाई केवल खाना पूर्ति के लिए होता था ,शहर के जागरूक नागरिकों ने तब उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर शासन - प्रशासन के खिलाफ कार्यावाही करने का निवेदन किया था ।
उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका पर अविलम्ब सुनवाई करते हुए कहा कि- जनता किस बात के लिए कर देती हैं ? यदि नागरिकों को मुलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति न हो सकें ,तो क्या सरकार को कर देना उचित है ?
मैंने न्यायालय द्वारा इस तरह की टिप्पणी की कल्पना ही नहीं कर सकता था ,अब प्रश्न यह उठता है कि जब देश में चारों और अराजकता हैं ,शासन प्रशासन जनता द्वारा दिया गया, कर के रूप में प्राप्त राजस्व को सही इस्तेमाल नहीं करके ,इस राजस्व से नेताओं और आफसर को ता-ता,धि न्ना ,करने की आदत पड़ गई हैं ,अत: क्यों न हम कर देना ही बन्द कर दें ?
कर न देना अपने आप में अपराध हैं ,लेकिन जब कर का इस्तेमाल गलत लोग करने लगे हैं तो ऐसा करना कोई अपराध नहीं है ... क्या सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर इस पर बहस का सिलसिला जारी रखना चाहिए ? जो सक्षम ब्लोगर बन्धु कुछ आर्थिक सहयोग याचिका हेतु देना चाहे तो आगे आकर इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए एक पहल करने में क्या हम सक्षम हैं ?
यदि हॉं तो कैसे ?
मैं आशा करता हूँ कि सभी जागरूक ब्लोगर बन्धु एवं पाठकगण इस सामाजिक कठोर निर्णय पर अपना मत और टिप्पणी अवश्य दें ।
मंगलवार, 10 नवंबर 2009
गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009
और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..?
जिस देश में 80 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो ,84 करोड़ लोग मात्र 20 रूपये में जीवन चलाता हो ,52 करोड़ लोग 12 रूपये में ही प्रतिदिन जीवन की गाड़ी चला रहा हो ,उस देश में आदर्श ,न्याय , नैतिकता ,आदी सुनने और देखने को मिलना अपने आप में महान आश्चर्य हैं ,दूसरी और प्रतिदिन एक लाख रूपये की होटल में जनप्रतिनिधि रात गुजारने में खर्च डालते है । देश की राष्ट्रपति 474 से भी अधिक कमरों की महलों में रहना ,सुनने में विश्वास नहीं होता .
लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो भी खर्च किए जाते हैं उसका 90 प्रतिशत लगभग बिचौलिओं के जेब में चला जाता है। गैर बराबरी समाज व्यवस्था कब तक चलेगी ... हालत इतनी बिगड़ चूकी हैं कि घर से बाहर निकलने के बाद लौटकर आने की कोई उम्मिद नहीं रहती .......... कौन कहॉ और कैसे लोगों को मौत के घाट उतार दें उसे कोई बता नहीं सकता , कुछ हजार रूपये की सुपाड़ी देकर किसी का भी कत्ल कर देना बहुत आसान हो गया हैं , बच्चों को सुबह पढने के लिए विद्यालय भेजो ..... थोड़ी देर में फोन आता हैं ...... रूपये दो नही तो बच्चे की लाश मिलेगी .............. जीवन भर की कमाई को चुपचाप अपहरण कर्ता को देकर बच्चे को वापस लाना होता है। कभी -कभी तो रूपये देने के बाद भी बच्चे नहीं .... लाश भी नहीं ......
आतंकवाद ,नक्सलवाद ,आदी से आए दिन सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं ,जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा घेरे में ही कत्लेआम कर दिया जाता है । जो जैसे पाए इस देश को लूटने में ही अपना धर्म समझने लगे हैं , कोई रोक टोक नहीं हैं , न्याय , नियम ,कानूनों से जनता का मोह भंग हो चूका है। ये सब केवल गरीब और कमजोरों को दबाने का काम आता हैं । आज दिन प्रतिदिन हालात बिगड़ना ,महंगाई ,कालाबाजारी ,जहर बेचने का धन्धा ,मिलावट खोरी आदी अबाध गति से चल रही हैं ।
अगर गलत परम्पराओं का नाम गिनाने जाउं तो पन्ने भी कम पड़ जाए ..... चंद नर पिशाचों के कारण देश प्रतिदिन गर्त की और अग्रसर हैं ,ऐसे पिशाच मात्र भौतिक संशाधनों पर एकाधिकार जमाने में ही कर्म समझता हैं । इन्हें देश के कानून ,न्याय ,नियमों का काई भय नहीं लगता ,चंद रूपये के लिए अब सब कुछ बिकाऊ हो गया हैं ।
मैं कभी -कभी सोचता हूँ कि आतंकवादी ,नक्सलवादीयों को ये धन पिशाचों को क्या नजर नहीं आता हैं ...?
लेकिन इनके कुछ करतूतों से विचार बदल गया है ... खबर तो यहॉं तक हैं कि नक्सली और आतंकवाद को ये धन पिशाच ही पाल पोशकर बढा किया है ,जरूरत के समय वे अपने ही स्वार्थ में इन्हें उपयोग भी करते है।
शहर में रह कर गठबंधन से धंधा भी चलता है ,शासन भी मौन ..... क्यूँ ! ...........क्योंकि हिस्सा जो मिलता है । जब चारों ओर से दबाव आ रहा है तो सेना के शरण में पहुँचने की मजबूरी से विदेशी दुश्मनों के लिए खड़े किए गए फौज का उपयोग कर सैकडों बहादूर फौजियों को जानबुझ कर शहीद होने को महबूर करना...
हम खून की ऑशू बहाकर जी रहे है , पता नहीं ... किसके हाथ ... हमारी भी बारी लिखा हैं ...........
कहते है कलम में बहुत ताकत है ..... क्या यह सच हैं --? यदि सच हैं तो हजारों कलमकारों के लिए देश में एक नई दिशा दिलाने में विलम्ब क्यों हो रहा है ----? और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..? क्रमश:..
लोक कल्याणकारी योजनाओं में जो भी खर्च किए जाते हैं उसका 90 प्रतिशत लगभग बिचौलिओं के जेब में चला जाता है। गैर बराबरी समाज व्यवस्था कब तक चलेगी ... हालत इतनी बिगड़ चूकी हैं कि घर से बाहर निकलने के बाद लौटकर आने की कोई उम्मिद नहीं रहती .......... कौन कहॉ और कैसे लोगों को मौत के घाट उतार दें उसे कोई बता नहीं सकता , कुछ हजार रूपये की सुपाड़ी देकर किसी का भी कत्ल कर देना बहुत आसान हो गया हैं , बच्चों को सुबह पढने के लिए विद्यालय भेजो ..... थोड़ी देर में फोन आता हैं ...... रूपये दो नही तो बच्चे की लाश मिलेगी .............. जीवन भर की कमाई को चुपचाप अपहरण कर्ता को देकर बच्चे को वापस लाना होता है। कभी -कभी तो रूपये देने के बाद भी बच्चे नहीं .... लाश भी नहीं ......
आतंकवाद ,नक्सलवाद ,आदी से आए दिन सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं ,जनप्रतिनिधियों को सुरक्षा घेरे में ही कत्लेआम कर दिया जाता है । जो जैसे पाए इस देश को लूटने में ही अपना धर्म समझने लगे हैं , कोई रोक टोक नहीं हैं , न्याय , नियम ,कानूनों से जनता का मोह भंग हो चूका है। ये सब केवल गरीब और कमजोरों को दबाने का काम आता हैं । आज दिन प्रतिदिन हालात बिगड़ना ,महंगाई ,कालाबाजारी ,जहर बेचने का धन्धा ,मिलावट खोरी आदी अबाध गति से चल रही हैं ।
अगर गलत परम्पराओं का नाम गिनाने जाउं तो पन्ने भी कम पड़ जाए ..... चंद नर पिशाचों के कारण देश प्रतिदिन गर्त की और अग्रसर हैं ,ऐसे पिशाच मात्र भौतिक संशाधनों पर एकाधिकार जमाने में ही कर्म समझता हैं । इन्हें देश के कानून ,न्याय ,नियमों का काई भय नहीं लगता ,चंद रूपये के लिए अब सब कुछ बिकाऊ हो गया हैं ।
मैं कभी -कभी सोचता हूँ कि आतंकवादी ,नक्सलवादीयों को ये धन पिशाचों को क्या नजर नहीं आता हैं ...?
लेकिन इनके कुछ करतूतों से विचार बदल गया है ... खबर तो यहॉं तक हैं कि नक्सली और आतंकवाद को ये धन पिशाच ही पाल पोशकर बढा किया है ,जरूरत के समय वे अपने ही स्वार्थ में इन्हें उपयोग भी करते है।
शहर में रह कर गठबंधन से धंधा भी चलता है ,शासन भी मौन ..... क्यूँ ! ...........क्योंकि हिस्सा जो मिलता है । जब चारों ओर से दबाव आ रहा है तो सेना के शरण में पहुँचने की मजबूरी से विदेशी दुश्मनों के लिए खड़े किए गए फौज का उपयोग कर सैकडों बहादूर फौजियों को जानबुझ कर शहीद होने को महबूर करना...
हम खून की ऑशू बहाकर जी रहे है , पता नहीं ... किसके हाथ ... हमारी भी बारी लिखा हैं ...........
कहते है कलम में बहुत ताकत है ..... क्या यह सच हैं --? यदि सच हैं तो हजारों कलमकारों के लिए देश में एक नई दिशा दिलाने में विलम्ब क्यों हो रहा है ----? और कितनी देर ... इन्तेजार कब तक ..? क्रमश:..
मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009
इलाहाबाद ब्लोगार सम्मेलन पर एक सशक्त टिप्पनी - हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।
नामवार सिंह जी के मुख्य आतिथ्य में ,राष्ट्रिय ब्लोगर सम्मेलन ,श्री प्रमोद प्रताप सिंह जी जो कि सम्मेलन स्थल इलाहाबाद के ही रहनेवाले होने के पश्चात भी उन्हें न बुलाने की बाते ,सुरेश चिपलुनकर जी के आरोपों का क्रमवार जवाब ..विशेष करके गुजरात के संजय बेगाणी जी और केरल के शास्त्री जी को सम्मेलन में न बुलाने और देश के अन्य ब्लोगारों की उपेक्षा से उपजी एक आक्रोश पर ज्वलन्त बहसों का सिलसिला .........
मैं कल और आज अनेक ब्लागों पर भ्रमण किया ,,तथ्यों की तह में जाने का भी प्रयत्न करने के पश्चात एक बात जो मुझे समझमें आया कि ब्लोगरों को भी कुछ लोगों के द्वारा गुटबाजी में बदलने की षडयंत्र रची जा रही हैं ,एक वर्ग जो इसे हिन्दुत्व वादी गुट में परिवर्तण करना चाहते थे ,जोकि चुक जाने के कारण अन्य एक वर्ग अपनी करनी से सफल हो गए , कौन अच्छा है या कौन बूरा है ,इस पर अभी मैं नहीं जाना चाहता हूँ ,परन्तु नामवार सिंह जी अपनी मंशा में कामयाब हो गए यह तो साफ दिख रहा है ... जिस व्यक्ति को जो नहीं जानते थे, इस बहस में उन्हें लोग जानने लग गए है ,कामयाबी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
यदि तमाम बातों को छोड़कर हम सुरेश जी के आरोप पर जाए कि हिन्दुवादियों का उपेक्षा किया गया है ,इसका अर्थ यह हुआ कि नामवार जी और उनके भक्त हिन्दुवादी नहीं है ,इसका अर्थ और स्पष्ट किया जाए कि वे अहिन्दुवादी विचार धारा के है । यदि अहिन्दुवादी विचारधारा के लोग हिन्दुवादी विचार धारा के लोगों के साथ बैठे तो निश्चित रूप से खिंचातानी शुरू हो जाने के डर से यदि उन्हें न बुलाया गया हो तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।
एक हिन्दु होकर दूसरों की बुराई पर बोलने का कोई हक नहीं है, उसी तरह एक बामपंथी होकर एक दक्षीण पंथी पर कटाक्ष करने का भी उन्हे अधिकार नहीं है ,दोनों मतवादों में जो बूराई है उस पर कबीर दास जी जैसे भक्त ही अपनी मजबूत पक्ष द्वारा समाधान दे सकते है अन्य कदापी नहीं ।
एक बात जो मुझे भी अच्छी नहीं लगी वह यह कि राष्ट्रिय सम्मेलन हो रहा हो और देश के अन्य ब्लोगरों को खबर तक नहीं...... इस पर विचार करना आवश्यक हैं ,ताकि इस प्रकार की चूक फिर न हो जाए ।
गुटबाजी से परे हटकर स्वतंत्र लेखन और चिन्तन द्वारा देश सेवा में अपने आप को समर्पित कर देना हमारा लक्ष्य होना चहिए ,लिखने के लिए लिखना ही हमारा उद्देश्य न हो ,आज देश पतन की और लगातार अग्रसर है अत: लेखनी द्वारा ,विचार द्वारा , अन्य माध्यम द्वारा यदि छोटी से छोटी सेवा भी हम कर सकें तो इससे बढकर इस नश्वर जीवन में और क्या उपलब्धी हो सकती हैं ?
हम अपनी जिम्मेदारी को समझे ,कुछ प्रतिक्रियावादी लोग हमेशा लाभ लेने के लिए सदा सक्रिय रहते हैं ,आगे भी इस तरह के लोग रहेंगे ,हमें ही सजग रहना होगा यदि हम ही सजग न रह सकें, तो इस देश को हम कैसे दिशा दिखायेगें ?
हमें किसी की प्रमाण पत्र की आवश्यकता क्यों हैं ? हम लिखेंगे और लिखते रहेंगे ,मैंने हिन्दी में जब लिखना शुरू किया तो बहुत अशुद्धियॉं होती थी , ,वर्तनी ,व्यकारण आदी दोष आज भी हैं ,मैंने लिखना बंद नहीं किया, जिन लोगो ने भारत में रहकर भी अंग्रेजीयत पाल रखें है उनसे तो हम लाख गुने अच्छे हैं । एक बहुत अच्छे अहंकार सम्पन्न साहित्यकार से एक कम साहित्यिक जानकार देश सेवक कई गुणा अधिक लाभदायक हैं ।
अन्तिम बातें जो मैं बताना उचित समझता हूँ यह कि हमें हिन्दुवाद ,मुस्लिमवाद ,वामपंथी ,दक्षीण पंथी आदी से परे हटकर आज मानववाद पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और जो देश रसातल की और जा रही है उसे प्रगति की चरम शिखर पर उठाने का सभी को संकल्प लेकर आगे बढना चाहिए ,हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।
मैं कल और आज अनेक ब्लागों पर भ्रमण किया ,,तथ्यों की तह में जाने का भी प्रयत्न करने के पश्चात एक बात जो मुझे समझमें आया कि ब्लोगरों को भी कुछ लोगों के द्वारा गुटबाजी में बदलने की षडयंत्र रची जा रही हैं ,एक वर्ग जो इसे हिन्दुत्व वादी गुट में परिवर्तण करना चाहते थे ,जोकि चुक जाने के कारण अन्य एक वर्ग अपनी करनी से सफल हो गए , कौन अच्छा है या कौन बूरा है ,इस पर अभी मैं नहीं जाना चाहता हूँ ,परन्तु नामवार सिंह जी अपनी मंशा में कामयाब हो गए यह तो साफ दिख रहा है ... जिस व्यक्ति को जो नहीं जानते थे, इस बहस में उन्हें लोग जानने लग गए है ,कामयाबी का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
यदि तमाम बातों को छोड़कर हम सुरेश जी के आरोप पर जाए कि हिन्दुवादियों का उपेक्षा किया गया है ,इसका अर्थ यह हुआ कि नामवार जी और उनके भक्त हिन्दुवादी नहीं है ,इसका अर्थ और स्पष्ट किया जाए कि वे अहिन्दुवादी विचार धारा के है । यदि अहिन्दुवादी विचारधारा के लोग हिन्दुवादी विचार धारा के लोगों के साथ बैठे तो निश्चित रूप से खिंचातानी शुरू हो जाने के डर से यदि उन्हें न बुलाया गया हो तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।
एक हिन्दु होकर दूसरों की बुराई पर बोलने का कोई हक नहीं है, उसी तरह एक बामपंथी होकर एक दक्षीण पंथी पर कटाक्ष करने का भी उन्हे अधिकार नहीं है ,दोनों मतवादों में जो बूराई है उस पर कबीर दास जी जैसे भक्त ही अपनी मजबूत पक्ष द्वारा समाधान दे सकते है अन्य कदापी नहीं ।
एक बात जो मुझे भी अच्छी नहीं लगी वह यह कि राष्ट्रिय सम्मेलन हो रहा हो और देश के अन्य ब्लोगरों को खबर तक नहीं...... इस पर विचार करना आवश्यक हैं ,ताकि इस प्रकार की चूक फिर न हो जाए ।
गुटबाजी से परे हटकर स्वतंत्र लेखन और चिन्तन द्वारा देश सेवा में अपने आप को समर्पित कर देना हमारा लक्ष्य होना चहिए ,लिखने के लिए लिखना ही हमारा उद्देश्य न हो ,आज देश पतन की और लगातार अग्रसर है अत: लेखनी द्वारा ,विचार द्वारा , अन्य माध्यम द्वारा यदि छोटी से छोटी सेवा भी हम कर सकें तो इससे बढकर इस नश्वर जीवन में और क्या उपलब्धी हो सकती हैं ?
हम अपनी जिम्मेदारी को समझे ,कुछ प्रतिक्रियावादी लोग हमेशा लाभ लेने के लिए सदा सक्रिय रहते हैं ,आगे भी इस तरह के लोग रहेंगे ,हमें ही सजग रहना होगा यदि हम ही सजग न रह सकें, तो इस देश को हम कैसे दिशा दिखायेगें ?
हमें किसी की प्रमाण पत्र की आवश्यकता क्यों हैं ? हम लिखेंगे और लिखते रहेंगे ,मैंने हिन्दी में जब लिखना शुरू किया तो बहुत अशुद्धियॉं होती थी , ,वर्तनी ,व्यकारण आदी दोष आज भी हैं ,मैंने लिखना बंद नहीं किया, जिन लोगो ने भारत में रहकर भी अंग्रेजीयत पाल रखें है उनसे तो हम लाख गुने अच्छे हैं । एक बहुत अच्छे अहंकार सम्पन्न साहित्यकार से एक कम साहित्यिक जानकार देश सेवक कई गुणा अधिक लाभदायक हैं ।
अन्तिम बातें जो मैं बताना उचित समझता हूँ यह कि हमें हिन्दुवाद ,मुस्लिमवाद ,वामपंथी ,दक्षीण पंथी आदी से परे हटकर आज मानववाद पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और जो देश रसातल की और जा रही है उसे प्रगति की चरम शिखर पर उठाने का सभी को संकल्प लेकर आगे बढना चाहिए ,हजार पग उद्देश्य विहीन सक्रियता से ,सौ पग उद्देश्य के लिए सक्रिय होना अच्छा है ।
सोमवार, 26 अक्तूबर 2009
क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....
वर्तमान परिस्थिति जन्य कारण से आज हम क्रान्ति शब्द से ही डरने लगे है , एक समय था जब क्रान्ति से लोग बहुत प्यार करते थे ,क्रान्तिकारि कहने मात्र से लोगों का मस्तक झुक जाया करता था ,आजादी के समय तो जान जोखिम में डालकर भी क्रांतिकारिओं को मदद के लिए जनता बढ-चढ कर आगे आते रहे है। लोग समझते थे कि क्रान्तिकाररियों का साथ देना एक पवीत्र कार्य हैं ।
बंकिमचन्द्र द्वारा लिखे गये क्रान्तिकारी साहित्य आनन्द मठ पढने से क्रान्तिकारिओं का चरित्र भी समाज में एक अलग ही प्रतिष्ठा -मान -सम्मान .स्थापित करने में सहयोग साबित हुए ,उच्च नैतिक और चारित्रिक बल से प्रतिष्ठित युवा वर्गों द्वारा परिवर्तणकारी विशेष करके भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने की संकल्प लेकर सर्वस्व न्योछावर कर देने का साहस ही क्रांतिकारिओं का पहचान हुआ करता था ।
एक भी उदाहरण इतिहास में नहीं मिल सकता ,जिससे यह साबित हो सके कि क्रान्तिकारियों ने साधारण जनता पर , नारियों पर , असहायों पर ,जोर जुल्म किया हो , लेकिन आजादी की लड़ाई में एक सक्षम हिस्सेदारी , कर्तब्य आदी का निर्वहन करने के पश्चात भी कुछ स्वार्थी लोगों ने क्रान्तिकारियों को बदनाम करने का षड़यंत्र रचने में कामयाब हो गए ,अहिंसा शब्द को ढाल जैसे प्रयोग करते हुए करोड़ों निर्दोष देशवासीयों का कत्ल हो जाना ,लाखों लडकियों ,महिलाओं पर अत्याचार ,जिस देश के लिए नौजवानों ने खून बहाया उस देश को दो टुकड़ों में बॉट देना आदी कोई सामान्य बात नहीं है , यदि प्रत्यक्ष हिंसक लड़ाई भी होती ,तो भी इतनी बड़ी संख्या में हिंसक घटनाओं का परिणाम करोड़ों का जान माल और अत्याचार नहीं हुआ होता ,आज तक इतिहास को तोड़ -मरोड़ कर सामने रखने का षड़यंत्र जारी है। ।
मैंने कई बार क्रान्ति शब्द का उपयोगा, कई स्थानों पर, गर्व के साथ किया हैं ,क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....आज इसे जिस रूप में ग्रहण किया जाता है या समझा जाता है उससे भिन्न रूप में हमें इस शब्द का भावार्थ समझना आवश्यक हैं । मै एक उदाहरण दे कर इसे बताने की कोशिस करना चाहता हूँ –
नदी यदि धारा बदलकर बहने लगी- तो धारा बदलना ओर फिर बहना-- क्रान्तिकारि कहा जा सकता हैं ,समाज आज जिस दिशा में जा रही है यदि उस दिशा से हटाकर अन्य दिशा की ओर मोढ दिया जाए तो समाज में क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ कहना उचित होगा ।
हर समय परिवर्तण की आवश्यकता होती है ,दुनियॉं में स्थिर कुछ भी नहीं है , सब कुछ चलायमान है ,आज जो कुछ सही लगता है ,कल वही गलत साबित हो सकता है ,विचार में भी परिवर्तण होता रहता है ,आज से वर्षों पूर्व घुसखोरी को कोई अच्छी नजर से नहीं देखते थे वैसे तो आज भी नहीं देखते है ,पूर्व में घुसखोरी भी होती थी ,तो छीपते और डरते हुए ,आज तो यह खुले आम होने लगी है, अत: घुस खोरी में भी क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ हैं ऐसा कहा जा सकता है ।
परिवर्तण का ही नाम क्रान्ति है, परिवर्तण कितनी गति से हो रही हैं , उस गति को ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि कुछ नये शब्द का उपयोग किया जाए , पर भावार्थ वही है जो परिवर्तण के लिए समझा जाता हैं ।
मार काट ,खून खराबा , ही क्रान्ति है इस तरह की विचार कतई उचित नहीं है ,जब समाज के किसी अंग में क्रान्तिकारि परिवर्तण होने लगती है ,तो तीन तरह के लोग उसमें भागिदारी निबहाते है प्रथमत: जो परिवर्तण में प्रत्यक्ष अंश ग्रहण करते है ,द्वितीय वे लोग है जो परिवर्तण का विरोध करते है ,विरोध करने का भी विभिन्न कारण हो सकता है ,कुछ लोग परिवर्तण के कारण प्रभावित होते है ,जैसे यदि अर्थनीति में परिवर्तण हो रहा हो तो अर्थप्रधान लोग उसका विरोध करेंगे ,इस तरह अन्य अनेक कारण हो सकता हैं ।
तिसरी तरह के लोग पक्ष और विपक्ष दोनों से भिन्न होते है उन्हें तो किसी से कोई दिलचस्पी ही नहीं रहता हैं ,ऐसे लोग समाज के लिए अधिक खतरनाक हो सकते हैं , क्योंकि ऐसे लोग जिधर दम, उधर हम की बातों पर अधिक विश्वास करते हुए सही गलत दोनों को सामान्य मान बैठने के कारण समाज में सन्देहास्पद स्थिति तैयार कर देता है। और सन्देह उत्पन्न होने के करण ऐसे लोग मारे भी जाते है।
परिवर्तण के लिए खून बहाना आवश्यक नहीं है ,विचार क्रान्ति से भी अनेक प्राकार के परिवर्तण सही दिशा में अग्रसर हो सकता हैं ,विचार क्रान्ति के आगे कोई भी शक्ति टिक नही सकती ,विचार शब्दों द्वारा उत्पन्न होता है। और शब्द का प्रचार लेखन से आगे बढने के कारण कलम में जो शक्ति है वह तोप तलवार में भी नहीं होने की बाते पूर्व के अनेक साहित्यकारों ने भी स्वीकार किया है ।
भारतवर्ष में क्रान्ति की आवश्यकता है या नहीं इस पर बहस हो सकती है ,विचार किया जा सकता है ,यदि विचार करने के पश्चात परिवर्तण आवश्यक हो जाए तो उस परिवर्तण की रूप कैसे हो ...किस दिशा मे परिवर्तण की रूख बदलने की आवश्यकता है ,परिवर्तन के समय यदि विरोध हुआ तो उस विरोध का किस तरह सामना किया जाए ,विरोध करने वालों को समझाया जाए या बल प्रयोग द्वारा दबा दिया जाए या उसे रास्ते से ही हटा दिया जाए ... इस तरह अनेक प्रश्न और उत्तर भी अनेक प्राप्त हो सकता है परन्तु एक बात साफ हैं कि परिवर्तण तो परिस्थिति का दास है परिस्थिति ही साधनों को प्रयोग करने का रास्ता बताता है।
कोई भी सभ्य समाज खून खराबी का समर्थन नहीं कर सकता ,परन्तु परिस्थिति जन्य अनेक अवसरों पर खून बहाना मजबूरी हो सकता है , यदि अधिकांश परिवर्तण शान्ति पूर्ण ढंग से हो जाए तो क्रान्ति शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ ऐसा समझना उचित होगा । क्रमश:...........
बंकिमचन्द्र द्वारा लिखे गये क्रान्तिकारी साहित्य आनन्द मठ पढने से क्रान्तिकारिओं का चरित्र भी समाज में एक अलग ही प्रतिष्ठा -मान -सम्मान .स्थापित करने में सहयोग साबित हुए ,उच्च नैतिक और चारित्रिक बल से प्रतिष्ठित युवा वर्गों द्वारा परिवर्तणकारी विशेष करके भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने की संकल्प लेकर सर्वस्व न्योछावर कर देने का साहस ही क्रांतिकारिओं का पहचान हुआ करता था ।
एक भी उदाहरण इतिहास में नहीं मिल सकता ,जिससे यह साबित हो सके कि क्रान्तिकारियों ने साधारण जनता पर , नारियों पर , असहायों पर ,जोर जुल्म किया हो , लेकिन आजादी की लड़ाई में एक सक्षम हिस्सेदारी , कर्तब्य आदी का निर्वहन करने के पश्चात भी कुछ स्वार्थी लोगों ने क्रान्तिकारियों को बदनाम करने का षड़यंत्र रचने में कामयाब हो गए ,अहिंसा शब्द को ढाल जैसे प्रयोग करते हुए करोड़ों निर्दोष देशवासीयों का कत्ल हो जाना ,लाखों लडकियों ,महिलाओं पर अत्याचार ,जिस देश के लिए नौजवानों ने खून बहाया उस देश को दो टुकड़ों में बॉट देना आदी कोई सामान्य बात नहीं है , यदि प्रत्यक्ष हिंसक लड़ाई भी होती ,तो भी इतनी बड़ी संख्या में हिंसक घटनाओं का परिणाम करोड़ों का जान माल और अत्याचार नहीं हुआ होता ,आज तक इतिहास को तोड़ -मरोड़ कर सामने रखने का षड़यंत्र जारी है। ।
मैंने कई बार क्रान्ति शब्द का उपयोगा, कई स्थानों पर, गर्व के साथ किया हैं ,क्रान्ति कोई नफरत और अछुत शब्द नहीं है .....आज इसे जिस रूप में ग्रहण किया जाता है या समझा जाता है उससे भिन्न रूप में हमें इस शब्द का भावार्थ समझना आवश्यक हैं । मै एक उदाहरण दे कर इसे बताने की कोशिस करना चाहता हूँ –
नदी यदि धारा बदलकर बहने लगी- तो धारा बदलना ओर फिर बहना-- क्रान्तिकारि कहा जा सकता हैं ,समाज आज जिस दिशा में जा रही है यदि उस दिशा से हटाकर अन्य दिशा की ओर मोढ दिया जाए तो समाज में क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ कहना उचित होगा ।
हर समय परिवर्तण की आवश्यकता होती है ,दुनियॉं में स्थिर कुछ भी नहीं है , सब कुछ चलायमान है ,आज जो कुछ सही लगता है ,कल वही गलत साबित हो सकता है ,विचार में भी परिवर्तण होता रहता है ,आज से वर्षों पूर्व घुसखोरी को कोई अच्छी नजर से नहीं देखते थे वैसे तो आज भी नहीं देखते है ,पूर्व में घुसखोरी भी होती थी ,तो छीपते और डरते हुए ,आज तो यह खुले आम होने लगी है, अत: घुस खोरी में भी क्रान्तिकारि परिवर्तण हुआ हैं ऐसा कहा जा सकता है ।
परिवर्तण का ही नाम क्रान्ति है, परिवर्तण कितनी गति से हो रही हैं , उस गति को ध्यान में रखते हुए हो सकता है कि कुछ नये शब्द का उपयोग किया जाए , पर भावार्थ वही है जो परिवर्तण के लिए समझा जाता हैं ।
मार काट ,खून खराबा , ही क्रान्ति है इस तरह की विचार कतई उचित नहीं है ,जब समाज के किसी अंग में क्रान्तिकारि परिवर्तण होने लगती है ,तो तीन तरह के लोग उसमें भागिदारी निबहाते है प्रथमत: जो परिवर्तण में प्रत्यक्ष अंश ग्रहण करते है ,द्वितीय वे लोग है जो परिवर्तण का विरोध करते है ,विरोध करने का भी विभिन्न कारण हो सकता है ,कुछ लोग परिवर्तण के कारण प्रभावित होते है ,जैसे यदि अर्थनीति में परिवर्तण हो रहा हो तो अर्थप्रधान लोग उसका विरोध करेंगे ,इस तरह अन्य अनेक कारण हो सकता हैं ।
तिसरी तरह के लोग पक्ष और विपक्ष दोनों से भिन्न होते है उन्हें तो किसी से कोई दिलचस्पी ही नहीं रहता हैं ,ऐसे लोग समाज के लिए अधिक खतरनाक हो सकते हैं , क्योंकि ऐसे लोग जिधर दम, उधर हम की बातों पर अधिक विश्वास करते हुए सही गलत दोनों को सामान्य मान बैठने के कारण समाज में सन्देहास्पद स्थिति तैयार कर देता है। और सन्देह उत्पन्न होने के करण ऐसे लोग मारे भी जाते है।
परिवर्तण के लिए खून बहाना आवश्यक नहीं है ,विचार क्रान्ति से भी अनेक प्राकार के परिवर्तण सही दिशा में अग्रसर हो सकता हैं ,विचार क्रान्ति के आगे कोई भी शक्ति टिक नही सकती ,विचार शब्दों द्वारा उत्पन्न होता है। और शब्द का प्रचार लेखन से आगे बढने के कारण कलम में जो शक्ति है वह तोप तलवार में भी नहीं होने की बाते पूर्व के अनेक साहित्यकारों ने भी स्वीकार किया है ।
भारतवर्ष में क्रान्ति की आवश्यकता है या नहीं इस पर बहस हो सकती है ,विचार किया जा सकता है ,यदि विचार करने के पश्चात परिवर्तण आवश्यक हो जाए तो उस परिवर्तण की रूप कैसे हो ...किस दिशा मे परिवर्तण की रूख बदलने की आवश्यकता है ,परिवर्तन के समय यदि विरोध हुआ तो उस विरोध का किस तरह सामना किया जाए ,विरोध करने वालों को समझाया जाए या बल प्रयोग द्वारा दबा दिया जाए या उसे रास्ते से ही हटा दिया जाए ... इस तरह अनेक प्रश्न और उत्तर भी अनेक प्राप्त हो सकता है परन्तु एक बात साफ हैं कि परिवर्तण तो परिस्थिति का दास है परिस्थिति ही साधनों को प्रयोग करने का रास्ता बताता है।
कोई भी सभ्य समाज खून खराबी का समर्थन नहीं कर सकता ,परन्तु परिस्थिति जन्य अनेक अवसरों पर खून बहाना मजबूरी हो सकता है , यदि अधिकांश परिवर्तण शान्ति पूर्ण ढंग से हो जाए तो क्रान्ति शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ ऐसा समझना उचित होगा । क्रमश:...........
गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009
एक साथ इतनी समस्या ---साथी हाथ -----
दीपावली के बाद से लगातार मैं लैपटॉप से लड़ता रहा और आज भी लड़ रहा हूँ ,पहले तो बेचारा वायरस के चलते बीमार गया गया , पता नहीं एक साथ इतनी वायरस कहाँ से chali आई ,एन टी वायरस लैपटॉप में है, फिर भी काम नहीं आया, आज कल तो हर जगह एक ही बात लागू हो रहा हैं कि फैशन के जमाने में गारंटी की इच्छा न रखे ,अब मैं वायरस के लिए किसके साथ लड़ता ...?
एक साल तक वायरस से कुछ हानी हो तो कंपनी क्षतिपूर्ति करने की बाते लिखी है पर उसके लिए कंपनी पर दावा करो ,कितनी क्षती हुई हैं उसकी जॉच कराने से लेकर उपभोक्ता फोरम ,उससे बात न बने तो वर्षों अदालतों का चक्कर ......नुकसान जो हुआ वह कब मिलेगा उसका तो पता नहीं ----पर कानूनी दॉव पेंच के लिए वकील रखो ,दावा रकम का दस प्रतिशत फीस जमा करने के अलावा अपना खून भी जलाते रहो ............यही सब न्याय पाने का माध्यम हैं .............इससे अच्छा चुपचाप बैठे रहो ....रोते रहो ......और व्यवस्था को कोसते रहो ............ अधिक हुआ तो एक आध लेख के माध्यम से भड़ास निकाल कर चैन से बैठना ज्यादा अच्छा है ।
वायरस से कुछ फाईल नष्ट हो गयी , उसे फिर कब तक बना पाउंगा पता नहीं ,मेरे कष्ट देखकर लड़का भी दु:खी होकर कहने लगे कि क्या फालतू की चिजों से आप जुझ रहे है ,ब्लाग में लिख कर कभी देश में क्रान्ति आ सकती है क्या ....! ऑंखे खराब होना ,रात की नींद गायब.. न जाने कितनी बाते से मुझे समझाने की कोशिस करते हुए ,कुछ मद्द भी किया ।
नेट तो एक दम धीमी हो गई , गूगल का नया क्रोम लोड करने से सचमूच नेट में जान आ गया , नेट खोला ही था कि अचानक वर्चूल मेमोरी कम होने की सूचना से मैं परेशान हो गया , ये वर्चुल मेमोरी की बातें तो मेरे सर के उपर से चला गया ,पर लड़का को समझमें आने से मेमोरी बढाने का भी रास्ता निकालकर मुझे एक बड़ी समस्या से मुक्त कर दिया ....नही तो आज मै इस लेखनी को पूरा नहीं कर सकता था ।
मैने सोचा कि ब्लोग के हेडार में कुछ नए चित्र लगा दूं ,इस चक्कर में ब्लोग ही गायब हो गया ,दुबारा लोड किया तो नया सन्देश तो अंग्रेजी से हिन्दी में परिवर्तण हो जाता है पर शीर्षक का अनुवाद हिन्दी में आज भी नहीं हो पा रहा है ,जबकि सन्देश और शीर्षक पूर्व में हिन्दी अनुवाद सरलता से हो जाता था ।
टेम्ल्पेट नया लग जाने से हैडर पर मेर चित्र के माथे में मेरे विचार हटाकर कुछ सामने लाना चाहता था ,पर उसे आज तक नहीं कर पाया । हैडर में अन्य चित्र कैसे लगाया जाए और सरलता से चित्रों को कैसे पोस्ट में प्रयोग किया जाए यह बता कर मुझे मद्द करने का कष्ट करें ।
नेट पर अनेक टेम्प्लेट उपलब्ध हैं मुझे तीन भाग वाला टेम्प्लेट अधिक पसन्द हैं और हैडर कुछ चौड़ी हो तो बहुत ही अच्छा, कुछ मैंने चुना भी था पर उसे किसी भी हालत में ब्लोग में नहीं जोड सका .............मैंने एडसेन्स को भी ब्लोग में रखना उचित समझा ... पर ऐसा नहीं कर पाया ...
पिछले समय मैंने हिन्दी पर कुछ सुझाव मांगा था ,उस समय एक नहीं अनेक हाथ मद्द के लिए उठे थे ...आज भी साथी हाथ बढाना
एक साल तक वायरस से कुछ हानी हो तो कंपनी क्षतिपूर्ति करने की बाते लिखी है पर उसके लिए कंपनी पर दावा करो ,कितनी क्षती हुई हैं उसकी जॉच कराने से लेकर उपभोक्ता फोरम ,उससे बात न बने तो वर्षों अदालतों का चक्कर ......नुकसान जो हुआ वह कब मिलेगा उसका तो पता नहीं ----पर कानूनी दॉव पेंच के लिए वकील रखो ,दावा रकम का दस प्रतिशत फीस जमा करने के अलावा अपना खून भी जलाते रहो ............यही सब न्याय पाने का माध्यम हैं .............इससे अच्छा चुपचाप बैठे रहो ....रोते रहो ......और व्यवस्था को कोसते रहो ............ अधिक हुआ तो एक आध लेख के माध्यम से भड़ास निकाल कर चैन से बैठना ज्यादा अच्छा है ।
वायरस से कुछ फाईल नष्ट हो गयी , उसे फिर कब तक बना पाउंगा पता नहीं ,मेरे कष्ट देखकर लड़का भी दु:खी होकर कहने लगे कि क्या फालतू की चिजों से आप जुझ रहे है ,ब्लाग में लिख कर कभी देश में क्रान्ति आ सकती है क्या ....! ऑंखे खराब होना ,रात की नींद गायब.. न जाने कितनी बाते से मुझे समझाने की कोशिस करते हुए ,कुछ मद्द भी किया ।
नेट तो एक दम धीमी हो गई , गूगल का नया क्रोम लोड करने से सचमूच नेट में जान आ गया , नेट खोला ही था कि अचानक वर्चूल मेमोरी कम होने की सूचना से मैं परेशान हो गया , ये वर्चुल मेमोरी की बातें तो मेरे सर के उपर से चला गया ,पर लड़का को समझमें आने से मेमोरी बढाने का भी रास्ता निकालकर मुझे एक बड़ी समस्या से मुक्त कर दिया ....नही तो आज मै इस लेखनी को पूरा नहीं कर सकता था ।
मैने सोचा कि ब्लोग के हेडार में कुछ नए चित्र लगा दूं ,इस चक्कर में ब्लोग ही गायब हो गया ,दुबारा लोड किया तो नया सन्देश तो अंग्रेजी से हिन्दी में परिवर्तण हो जाता है पर शीर्षक का अनुवाद हिन्दी में आज भी नहीं हो पा रहा है ,जबकि सन्देश और शीर्षक पूर्व में हिन्दी अनुवाद सरलता से हो जाता था ।
टेम्ल्पेट नया लग जाने से हैडर पर मेर चित्र के माथे में मेरे विचार हटाकर कुछ सामने लाना चाहता था ,पर उसे आज तक नहीं कर पाया । हैडर में अन्य चित्र कैसे लगाया जाए और सरलता से चित्रों को कैसे पोस्ट में प्रयोग किया जाए यह बता कर मुझे मद्द करने का कष्ट करें ।
नेट पर अनेक टेम्प्लेट उपलब्ध हैं मुझे तीन भाग वाला टेम्प्लेट अधिक पसन्द हैं और हैडर कुछ चौड़ी हो तो बहुत ही अच्छा, कुछ मैंने चुना भी था पर उसे किसी भी हालत में ब्लोग में नहीं जोड सका .............मैंने एडसेन्स को भी ब्लोग में रखना उचित समझा ... पर ऐसा नहीं कर पाया ...
पिछले समय मैंने हिन्दी पर कुछ सुझाव मांगा था ,उस समय एक नहीं अनेक हाथ मद्द के लिए उठे थे ...आज भी साथी हाथ बढाना
शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
दीपवली में बचत ही धन की बरकत हैं --नहीं तो कंगाली
आस्थाओं का दोहन हजारों वर्षों से चली आ रही है ,हम चन्द्रमॉं –मंगल –आदी ग्रहों की बातें करते है परन्तु हजारों वर्षों से जो विज्ञापण द्वारा मानसीक जड़ता पैदा किया गया हैं , उन जड़ताओं पर कुठाराघात करने में हम भयभीत हो जाते है । पूजा -पाठ से क्या आज तक किसी की गरिबी हटी है ....? हजारों वर्षों तक पिढी दर पिढी पूजा अर्चना करने वालों को तो गरिब होने की सवाल ही पैदा नहीं होना चाहिए था ,लेकिन उनकी गरिबी क्यों नहीं हटी ----???????
देश में जितने प्रकार के त्यौहार आज प्रचलित है ,और नए -नए त्यौहार भी चलाकी से बाजार में बिक्री हेतु पेश किया जा रहा है .... चलाक व्यपारी अपने घर में लक्ष्मी को बॉंधकर रखने के लिए एक से एक नियम समाज में विज्ञापित किया हैं , सॉठगॉठ करके हजारों सालों से मानसीक और आर्थिक शोषण का सिलसिला जारी है।
वैश्य और तथाकथित ब्रह्मणों ने मिलकर समाज से अधिकाधिक लाभ उठाने की पुरजोर कोशिस में आज भी कामयाब हैं । यदि दिपावली में लक्ष्मी किसी के पास आती है तो ये दोनों वर्गो के पास ही स्पष्ट रूप से दिखता हैं ,आज पूजापाठ के नाम पर धर्म के ठेकेदार -और दलालों को लक्ष्मीजी वरदान देगी , बनिये तो धनतेरस के नाम से लोगों को जिस तहर से लूटा हैं वह सुधी जनों से छिपा नहीं है।
लक्ष्मी पूजन करने के लिए जिस विधान आदी प्रचलित की गई हैं उसकी पुर्ति के लिए सिधे बनिये और तथाकथित ब्राह्मणों के पास ही रकम लेकर जाना होता है। जिसके पास रकम एकत्रित हो रहा है वे धनवान और उनके पास लक्ष्मी का वास होगा ..... या जिसके घर से लक्ष्मी बाहर जा रही हैं उसके पास लक्ष्मी रहेगी .....? हर त्यौहारों की छुपी हुई राज पैसा कमाने का होड हैं , हम समझते है कि यह धार्मिक कार्य हैं, इसे नहीं करने से हम कंगाल हो जाऐंगे , जबकि इस भय से हम लगातार कंगाल होते जा रहे है, इस बात को स्पष्ट रूप से हमें समझना होंगा ।
लक्ष्मी पूजन वही हैं जहॉं धन एकत्रित हो ,,,,फटाका फोड़कर धन की बरबादी से लक्ष्मी कहॉं से आयेगी ---? दिपावली के रात जुआ खेला जाएगा , पूजापाठ करों और प्रसाद --पकवान अधिक खाकर पेट खराब करके डाक्टरों के पास भागो ......जुआ खेलो ...शराब पिओ ओर पिलाओं ...ऐसे अनेक प्रकार के विधाओं से धन की बरबादी होती हैं ,अत: धन की बरबादी रोकना ही लक्ष्मी जी का बरकत हैं ..................
बिजली विभाग का एक नारा हैं कि बिजली की बचत ही बिजली का उत्पादन हैं ,इसलिए धन की बचत ही धन की उत्पादन हैं । सीधी सी बात भी लोगों को समझमे न आवे तो चुल्लु भर पानी में मर जाना अच्छा हैं । पूजा पाठ ,टोटका ,तांत्रिक क्रिया ,आदी से लक्ष्मी खुश नहीं होते ....लक्ष्मी चंचला हैं उसे रोकने के लिए धन की बरबादी को रोकना अतिआवश्यक हैं ।
देश में जितने प्रकार के त्यौहार आज प्रचलित है ,और नए -नए त्यौहार भी चलाकी से बाजार में बिक्री हेतु पेश किया जा रहा है .... चलाक व्यपारी अपने घर में लक्ष्मी को बॉंधकर रखने के लिए एक से एक नियम समाज में विज्ञापित किया हैं , सॉठगॉठ करके हजारों सालों से मानसीक और आर्थिक शोषण का सिलसिला जारी है।
वैश्य और तथाकथित ब्रह्मणों ने मिलकर समाज से अधिकाधिक लाभ उठाने की पुरजोर कोशिस में आज भी कामयाब हैं । यदि दिपावली में लक्ष्मी किसी के पास आती है तो ये दोनों वर्गो के पास ही स्पष्ट रूप से दिखता हैं ,आज पूजापाठ के नाम पर धर्म के ठेकेदार -और दलालों को लक्ष्मीजी वरदान देगी , बनिये तो धनतेरस के नाम से लोगों को जिस तहर से लूटा हैं वह सुधी जनों से छिपा नहीं है।
लक्ष्मी पूजन करने के लिए जिस विधान आदी प्रचलित की गई हैं उसकी पुर्ति के लिए सिधे बनिये और तथाकथित ब्राह्मणों के पास ही रकम लेकर जाना होता है। जिसके पास रकम एकत्रित हो रहा है वे धनवान और उनके पास लक्ष्मी का वास होगा ..... या जिसके घर से लक्ष्मी बाहर जा रही हैं उसके पास लक्ष्मी रहेगी .....? हर त्यौहारों की छुपी हुई राज पैसा कमाने का होड हैं , हम समझते है कि यह धार्मिक कार्य हैं, इसे नहीं करने से हम कंगाल हो जाऐंगे , जबकि इस भय से हम लगातार कंगाल होते जा रहे है, इस बात को स्पष्ट रूप से हमें समझना होंगा ।
लक्ष्मी पूजन वही हैं जहॉं धन एकत्रित हो ,,,,फटाका फोड़कर धन की बरबादी से लक्ष्मी कहॉं से आयेगी ---? दिपावली के रात जुआ खेला जाएगा , पूजापाठ करों और प्रसाद --पकवान अधिक खाकर पेट खराब करके डाक्टरों के पास भागो ......जुआ खेलो ...शराब पिओ ओर पिलाओं ...ऐसे अनेक प्रकार के विधाओं से धन की बरबादी होती हैं ,अत: धन की बरबादी रोकना ही लक्ष्मी जी का बरकत हैं ..................
बिजली विभाग का एक नारा हैं कि बिजली की बचत ही बिजली का उत्पादन हैं ,इसलिए धन की बचत ही धन की उत्पादन हैं । सीधी सी बात भी लोगों को समझमे न आवे तो चुल्लु भर पानी में मर जाना अच्छा हैं । पूजा पाठ ,टोटका ,तांत्रिक क्रिया ,आदी से लक्ष्मी खुश नहीं होते ....लक्ष्मी चंचला हैं उसे रोकने के लिए धन की बरबादी को रोकना अतिआवश्यक हैं ।
दीपावली पर पवित्र भाव से मन और समाज को प्रकाशित करने वालों को शुभकामना-पर्यावरण के दुश्मनों को अशुभकामना
दिपावली आज धूल.धूर्त और धूओं का त्यौहार बन कर रह गया हैं ,जो जितनी कानफोडू आवाज के साथ फटाका फोडेंगे और वायु प्रदुषण से देश के जन जीवन को बरबाद करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहेंगे- वे उतने ही बड़े दिपावली हिरो कहलाएगा ,अरबों की कमाई वाली दिपावाली में जिनके पास लक्ष्मी जाना हैं वह तो कल धनतेरस के दिन ही जा चुकी हैं ,बाकी वे लक्ष्मी पुत्र पर्यावरण और जन जीवन के बारे में सोचते हुए असली मजा क्यों किरकिरा करें ............
कितने लोगों का कान का पर्दा फटेगा उसका तो गिनती नहीं है ,कई बच्चे जवान और लोग अपंग और स्वर्गवासी हो जाएँगे उसका भी सही पता भी लोगों को नहीं लगेगा ,मानसीक रूप से कमजोर लोग तो कल पागल की तरह उग्र हो जाऐगे क्योंकि उन्हें अधिक आवाज सहन नहीं होगा ।
दिपावली वर्तमान समय में द्वीपों का त्यौहार को फटाकों का त्यौहार कहें तो ज्यादा उपयुक्त होगा ,
मैं एक बार फिर धर्म संकट में पड़ गया हूँ ... मेरे चाहने वाले और न चाहने वालों को इस पर्व के लिए शुभकामना प्रेषित करूं कि नहीं ......... यदि पवित्र भावनाओं से मन और समाज को प्रकाशित करने के लिए यह त्यौहार मनाया जाए तो सभी को मेरी शुभकामना और पर्यावरण के दुश्मनों को अशुभकामना..........
कितने लोगों का कान का पर्दा फटेगा उसका तो गिनती नहीं है ,कई बच्चे जवान और लोग अपंग और स्वर्गवासी हो जाएँगे उसका भी सही पता भी लोगों को नहीं लगेगा ,मानसीक रूप से कमजोर लोग तो कल पागल की तरह उग्र हो जाऐगे क्योंकि उन्हें अधिक आवाज सहन नहीं होगा ।
दिपावली वर्तमान समय में द्वीपों का त्यौहार को फटाकों का त्यौहार कहें तो ज्यादा उपयुक्त होगा ,
मैं एक बार फिर धर्म संकट में पड़ गया हूँ ... मेरे चाहने वाले और न चाहने वालों को इस पर्व के लिए शुभकामना प्रेषित करूं कि नहीं ......... यदि पवित्र भावनाओं से मन और समाज को प्रकाशित करने के लिए यह त्यौहार मनाया जाए तो सभी को मेरी शुभकामना और पर्यावरण के दुश्मनों को अशुभकामना..........
बुधवार, 14 अक्तूबर 2009
मोहन लाल गुप्ताजी के आलेख पर --देश के नैतिकवानों एक हो
कल ही मोहन लाल गुप्ता जी के आलेख पढने का मौका मिला ,मुझे बहुत अच्छा लगने के साथ ही साथ यह भी सोचने के लीए मजबूर कर दिया हैं कि क्या वास्तव में हम एक अराजकता की और एक दो कदम नहीं, परन्तु अनेक कदम बढा लिए हैं ? और उस कदम को आज पिछे लाने का कोई उपाय शेष नहीं रह गया है ..?
मैंने भी मेरे अनेक आलेखों के माध्यम से यही बात समाज के सामने रखने का प्रयत्न किया कि प्रतिभा ..सम्मान आदी मेरे देश की किस काम की है ....यदि उस प्रतिभा का लाभ मेरे देश को न मिले ! बड़े -बड़े धनवान लोगों से मेरे देश का क्या भला होने को हैं ...... शासन को उनके द्वारा कमाया हुआ रकम का कुछ हिस्सा जरूर मिल जाता है ,चुनाव के समय उन्हें चंदा मिल जाती हैं ,नाम मात्र के कुछ कर लाभ भी हो जाता है। बच्चों को उंची बेतन में नौकरी का लाभ प्राप्त होने के अलावा भी एक लाभ जो सुरा और सुन्दरियों पर समाप्त होकर आगे गुलामी सा नारकिया जीवन ....................
मोहन लाल गुप्ता ने इतिहास से अनेक उदारण देकर यह समझाने का प्रयत्न किया कि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति देशभक्त होगा यह जरूरी नहीं हैं और कम प्रतिभाशाली व्यक्ति यदि देशभक्त हैं तो देश के लिए अधिक उपयोगी हो सकता हैं ।
गुप्ता जी ! एक कदम आगे बढते हुए मैं तो यह कहना ज्यादा उपयुक्त समझता हूँ कि प्रतिभावान व्यक्ति ही इस देश के लिए अधिक खतरनाक है । अपवाद शब्द का उपयोग इसलिए कर रहा हूँ ताकि कोई दावा करें कि मुझमें प्रतिभा हैं परन्तु मैं देशभक्त हूँ ,ऐसे लोगों के लिए यह शब्द रखना जरूरी है ।
हमें आज अधिक प्रतिभावानों की आवश्यकता नहीं है ,कलेक्टर बनने के लिए आई ए एस जैसे प्रतियोगिता से अच्छा हैं कि गुप्त रूप से पता लगाना ज्यादा उपयुक्त होगा कि कौन इमानदार और देशभक्त है , हर शहर और गॉव में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो जनसेवा में इमानदारी से हमेशा सक्रिय रहते हैं ऐसे लोगा भले कम पढा लिखा हो उन्हें प्रशिक्षण देकर जिम्मेदारी दिया जा सकता हैं आज के सफेद हाथी पालने की अपेक्षा यह रास्ता मुझे अच्छा लगता है ।
अब यह बात तो स्पष्ट हैं कि हमारे व्यवस्था में ही कहीं खामियॉं आ गई हैं, जिसके चलते समाज में जिसे सम्मान मिलना चाहिए उन्हें सम्मान नहीं मिलता और जिन्हें बहिष्कार करना चाहिए उन्हें सम्मान दिया जा रहा हैं । सबसे पहले तो मानसीक रूप से हमें तैयारी करनी हैं कि हम लेखनी द्वारा समाज को अब जगाने का काम करने के साथ ही साथ इमानदार लोगों को एकत्रित करने के लिए एक मुहिम छेड़ा जाए ,यह आज वर्तमान समय के लिए एक पवीत्र कार्य होगा ................... मैं इस प्रकार के मुहिम में तन -मन -धन से सहयोग करूंगा । देश के नैतिकवानों ------------------
मैंने भी मेरे अनेक आलेखों के माध्यम से यही बात समाज के सामने रखने का प्रयत्न किया कि प्रतिभा ..सम्मान आदी मेरे देश की किस काम की है ....यदि उस प्रतिभा का लाभ मेरे देश को न मिले ! बड़े -बड़े धनवान लोगों से मेरे देश का क्या भला होने को हैं ...... शासन को उनके द्वारा कमाया हुआ रकम का कुछ हिस्सा जरूर मिल जाता है ,चुनाव के समय उन्हें चंदा मिल जाती हैं ,नाम मात्र के कुछ कर लाभ भी हो जाता है। बच्चों को उंची बेतन में नौकरी का लाभ प्राप्त होने के अलावा भी एक लाभ जो सुरा और सुन्दरियों पर समाप्त होकर आगे गुलामी सा नारकिया जीवन ....................
मोहन लाल गुप्ता ने इतिहास से अनेक उदारण देकर यह समझाने का प्रयत्न किया कि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति देशभक्त होगा यह जरूरी नहीं हैं और कम प्रतिभाशाली व्यक्ति यदि देशभक्त हैं तो देश के लिए अधिक उपयोगी हो सकता हैं ।
गुप्ता जी ! एक कदम आगे बढते हुए मैं तो यह कहना ज्यादा उपयुक्त समझता हूँ कि प्रतिभावान व्यक्ति ही इस देश के लिए अधिक खतरनाक है । अपवाद शब्द का उपयोग इसलिए कर रहा हूँ ताकि कोई दावा करें कि मुझमें प्रतिभा हैं परन्तु मैं देशभक्त हूँ ,ऐसे लोगों के लिए यह शब्द रखना जरूरी है ।
हमें आज अधिक प्रतिभावानों की आवश्यकता नहीं है ,कलेक्टर बनने के लिए आई ए एस जैसे प्रतियोगिता से अच्छा हैं कि गुप्त रूप से पता लगाना ज्यादा उपयुक्त होगा कि कौन इमानदार और देशभक्त है , हर शहर और गॉव में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो जनसेवा में इमानदारी से हमेशा सक्रिय रहते हैं ऐसे लोगा भले कम पढा लिखा हो उन्हें प्रशिक्षण देकर जिम्मेदारी दिया जा सकता हैं आज के सफेद हाथी पालने की अपेक्षा यह रास्ता मुझे अच्छा लगता है ।
अब यह बात तो स्पष्ट हैं कि हमारे व्यवस्था में ही कहीं खामियॉं आ गई हैं, जिसके चलते समाज में जिसे सम्मान मिलना चाहिए उन्हें सम्मान नहीं मिलता और जिन्हें बहिष्कार करना चाहिए उन्हें सम्मान दिया जा रहा हैं । सबसे पहले तो मानसीक रूप से हमें तैयारी करनी हैं कि हम लेखनी द्वारा समाज को अब जगाने का काम करने के साथ ही साथ इमानदार लोगों को एकत्रित करने के लिए एक मुहिम छेड़ा जाए ,यह आज वर्तमान समय के लिए एक पवीत्र कार्य होगा ................... मैं इस प्रकार के मुहिम में तन -मन -धन से सहयोग करूंगा । देश के नैतिकवानों ------------------
सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
प्राकृतिक संशाधनों की लुट में सबको हिस्सा चाहिए ---
नियम-कानूनों का हवाला देकर प्राकृतिक संशाधनों को लूटने की छुट सरकार दे रही हैं । इस लूट में क्या सरकार भी भागीदार नहीं है.....? हजारों एकड़ों में सेज के नाम पर जल... जमिन और जंगलों का सफाया कर अमीरों को लूटने की खूली छुट दिया जा रहा हैं । एक पेड़ काटने पर वन विभाग जुमार्ना करती हैं ,गरिबों पर मामला दर्ज कर जेल में ढूंस देती हैं और कानूनी रूप से जनसुनवाई और अन्य बहाने हजारों एकड़ भूमि को बंजर बनने का कोई दोषी नहीं है ।
प्राकृतिक संशाधनों का लाभ सभी को मिलना चाहिए , मैं नहीं कहता कि समान रूप से सभी को लाभ दिया जाय ,पर लाभ का हिस्सा तो सबको मिलना ही चाहिए ,यदि प्राकृतिक संशाधनों को सरकार नाश करने को तुली हुई हैं तो उस नाश का तात्कालिक लाभ से गरिबों को क्यों अलग रखा जा रहा हैं ?
जंगलों को काटने की खूली छुट गरिबों को मिलना चाहिए ...कोयले खदानों से कोयला निकालने की भी छुट सबको होना चाहिए , मात्र मुठि्ठ भर लोग लाभ ले और अन्य लोग ताकते रहे-- यह कैसे सम्भव हैं ....? वन विभाग का काम मात्र यह हो कि नए नए स्थान में जंगल विकसित करें और आगे बढते जाए ...उसका उपयोग जो जैसे चाहे वैसे करते रहे इस पर कोई रोक टोक नहीं होना चहिए ।
देश के सभी खनिज सम्पदाओं को यदि निजी हाथों में दे कर कुछ लोगों के आड़ में जब सरकार में बैठे लोग उसका उपयोग कर धनी बन रहे हैं ,तो गरिब को भी धनी बनने का हक तो हैं ........1 रूपया या 2 रूपये किलो चावल और नमक मुफत में बॉट कर इस देश की गरिबी नहीं हट सकती ,इससे तो लोग अलाल और नपुंशक होते जा रहे हैं ,देश के कुछ धन पिशाचों को तो इस तरह की स्थिति वरदान साबित हो रहा हैं ।
जब लूट लगी हैं तो सबको लूटने दो ........... लूटने के लिए कोई कानुन नहीं होना चाहिए ,जिसकी लाठी उसकी भैस वाली बात जब फिर वापस आने को हैं तो आने दो .........बंद कर दो सारी व्यवस्था ..... कानुन ..नियम ..... अराजक राज जब शुरू हो चुकी हैं तो कब तक आग को कागज से ढंक कर रखने का नाटक किया जाएगा ...? असफल सरकार ..... नपुंशक समाज ............ अनैतिक नेताओं से अब किसको क्या उम्मिद बची हैं ...............?
प्राकृतिक संशाधनों का लाभ सभी को मिलना चाहिए , मैं नहीं कहता कि समान रूप से सभी को लाभ दिया जाय ,पर लाभ का हिस्सा तो सबको मिलना ही चाहिए ,यदि प्राकृतिक संशाधनों को सरकार नाश करने को तुली हुई हैं तो उस नाश का तात्कालिक लाभ से गरिबों को क्यों अलग रखा जा रहा हैं ?
जंगलों को काटने की खूली छुट गरिबों को मिलना चाहिए ...कोयले खदानों से कोयला निकालने की भी छुट सबको होना चाहिए , मात्र मुठि्ठ भर लोग लाभ ले और अन्य लोग ताकते रहे-- यह कैसे सम्भव हैं ....? वन विभाग का काम मात्र यह हो कि नए नए स्थान में जंगल विकसित करें और आगे बढते जाए ...उसका उपयोग जो जैसे चाहे वैसे करते रहे इस पर कोई रोक टोक नहीं होना चहिए ।
देश के सभी खनिज सम्पदाओं को यदि निजी हाथों में दे कर कुछ लोगों के आड़ में जब सरकार में बैठे लोग उसका उपयोग कर धनी बन रहे हैं ,तो गरिब को भी धनी बनने का हक तो हैं ........1 रूपया या 2 रूपये किलो चावल और नमक मुफत में बॉट कर इस देश की गरिबी नहीं हट सकती ,इससे तो लोग अलाल और नपुंशक होते जा रहे हैं ,देश के कुछ धन पिशाचों को तो इस तरह की स्थिति वरदान साबित हो रहा हैं ।
जब लूट लगी हैं तो सबको लूटने दो ........... लूटने के लिए कोई कानुन नहीं होना चाहिए ,जिसकी लाठी उसकी भैस वाली बात जब फिर वापस आने को हैं तो आने दो .........बंद कर दो सारी व्यवस्था ..... कानुन ..नियम ..... अराजक राज जब शुरू हो चुकी हैं तो कब तक आग को कागज से ढंक कर रखने का नाटक किया जाएगा ...? असफल सरकार ..... नपुंशक समाज ............ अनैतिक नेताओं से अब किसको क्या उम्मिद बची हैं ...............?
मैं घोर राष्ट्रवादी हूँ विश्वबन्धुत्व का दुश्मन --कुपमन्दुक---
मैं एक घोर राष्ट्रवादी हूँ .... मुझे दुनियॉ के हर चीज वैसा नहीं दिखता जैसा वह हैं ,दिखने की.. और होने के बीच में एक सरल रेखा न चाहते हुए भी बार -बार खींचता चला जाता हूँ , आज तो मुझे मेरे देश के सिवाय कुछ दिखता ही नहीं है।
मैं अप्रवासी भारतीयों को मिलने वाली सम्मान भी कोई अच्छी नजर से नहीं देख पाता .........पिछले समय दुनियॉं में तहलका मचाने वाले भारतीय मूल के अमर्त सेन जी को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ, अर्थशास्त्र के महान विद्वान .... कल्याण कारी अर्थशास्त्र के चिन्तक ....जरा सोचने की बात हैं कि इस प्रकार के पुरस्कार से मेरे देश को क्या मिला ? यही न कि सेन जी कभी भारतीय थे ..... और भारत में उनके जैसे विद्वानों का सम्मान न मिलने के कारण देश छोडकर विदेश चले गए...?
भु पू राष्ट्रपति कलाम जी को भी अनेक बार विदेश जाने और डालरों का लोभ दिया गया, विशेष कर अमेरिका से ............ परन्तु कलाम जी ने देश प्रेम और कर्तव्य बोध से प्रेरीत होकर देश सेवा को सर्वोपरि मानते हुए डालरों का लोभ त्याग कर ,भारत वर्ष में ही रहना पसन्द किया ,
श्री स्वराज पाल को इंग्लैण्ड में लार्ड पाल कहते हैं ..... उससे मुझे और मेरे देश को क्या फायदा ...? आप बड़े तोप खान है ,आरबों से खेलते हैं ....बड़े -बड़े महलों में रात गुजारते हैं, और वहॉं से देश के लिए घडियाली ऑंसू बहाते हैं ........... यह हैं प्रवासी भारतीय ।
जरा लक्ष्मी मित्तल जी पर नजर डालना आवश्यक हैं ॥ एक पत्रकार ने पुछा कि- वीलगेट ने अपना सारा सम्पत्ति गरीब दु:खियों में बॉंटकर समाज सेवा में व्यास्त हो गये हैं ,क्या आप भी वैसा करना चाहते हैं ? जवाब मिला कि अभी तो मुझे बहुत आगे बढना हैं ...बहुत कमाना है ....आगे सुनिए ......जब पूछा गया कि आप भारत में रहना पसन्द करेंगे ? उन्होंने जबाव दिया कि भारत के लोग अमीर लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं अत: यहॉं आना पसन्द नहीं ।
हम हैं कि ऐसे लोगों को देख कर अपने आप को गर्व महशुस करते हैं ......... धन पिशाचों पर गर्व करना छोडकर हमें अपने आप को इमानदारी पूर्वक भारतीयता के आधार पर देश को स्थापित करना होगा ,तभी हम जीने और गर्व करने लायक बन सकेंगे ............
मुझे अपने आप को राष्ट्रवादी कहने में कोई झिझक नहीं है ............ लोग विश्ववादी कहते हुए गर्व करते हैं और आज मेरे जैसे लोग आपने आप को राष्ट्रवादी कह कर अधिकांश लोगों को आलोचना करने की खुली छुट देने को तैयार हैं ........... कहिए मैं कुपमण्डुक हूँ ........ संकुचित विचार का हूँ ..... विश्वबन्धुत्व का दुश्मन हूँ ..............गाली भी दिजीए ..................... पर एक बात याद रखिए कि- इस देश को यदि आगे ले जाना हैं तो घोर राष्ट्रवाद के रास्ते से ही जाना होगा ........
मैं अप्रवासी भारतीयों को मिलने वाली सम्मान भी कोई अच्छी नजर से नहीं देख पाता .........पिछले समय दुनियॉं में तहलका मचाने वाले भारतीय मूल के अमर्त सेन जी को नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ, अर्थशास्त्र के महान विद्वान .... कल्याण कारी अर्थशास्त्र के चिन्तक ....जरा सोचने की बात हैं कि इस प्रकार के पुरस्कार से मेरे देश को क्या मिला ? यही न कि सेन जी कभी भारतीय थे ..... और भारत में उनके जैसे विद्वानों का सम्मान न मिलने के कारण देश छोडकर विदेश चले गए...?
भु पू राष्ट्रपति कलाम जी को भी अनेक बार विदेश जाने और डालरों का लोभ दिया गया, विशेष कर अमेरिका से ............ परन्तु कलाम जी ने देश प्रेम और कर्तव्य बोध से प्रेरीत होकर देश सेवा को सर्वोपरि मानते हुए डालरों का लोभ त्याग कर ,भारत वर्ष में ही रहना पसन्द किया ,
श्री स्वराज पाल को इंग्लैण्ड में लार्ड पाल कहते हैं ..... उससे मुझे और मेरे देश को क्या फायदा ...? आप बड़े तोप खान है ,आरबों से खेलते हैं ....बड़े -बड़े महलों में रात गुजारते हैं, और वहॉं से देश के लिए घडियाली ऑंसू बहाते हैं ........... यह हैं प्रवासी भारतीय ।
जरा लक्ष्मी मित्तल जी पर नजर डालना आवश्यक हैं ॥ एक पत्रकार ने पुछा कि- वीलगेट ने अपना सारा सम्पत्ति गरीब दु:खियों में बॉंटकर समाज सेवा में व्यास्त हो गये हैं ,क्या आप भी वैसा करना चाहते हैं ? जवाब मिला कि अभी तो मुझे बहुत आगे बढना हैं ...बहुत कमाना है ....आगे सुनिए ......जब पूछा गया कि आप भारत में रहना पसन्द करेंगे ? उन्होंने जबाव दिया कि भारत के लोग अमीर लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते हैं अत: यहॉं आना पसन्द नहीं ।
हम हैं कि ऐसे लोगों को देख कर अपने आप को गर्व महशुस करते हैं ......... धन पिशाचों पर गर्व करना छोडकर हमें अपने आप को इमानदारी पूर्वक भारतीयता के आधार पर देश को स्थापित करना होगा ,तभी हम जीने और गर्व करने लायक बन सकेंगे ............
मुझे अपने आप को राष्ट्रवादी कहने में कोई झिझक नहीं है ............ लोग विश्ववादी कहते हुए गर्व करते हैं और आज मेरे जैसे लोग आपने आप को राष्ट्रवादी कह कर अधिकांश लोगों को आलोचना करने की खुली छुट देने को तैयार हैं ........... कहिए मैं कुपमण्डुक हूँ ........ संकुचित विचार का हूँ ..... विश्वबन्धुत्व का दुश्मन हूँ ..............गाली भी दिजीए ..................... पर एक बात याद रखिए कि- इस देश को यदि आगे ले जाना हैं तो घोर राष्ट्रवाद के रास्ते से ही जाना होगा ........
रविवार, 11 अक्तूबर 2009
मत सम्प्रदाय हिंदू -मुस्लिम जी का जंजाल --धर्म कहाँ ---?
धर्म पर ब्लोगर बन्धुओं के बीच एक जोरदार बहस चल निकला हैं , बहुत दिनों से बड़े-छोटे सभी ब्लोगर इस बहस में भाग लेते देख मैंने भी सोचा कि इस विषय से स्वयं को अलग रखना कतई उचित नहीं है।
धर्म पर एक विस्तृत पोस्ट मेरे लेखों में पूर्व से सम्मिलित हैं ,इस पोस्ट के बाद यदि जिज्ञासु रूची लेकर पूर्व लेख पढ़ने में कुछ समय निकाले तो हो सकता हैं कुछ नई बात सामने आ सकें ।
इस विचार शुरू करने के पहले मैं विषयान्तर्गत कुछ बातें लिखना आवश्यक समझता हूँ कि- मैं एक ईश्वरीय सत्ता पर विस्वास करता हूँ ,परन्तु न मैं अपने आप को हिन्दु ,न मुस्लिम ,न इसाई ,न जैन ,और न ही अन्य कोई मतवादों से बॉंधना चाहता हूँ ,आज अपवाद को छोडकर एक भी मत मानवता के सिद्धान्त पर खरे नहीं उतरने के कारण मैं यह भी मानता हूं कि आज हिन्दु कहलाने वाले मात्र अपने आप को हिन्दु ही कहते है ,मुस्लिम भी कहने के लिए मुस्लिम है, इसाई भी नाम मात्र के इसाई है ,जैन भी वेसे ही और सिख भी वैसी ।
दुनियॉं में जितने भी मत हैं या सम्प्रदाय हैं जिसे मजहब भी कह सकते है ,किसी में भी कोई कमी मुझे नहीं दिखता है ,एक मुस्लिम मत कहता है कि यदि हाथ गलत कार्य में लिप्त हो तो उसे काट देना चाहिए ,यदि ऑख गलत चीजों पर आकृष्ट हो तो ऑंख फोड़ देना चाहिए ,मात्र दो पर ही विचार करें तो साफ हो जाता हैं कि मनुष्य जन्म अच्छाई के लिए मिला हैं ,गलत कार्य करने और करवाने के लिए नहीं ।
क्या मुस्लिम उक्त बातों को व्यवहारिक जीवन में लागू करते हैं ? मुस्लिम भाई यदि उक्त बातों को जीवन में नहीं उतार सके, तो वे किस बात के लिए दावा करते हैं कि मैं मुस्लिम हूं ?
कुरान में तो कमजोरों को मदद करने की बाते लिखी हैं , ज़कार्ता की बाते है ,अपनी आय के एक अंश जरूरत मंद लोगों को बॉटने की बाते साफ लिखा हुआ हैं ,कितने मुस्लिम भाई इमान पर कायम हैं ? दु:ख तो तब अधिक होता है जब जिस देश का खाया जाता हैं, उसी देश के खिलाफ षडयंत्र रचते हुए दुश्मनों को मदद करते हुए मुस्लिम भाई पकड़े जाते है ।
मैं नहीं कहता कि मुस्लिम देश भक्त नहीं होते ,मैं तो मात्र यह कहना चाहता हूँ कि ५ बार नमाज अदा करने मात्र से कोई मुस्लिम नहीं हो जाते है ।
अब जरा हिन्दुओं पर विचार किया जाए तो पता लगता हैं कि भारत वर्ष में मुझे खोजने पर भी हिन्दु नजर नहीं आते , मंदिरों में माथा टेकने से और पूजा पाठ में लिप्त रहकर, बड़ा सा टिका माथे में लगा लेने से कोई हिन्दु नहीं हो जाता हैं ।
हिन्दुओं में जाति व्यवस्था तो एक नासूर बन चुका हैं ,देश के धर्म के नाम पर ठेकेदारी चलाने वाले इस प्रथा को जड़ से खत्म क्यों नहीं करते ? इस देश में तो स्वयभू भगवानों की कमी नहीं हैं ,ऐसे भगवान देश में हो रहे मानव-मानव का नफरत देख कर मात्र बयान बाजी करने के सिवाय अन्य कुछ भी करने में क्यों हिचकते हैं ?
मैं एक बहुत ही कटु उदाहरण देना चाहता हूँ ....महानायक अमिताभ बच्चन को दुनियॉं में अधिकांश लोग पहचानते हैं ,अभी ६७ वर्ष के उम्र में भी पर्दे पर कुछ भी करते हुए नजर आ जाते है , पैसे के लिए कुछ भी करेगा वाली बात तो बच्चन जी में आज एक दम सठीक बैठ रहा हैं ।
हिन्दु मत में एक आश्रम व्यावस्था की बात लिखी हुई है ,५ वर्ष से २५ वर्ष तक व्रह्मचार्य,२६ से ५० वर्ष की उम्र तक गृहस्थाश्रम ,५१ से ७५ तक वाणप्रस्थाश्रम ,और ७६ से सन्यास आश्रम की प्रावधान हैं ,क्या बच्चन ही वाणप्रस्थ आश्रम के नियम को पालन कर रहे है ? यदि नही तो वे हिन्दु कैसे हो सकते हैं ? नियमों को पालन नहीं करेंगे ,लेकिन अपने आप को हिन्दु कहेंगें ,वाह भाई .....
मैने बच्चन जी का मात्र उदाहरण दिया हैं ,ऐसे तो एक ढुढों तो सौ मिल जाऐंगे ,किसका किसका नाम गिनाता रहूँ ? राजनीति में तो भरमार है ............
जैन मत में अपरिग्रह की नीति तो मुझे बहुत अच्छी लगती है ,छात्र जीवन में जैन दर्शन से मै प्रभावित भी था, लेकिन आगे चल कर जैनियों का हालत देख कर मुझे तो रोना आता हैं ....... अहिंसा ,सत्य,आस्तेय ,ब्रम्हचार्य ,अपरिग्रह नीति, मन-कर्म और वाचा से पालन करने की बातें लिखी हुई हैं ,किन्तु कितने लोग इसे पालन करते है ? जो पालन करते हैं वे जैनि हैं, जो जितेन्द्रिय हैं, वे जैनि और जो नहीं हैं वे कैसे जैनी हो सकते हैं ?
इसाईयों की नीति जरा सुनिये ...प्रेम से दुनियॉं जितने की बाते किया गया हैं ,प्रेम करने वालों को स्वर्ग मिलेगा ,ईसामसिह को सूली पर चढाने के बाद भी वे कहते रहे कि- हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना ,ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं ...
लेकिन आज बाईबिल को कितने लोग मानते है ? दुनियॉं में जहॉं -जहॉं भूखमरी ,गरिबी हैं वहॉं जाकर ये लोग सेवा के नाम पर ईसाइ बनाने में अपना प्रधान फर्ज समझते है। भारत वर्ष में तो आए दिन आदिवासी और चर्च के बीच में लड़ाई की खबरे आम बात हो गई है।
अब सोचने वाली बात यह है कि क्या बाईबिल में जरूरत मंद लोगों को ईसाइ बनाने की बाते लिखी हुई हैं ? मैंने जहॉं तक समझा और पढा हैं ...ऐसा कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा , फिर चर्च में जाकर प्रार्थना करने मात्र से मैं ऐसे लोगों को ईसाइ कैसे मान लूँ ?
सिक्ख भाईयों को पंच "क" कार धारण करने की इजाजत हैं , इसका अर्थ यह हुआ कि सनातन धर्म पर यदि विपत्ति आती है , तो हमेशा रक्षा करने को तैयार रहना । कितने सिक्ख इस बात से इन्कार कर सकते है ? मैं समझता हूँ कि एक भी शायद ही मिलेगें ,क्या आज सनातन धर्म पर विपत्ति की स्थिति नहीं हैं ? चारों ओर हाहाकर मची हुई नहीं हैं ? जाति के नाम पर यहॉं मार काट होती हैं ,हरिजन स्त्रीयों की ईज्जत तो मानों खिलौना है ,गरिबी ,भूखमरी ,बेरोजगारी आदी क्या सनातन धर्म को रसातल नहीं ले जा रही है ?
उक्त स्थितियों को देखते हुए भी अत्याचारियों के खिलाफ म्यान से तलवार कयों नहीं निकलती ? क्या सामने विपत्ति देखकर भी चुपचाप सहने वालों को सिक्ख कहा जा सकता है ?
तमाम मत साम्प्रदाय कभी धर्म नहीं हो सकता है । धर्म मात्र एक है ,मानवता के नाते जो भी गुण लोगों में होना चाहिए वे सभी गुण ही धर्म है । और सभी गुणी जनों को ही धार्मिक कहलाने योग्य हैं ।
दया ,माया,क्षमा ,अपरिग्रह ,सत्य, सेवा ,त्याग ,आदी मानवोचित गुणों को धारण करते हुए ईश्वर की समर्पित भाव से आराधना और आडम्बर रहित प्रार्थना द्वारा उन्हें अनुभव करने का ही नाम धर्म कहा जा सकता है।
उक्त गुणों को सिखने के लिए किसी दलाल की आवश्यकता नहीं हैं , हॉं यदि उच्च ज्ञानी और गुणी से कभी दर्शन हो जाए तो उपदेशों का पालन करने में कोई हर्ज भी नहीं है ,परन्तु आज तो विरले ही मिलेंगें ...........मत -संप्रदाय जी का जंजाल --धर्म कहाँ --?
धर्म पर एक विस्तृत पोस्ट मेरे लेखों में पूर्व से सम्मिलित हैं ,इस पोस्ट के बाद यदि जिज्ञासु रूची लेकर पूर्व लेख पढ़ने में कुछ समय निकाले तो हो सकता हैं कुछ नई बात सामने आ सकें ।
इस विचार शुरू करने के पहले मैं विषयान्तर्गत कुछ बातें लिखना आवश्यक समझता हूँ कि- मैं एक ईश्वरीय सत्ता पर विस्वास करता हूँ ,परन्तु न मैं अपने आप को हिन्दु ,न मुस्लिम ,न इसाई ,न जैन ,और न ही अन्य कोई मतवादों से बॉंधना चाहता हूँ ,आज अपवाद को छोडकर एक भी मत मानवता के सिद्धान्त पर खरे नहीं उतरने के कारण मैं यह भी मानता हूं कि आज हिन्दु कहलाने वाले मात्र अपने आप को हिन्दु ही कहते है ,मुस्लिम भी कहने के लिए मुस्लिम है, इसाई भी नाम मात्र के इसाई है ,जैन भी वेसे ही और सिख भी वैसी ।
दुनियॉं में जितने भी मत हैं या सम्प्रदाय हैं जिसे मजहब भी कह सकते है ,किसी में भी कोई कमी मुझे नहीं दिखता है ,एक मुस्लिम मत कहता है कि यदि हाथ गलत कार्य में लिप्त हो तो उसे काट देना चाहिए ,यदि ऑख गलत चीजों पर आकृष्ट हो तो ऑंख फोड़ देना चाहिए ,मात्र दो पर ही विचार करें तो साफ हो जाता हैं कि मनुष्य जन्म अच्छाई के लिए मिला हैं ,गलत कार्य करने और करवाने के लिए नहीं ।
क्या मुस्लिम उक्त बातों को व्यवहारिक जीवन में लागू करते हैं ? मुस्लिम भाई यदि उक्त बातों को जीवन में नहीं उतार सके, तो वे किस बात के लिए दावा करते हैं कि मैं मुस्लिम हूं ?
कुरान में तो कमजोरों को मदद करने की बाते लिखी हैं , ज़कार्ता की बाते है ,अपनी आय के एक अंश जरूरत मंद लोगों को बॉटने की बाते साफ लिखा हुआ हैं ,कितने मुस्लिम भाई इमान पर कायम हैं ? दु:ख तो तब अधिक होता है जब जिस देश का खाया जाता हैं, उसी देश के खिलाफ षडयंत्र रचते हुए दुश्मनों को मदद करते हुए मुस्लिम भाई पकड़े जाते है ।
मैं नहीं कहता कि मुस्लिम देश भक्त नहीं होते ,मैं तो मात्र यह कहना चाहता हूँ कि ५ बार नमाज अदा करने मात्र से कोई मुस्लिम नहीं हो जाते है ।
अब जरा हिन्दुओं पर विचार किया जाए तो पता लगता हैं कि भारत वर्ष में मुझे खोजने पर भी हिन्दु नजर नहीं आते , मंदिरों में माथा टेकने से और पूजा पाठ में लिप्त रहकर, बड़ा सा टिका माथे में लगा लेने से कोई हिन्दु नहीं हो जाता हैं ।
हिन्दुओं में जाति व्यवस्था तो एक नासूर बन चुका हैं ,देश के धर्म के नाम पर ठेकेदारी चलाने वाले इस प्रथा को जड़ से खत्म क्यों नहीं करते ? इस देश में तो स्वयभू भगवानों की कमी नहीं हैं ,ऐसे भगवान देश में हो रहे मानव-मानव का नफरत देख कर मात्र बयान बाजी करने के सिवाय अन्य कुछ भी करने में क्यों हिचकते हैं ?
मैं एक बहुत ही कटु उदाहरण देना चाहता हूँ ....महानायक अमिताभ बच्चन को दुनियॉं में अधिकांश लोग पहचानते हैं ,अभी ६७ वर्ष के उम्र में भी पर्दे पर कुछ भी करते हुए नजर आ जाते है , पैसे के लिए कुछ भी करेगा वाली बात तो बच्चन जी में आज एक दम सठीक बैठ रहा हैं ।
हिन्दु मत में एक आश्रम व्यावस्था की बात लिखी हुई है ,५ वर्ष से २५ वर्ष तक व्रह्मचार्य,२६ से ५० वर्ष की उम्र तक गृहस्थाश्रम ,५१ से ७५ तक वाणप्रस्थाश्रम ,और ७६ से सन्यास आश्रम की प्रावधान हैं ,क्या बच्चन ही वाणप्रस्थ आश्रम के नियम को पालन कर रहे है ? यदि नही तो वे हिन्दु कैसे हो सकते हैं ? नियमों को पालन नहीं करेंगे ,लेकिन अपने आप को हिन्दु कहेंगें ,वाह भाई .....
मैने बच्चन जी का मात्र उदाहरण दिया हैं ,ऐसे तो एक ढुढों तो सौ मिल जाऐंगे ,किसका किसका नाम गिनाता रहूँ ? राजनीति में तो भरमार है ............
जैन मत में अपरिग्रह की नीति तो मुझे बहुत अच्छी लगती है ,छात्र जीवन में जैन दर्शन से मै प्रभावित भी था, लेकिन आगे चल कर जैनियों का हालत देख कर मुझे तो रोना आता हैं ....... अहिंसा ,सत्य,आस्तेय ,ब्रम्हचार्य ,अपरिग्रह नीति, मन-कर्म और वाचा से पालन करने की बातें लिखी हुई हैं ,किन्तु कितने लोग इसे पालन करते है ? जो पालन करते हैं वे जैनि हैं, जो जितेन्द्रिय हैं, वे जैनि और जो नहीं हैं वे कैसे जैनी हो सकते हैं ?
इसाईयों की नीति जरा सुनिये ...प्रेम से दुनियॉं जितने की बाते किया गया हैं ,प्रेम करने वालों को स्वर्ग मिलेगा ,ईसामसिह को सूली पर चढाने के बाद भी वे कहते रहे कि- हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना ,ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं ...
लेकिन आज बाईबिल को कितने लोग मानते है ? दुनियॉं में जहॉं -जहॉं भूखमरी ,गरिबी हैं वहॉं जाकर ये लोग सेवा के नाम पर ईसाइ बनाने में अपना प्रधान फर्ज समझते है। भारत वर्ष में तो आए दिन आदिवासी और चर्च के बीच में लड़ाई की खबरे आम बात हो गई है।
अब सोचने वाली बात यह है कि क्या बाईबिल में जरूरत मंद लोगों को ईसाइ बनाने की बाते लिखी हुई हैं ? मैंने जहॉं तक समझा और पढा हैं ...ऐसा कहीं भी लिखा नहीं मिलेगा , फिर चर्च में जाकर प्रार्थना करने मात्र से मैं ऐसे लोगों को ईसाइ कैसे मान लूँ ?
सिक्ख भाईयों को पंच "क" कार धारण करने की इजाजत हैं , इसका अर्थ यह हुआ कि सनातन धर्म पर यदि विपत्ति आती है , तो हमेशा रक्षा करने को तैयार रहना । कितने सिक्ख इस बात से इन्कार कर सकते है ? मैं समझता हूँ कि एक भी शायद ही मिलेगें ,क्या आज सनातन धर्म पर विपत्ति की स्थिति नहीं हैं ? चारों ओर हाहाकर मची हुई नहीं हैं ? जाति के नाम पर यहॉं मार काट होती हैं ,हरिजन स्त्रीयों की ईज्जत तो मानों खिलौना है ,गरिबी ,भूखमरी ,बेरोजगारी आदी क्या सनातन धर्म को रसातल नहीं ले जा रही है ?
उक्त स्थितियों को देखते हुए भी अत्याचारियों के खिलाफ म्यान से तलवार कयों नहीं निकलती ? क्या सामने विपत्ति देखकर भी चुपचाप सहने वालों को सिक्ख कहा जा सकता है ?
तमाम मत साम्प्रदाय कभी धर्म नहीं हो सकता है । धर्म मात्र एक है ,मानवता के नाते जो भी गुण लोगों में होना चाहिए वे सभी गुण ही धर्म है । और सभी गुणी जनों को ही धार्मिक कहलाने योग्य हैं ।
दया ,माया,क्षमा ,अपरिग्रह ,सत्य, सेवा ,त्याग ,आदी मानवोचित गुणों को धारण करते हुए ईश्वर की समर्पित भाव से आराधना और आडम्बर रहित प्रार्थना द्वारा उन्हें अनुभव करने का ही नाम धर्म कहा जा सकता है।
उक्त गुणों को सिखने के लिए किसी दलाल की आवश्यकता नहीं हैं , हॉं यदि उच्च ज्ञानी और गुणी से कभी दर्शन हो जाए तो उपदेशों का पालन करने में कोई हर्ज भी नहीं है ,परन्तु आज तो विरले ही मिलेंगें ...........मत -संप्रदाय जी का जंजाल --धर्म कहाँ --?
रविवार, 4 अक्तूबर 2009
अब बाबा रामदेव और राजीव दिक्षित स्काटलैंड के टापू से दुनियाँ में क्रांति करेंगे !--2
3 अक्टूबर 2009 को जब मैंने रामदेव बाबा पर कुछ लिखना चाहा तो एक बार नहीं अनेक बार सोचता रहा कि क्या मुझे ऐसा करना चाहिए ..... देश में भ्रष्ट बाबा लोगों से तो रामदेव जी बहुत अच्छे कार्य कर रहे हैं । फिर भी लिखने का साहस किया ,क्योंकि दूध का जला छॉछ को भी फूंक फूंक कर पीता है ।
भारत भूमि हमेशा त्याग की बुनियादी शिक्षा देता आया हैं ,यहॉं त्यागी और भोगी का परिभाषा ही अलग हैं । जो भोगी हैं वह कभी योगी नहीं बन सकते ,भौतिक साधनों के प्रति आकर्षित योगी को पथभ्रष्ट योगी के रूप में देखकर कष्ट होना स्वभाविक है ।
मैंने सोचा था कि पता नहीं इस मुद्दे पर मुझे क्या -क्या आलोचना का सामना करना पड़ेगा ....एक दो बन्धु ने जरूर यह लिखने का प्रयास किया कि रामदेव बाबा ऐसे कार्य कर रहे हैं जिससे अनेक कार्पोरेट जगत के आउटलेट घाटे में चल रहा है ।
``समय´´ने कहा कि तथा कथित पैरोकारों को पर्दे के पीछे के ऐसे खेलते देखना सामान्य बात है । इस टिप्पनी से साफ हो जाता है कि मेरे जैसे बहुत लोग होंगे जो बाबाओं के खेल से पहले से परिचित हैं ,राजीव तनेता जी --ने तो कहा कि ऐसे लोगों के खाने के दॉंत और होते है। और दिखाने के और ....
सुरेश चिपलूनकर ने कहा कि-- मुझे उनके चेले से शिकायत हैं क्या ? स्पष्ट करू ...
भाई सुरेश ! मै जरा घुमा कर जवाब देता हूँ ... एक शराबी को यह पता रहता हैं कि कौन सी जगह शराब बिकाती हैं , हम जहॉं से रोज निकलते है फिर भी हमें पता ही नहीं रहता कि यहॉ शराब बिक सकती हैं ,लेकिन शराबी को उस स्थान का पता कैसे चल जाता हैं ? आपने कभी गौर किया है .........
मीठी -मीठी बातें करते हुए राजीव दिक्षीत ने भारतीय जन मानस के जिस विस्वास के साथ खिलवाड़ किया है और जिसके चलते देश को कई वर्ष ,सुधारने की क्रम से पीछे हटना पड़ा हैं ...मैं तो यह मानकर चल रहा था कि अब देश में क्रांति आने को कोई भी नहीं रोक सकता है ,मै सच कहता हूँ -कि नौकरी भी छोडने को तत्पर हो गया था , मेरे एक मित्र ने नौकरी छोड़कर आजादी बचाओ आन्दोलन के साथ हो लिए थे ,जब उनको यह पता लगा कि राजीव दिक्षीत आजादी बचाओ आंदोलन को छोड़कर हिन्द स्वराज अभियान में शामिल हो गए और उनको भी हिन्द स्वराज अभियान में शामिल होने के लिए प्ररित कर रहे हैं, तो वर्षों तक इस परिणाम के कारण मानसीक सन्तुलन ही खो बैठे थेे ।
एक नहीं सैकडों उदाहरण मेरे पास हैं ,कुछ आन्दोलन कारी साथियों ने तो बाबा रामदेव जी को उनके काली करतुतों के बारे में प्रमाण सहित बताया ,और बाबा को निवेदन भी किया कि आपके जैसे योगी को एक लोभी और बदनाम व्यक्ति को किसी भी कीमत में पनाह नहीं देना चाहिए ....बाबा नहीं माने ....
बाबा ने उन्हें स्वदेशी मंच का प्रधान बना दिया ..... जिस राजीव दिक्षीत को सुनने के लिए हजारों लोग स्वप्ररित होकर इकट्ठा हो जाया करते थे ,आज राजीव दिक्षीत यदि कहीं खड़े हो जाए तो उसे सुनने वाले कोई मजबूरी में ही खडे होंगे ....अनिच्छा से ..... घृणा और जिज्ञासा से ................... जानबुझ कर रामदेव जी ने एक अनैतिक वान को देश के जनता पर थौप दिया हैं जैसे हमारे देश में मंत्री –अधिकारियों को थौपे जाते है। मैं अब किसका तारिफ करू ...?
एक कंपनी ने दस हजार जमा करने पर एक हजार रूपया प्रति माह देता था ,अर्थात साधारण हिसाब 120 प्रतिशत ब्याज देना कोई मामूली बात तो नहीं हैं ,कई परिचित लोगों को मैंने मना किया पर बहुत लोग माने नही ,अभी कुछ दिन पहले इस कंपनी के फर्जीवाडा पकड़ में आ गया और लोगों को मिलने वाली प्रतिमाह दस प्रतिशत भी मिलना बंद ..... इस पर भी यदि स्काट लैंड के धरती से देश में क्रान्ति हो जाए तो मैं सबसे पहले उसका समर्थन ही नहीं करूंगा, बल्कि बाबा जी के चरणों में जाकर निवेदन करूंगा कि मुझे भी देश सेवा का एक अवसर आपके सानिद्ध में प्राप्त होने पर आपकी कृतज्ञता स्वीकार करने में गर्व की अनुभुती होगी .....मैं यह भी विस्वास दिला सकता हूँ कि आज की भौतिक वादी युग में नोटों से भरी हजारों ट्क भी मुझे सच्चाई की राह से डिगा नहीं सकता ..............................
भारत भूमि हमेशा त्याग की बुनियादी शिक्षा देता आया हैं ,यहॉं त्यागी और भोगी का परिभाषा ही अलग हैं । जो भोगी हैं वह कभी योगी नहीं बन सकते ,भौतिक साधनों के प्रति आकर्षित योगी को पथभ्रष्ट योगी के रूप में देखकर कष्ट होना स्वभाविक है ।
मैंने सोचा था कि पता नहीं इस मुद्दे पर मुझे क्या -क्या आलोचना का सामना करना पड़ेगा ....एक दो बन्धु ने जरूर यह लिखने का प्रयास किया कि रामदेव बाबा ऐसे कार्य कर रहे हैं जिससे अनेक कार्पोरेट जगत के आउटलेट घाटे में चल रहा है ।
``समय´´ने कहा कि तथा कथित पैरोकारों को पर्दे के पीछे के ऐसे खेलते देखना सामान्य बात है । इस टिप्पनी से साफ हो जाता है कि मेरे जैसे बहुत लोग होंगे जो बाबाओं के खेल से पहले से परिचित हैं ,राजीव तनेता जी --ने तो कहा कि ऐसे लोगों के खाने के दॉंत और होते है। और दिखाने के और ....
सुरेश चिपलूनकर ने कहा कि-- मुझे उनके चेले से शिकायत हैं क्या ? स्पष्ट करू ...
भाई सुरेश ! मै जरा घुमा कर जवाब देता हूँ ... एक शराबी को यह पता रहता हैं कि कौन सी जगह शराब बिकाती हैं , हम जहॉं से रोज निकलते है फिर भी हमें पता ही नहीं रहता कि यहॉ शराब बिक सकती हैं ,लेकिन शराबी को उस स्थान का पता कैसे चल जाता हैं ? आपने कभी गौर किया है .........
मीठी -मीठी बातें करते हुए राजीव दिक्षीत ने भारतीय जन मानस के जिस विस्वास के साथ खिलवाड़ किया है और जिसके चलते देश को कई वर्ष ,सुधारने की क्रम से पीछे हटना पड़ा हैं ...मैं तो यह मानकर चल रहा था कि अब देश में क्रांति आने को कोई भी नहीं रोक सकता है ,मै सच कहता हूँ -कि नौकरी भी छोडने को तत्पर हो गया था , मेरे एक मित्र ने नौकरी छोड़कर आजादी बचाओ आन्दोलन के साथ हो लिए थे ,जब उनको यह पता लगा कि राजीव दिक्षीत आजादी बचाओ आंदोलन को छोड़कर हिन्द स्वराज अभियान में शामिल हो गए और उनको भी हिन्द स्वराज अभियान में शामिल होने के लिए प्ररित कर रहे हैं, तो वर्षों तक इस परिणाम के कारण मानसीक सन्तुलन ही खो बैठे थेे ।
एक नहीं सैकडों उदाहरण मेरे पास हैं ,कुछ आन्दोलन कारी साथियों ने तो बाबा रामदेव जी को उनके काली करतुतों के बारे में प्रमाण सहित बताया ,और बाबा को निवेदन भी किया कि आपके जैसे योगी को एक लोभी और बदनाम व्यक्ति को किसी भी कीमत में पनाह नहीं देना चाहिए ....बाबा नहीं माने ....
बाबा ने उन्हें स्वदेशी मंच का प्रधान बना दिया ..... जिस राजीव दिक्षीत को सुनने के लिए हजारों लोग स्वप्ररित होकर इकट्ठा हो जाया करते थे ,आज राजीव दिक्षीत यदि कहीं खड़े हो जाए तो उसे सुनने वाले कोई मजबूरी में ही खडे होंगे ....अनिच्छा से ..... घृणा और जिज्ञासा से ................... जानबुझ कर रामदेव जी ने एक अनैतिक वान को देश के जनता पर थौप दिया हैं जैसे हमारे देश में मंत्री –अधिकारियों को थौपे जाते है। मैं अब किसका तारिफ करू ...?
एक कंपनी ने दस हजार जमा करने पर एक हजार रूपया प्रति माह देता था ,अर्थात साधारण हिसाब 120 प्रतिशत ब्याज देना कोई मामूली बात तो नहीं हैं ,कई परिचित लोगों को मैंने मना किया पर बहुत लोग माने नही ,अभी कुछ दिन पहले इस कंपनी के फर्जीवाडा पकड़ में आ गया और लोगों को मिलने वाली प्रतिमाह दस प्रतिशत भी मिलना बंद ..... इस पर भी यदि स्काट लैंड के धरती से देश में क्रान्ति हो जाए तो मैं सबसे पहले उसका समर्थन ही नहीं करूंगा, बल्कि बाबा जी के चरणों में जाकर निवेदन करूंगा कि मुझे भी देश सेवा का एक अवसर आपके सानिद्ध में प्राप्त होने पर आपकी कृतज्ञता स्वीकार करने में गर्व की अनुभुती होगी .....मैं यह भी विस्वास दिला सकता हूँ कि आज की भौतिक वादी युग में नोटों से भरी हजारों ट्क भी मुझे सच्चाई की राह से डिगा नहीं सकता ..............................
शनिवार, 3 अक्तूबर 2009
अब बाबा रामदेव और राजीव दिक्षीत स्काटलैंड के टापू से दुनियाँ में क्रांति करेंगे !
बाबा रामदेव ने अब भारतीय रकम को विदेशों में निवेश करने लग गए है ,हाथी के दॉंत दिखाने का कुछ और खाने का कुछ होता हैं ,स्वदेशी का नारा लगाने वाले बाबाजी अवसर देखकर अपनी साम्राज्य विस्तार में लगे हुए हैं ,उनका कहना है कि- विदेशों में भारी मांग होने के कारण उनके चेलों ने एक टापू खरीदने में विशेष सहयोग किया है ।
मंदी के मार से विदेश में अचल सम्पत्ति खरीदने वाले विरले ही मिलेंगे ,इस अवसर का लाभ तो एक योगी को उठाना ही चहिये , क्योंकि उनके पास बैठे हुए एक ऐसे तमाशेबाज ,एक ऐसे नटवरलाल जिनको ईश्वर ने लोगों को प्रभावित करने के लिए वाणी तो दी है ,पर ईमानदारी शायद उनके खून से गायब हो चुका है।
मै नाम लूँ तो हो सकता हैं कि देश के बहुत लोगों को अच्छा नहीं लगेगा ,आज कल रामदेव जी के साथ बैठे-हाईटेक स्वदेशी प्रचारक ,देश के कर्णधार ,देश से विदेशी कंपनीयों को भगाकर ही दम लेंगे, ऐसे कहने वाले स्व उपाधी धारक राष्ट्रबंधु श्री राजीब दिक्षीत जी जिनके सलाहकार बन बैठे है .....
मैं पिछले वर्ष जब एक सम्मेलन में भाग लेने वर्धा पहूंचा तो राजीव दिक्षीत से मिलने का मन होने से उनके घर चला गया , एक साधरण जीवन जीने की संकल्प करने वाले ,गॉंधी जी को आदर्श मानकर, देश में प्रचार करने वाले ,अपने नाम से कभी कोई बैंक में खाता न रखने की बातें करने वाले त्यागी जी- के घर में जो भव्यता देखा तो मुझे एका एक विस्वास ही नहीं हुआ कि.. मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं ....?
श्री कृष्ण और सुदामा के किस्से तो जग जाहिर है , गरीब सुदामा अपनी सखा श्रीकृष्ण से कभी कुछ मांगने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे ,परन्तु जब श्री कृष्ण से मिलकर वे घर लौटे तो झोपड़ी के स्थान पर महल देखकर हैरान हो गए थे । अब राजीव भाई को कलियुग में ऐसी कौन भगवान राजा मिल गए होंगे, जिसने रातों रात उन्हें करोड़पति बना दिए हैं .... कुछ समय पहले मेरे पास कई मेल आया --- जिसमें राजीव भाई के बारे एक खुलीचिट्ठा भी था ,भावनाओं से खेलते हुए इस देश में रातों रात करोड़पति बनना बहुत आसान है ,यही बात दिक्षीत जी पर भी लागु होता है।
सलहाकार बन कर बाबा राम देव को विदेश में धन निवेश करने का काम यही एक व्यक्ति के सिवाय अन्य कोई करने का हिम्मत नहीं कर सकता ..... स्कॉट लैंड स्थित एक पुरे टापू को ही बाबा रामदेव जी ने खरीद लिया है ,भारतीय भूमि उन्हें अब रास नहीं आ रहा है ,इस देश में घर- घर तक योग सिखाते हुए, राष्ट्रप्रेम ,स्वदेशी - भावना द्वारा देश में क्रान्ति लाने की बातें करने वाले बाबा ,अब विदेश से भारत का संचालन करेंगे । एक विदेशी निर्जन टापू में बैठ कर भारत में दोनों मिलकर क्रांति करेंगे ,योजना बहुत ही अच्छी है । १५.३० करोड़ रूपये में एक टापू खरीद कर आगे लाभ की सम्भवना अभी से ही शुरू है .....
वर्षों पहले इस देश में एक महेश योगी हुए ,वे भी विदेश में रहकर न जाने क्या- क्या प्रयोग किया करते थे,आज महेश योगी को कितने लोग जानते हैं पता नहीं ...........एक समय आचार्य रजनिश भी देश छोडकर विदेश चले गए थे ,अमेरिका में रजनिशपूरम् बना कर अमेरिका का ही राष्ट्रपति बनने का सपना देखने वाले ओशो का जो हस्र हुआ, उसे देख सुन कर बाबाओं को कुछ ज्ञान लेने का समय ही कहॉं हैं ........
देश के महान साहित्यकार ने एक स्थान में लिखा कि... अपनी मॉं को असहाय छोड़ कर जो दूसरे मॉं की सेवा करते हैं वे कृतघ्न कहलाते हैं ....पता नहीं ...सत्य लिखने की मुझे क्या सजा मिलेगी... पर यह तो स्पष्ट हैं कि कलियुगीन बाबाओं को सजा देने वाले अभी देश में शायद ही पैदा हुए होगे ....!!
मंदी के मार से विदेश में अचल सम्पत्ति खरीदने वाले विरले ही मिलेंगे ,इस अवसर का लाभ तो एक योगी को उठाना ही चहिये , क्योंकि उनके पास बैठे हुए एक ऐसे तमाशेबाज ,एक ऐसे नटवरलाल जिनको ईश्वर ने लोगों को प्रभावित करने के लिए वाणी तो दी है ,पर ईमानदारी शायद उनके खून से गायब हो चुका है।
मै नाम लूँ तो हो सकता हैं कि देश के बहुत लोगों को अच्छा नहीं लगेगा ,आज कल रामदेव जी के साथ बैठे-हाईटेक स्वदेशी प्रचारक ,देश के कर्णधार ,देश से विदेशी कंपनीयों को भगाकर ही दम लेंगे, ऐसे कहने वाले स्व उपाधी धारक राष्ट्रबंधु श्री राजीब दिक्षीत जी जिनके सलाहकार बन बैठे है .....
मैं पिछले वर्ष जब एक सम्मेलन में भाग लेने वर्धा पहूंचा तो राजीव दिक्षीत से मिलने का मन होने से उनके घर चला गया , एक साधरण जीवन जीने की संकल्प करने वाले ,गॉंधी जी को आदर्श मानकर, देश में प्रचार करने वाले ,अपने नाम से कभी कोई बैंक में खाता न रखने की बातें करने वाले त्यागी जी- के घर में जो भव्यता देखा तो मुझे एका एक विस्वास ही नहीं हुआ कि.. मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं ....?
श्री कृष्ण और सुदामा के किस्से तो जग जाहिर है , गरीब सुदामा अपनी सखा श्रीकृष्ण से कभी कुछ मांगने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे ,परन्तु जब श्री कृष्ण से मिलकर वे घर लौटे तो झोपड़ी के स्थान पर महल देखकर हैरान हो गए थे । अब राजीव भाई को कलियुग में ऐसी कौन भगवान राजा मिल गए होंगे, जिसने रातों रात उन्हें करोड़पति बना दिए हैं .... कुछ समय पहले मेरे पास कई मेल आया --- जिसमें राजीव भाई के बारे एक खुलीचिट्ठा भी था ,भावनाओं से खेलते हुए इस देश में रातों रात करोड़पति बनना बहुत आसान है ,यही बात दिक्षीत जी पर भी लागु होता है।
सलहाकार बन कर बाबा राम देव को विदेश में धन निवेश करने का काम यही एक व्यक्ति के सिवाय अन्य कोई करने का हिम्मत नहीं कर सकता ..... स्कॉट लैंड स्थित एक पुरे टापू को ही बाबा रामदेव जी ने खरीद लिया है ,भारतीय भूमि उन्हें अब रास नहीं आ रहा है ,इस देश में घर- घर तक योग सिखाते हुए, राष्ट्रप्रेम ,स्वदेशी - भावना द्वारा देश में क्रान्ति लाने की बातें करने वाले बाबा ,अब विदेश से भारत का संचालन करेंगे । एक विदेशी निर्जन टापू में बैठ कर भारत में दोनों मिलकर क्रांति करेंगे ,योजना बहुत ही अच्छी है । १५.३० करोड़ रूपये में एक टापू खरीद कर आगे लाभ की सम्भवना अभी से ही शुरू है .....
वर्षों पहले इस देश में एक महेश योगी हुए ,वे भी विदेश में रहकर न जाने क्या- क्या प्रयोग किया करते थे,आज महेश योगी को कितने लोग जानते हैं पता नहीं ...........एक समय आचार्य रजनिश भी देश छोडकर विदेश चले गए थे ,अमेरिका में रजनिशपूरम् बना कर अमेरिका का ही राष्ट्रपति बनने का सपना देखने वाले ओशो का जो हस्र हुआ, उसे देख सुन कर बाबाओं को कुछ ज्ञान लेने का समय ही कहॉं हैं ........
देश के महान साहित्यकार ने एक स्थान में लिखा कि... अपनी मॉं को असहाय छोड़ कर जो दूसरे मॉं की सेवा करते हैं वे कृतघ्न कहलाते हैं ....पता नहीं ...सत्य लिखने की मुझे क्या सजा मिलेगी... पर यह तो स्पष्ट हैं कि कलियुगीन बाबाओं को सजा देने वाले अभी देश में शायद ही पैदा हुए होगे ....!!
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
देश में जीवन का कोई कीमत नही --बिहार में ६० की जल समाधी
यदि लोग अकाल मृत्यु में चल बसे और हम विज्ञान की दम्भ में, समय गूजारते चले जाए तो , आगे चलकर विज्ञान को नकारने का एक बहाना तो लोगों को मिल ही जाएगा ,हम चॉंद में पानी होने की बाते करते है, वहॉं मनुष्य के बसने लायक स्थिति पैदा करने लगे हैं ,लेकिन जहॉं मनुष्य के लिए प्रकृति ने सब कुछ अनुकूल वातावरण बनाकर वरदान स्वरूप हमें प्रदान किया है ,उसी वरदान को हम नकारते हुए, दूर का ढोल सुहावना लगता हैं वाली कहावत चरितार्थ करने लगे हुए है ।
आज भी हम लोगों को भर पेट भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाए है ,उचित शिक्षा की बात तो दूर हम अक्षर ज्ञान तक बच्चों को उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं ,रास्ते में कैसे चलना चाहिए यह भी सिखाने में हम असमर्थ हैं । लोग जल के बीना बेमौत मारे जाते हैं ,पिलिया तो जल के कारण ही होता हैं , गन्दगी के कारण लाखों लोग प्रत्येक वर्ष मारे जाते हैं । मलेरिया ,हैजा ,डेंगू आदी तो गंदगी के कारण ही पैदा होता है ,हम आजादी के बाद बाते तो बहुत करते है ,साधनों की भी कमी नहीं है.... पर लोग साधन के अभाव में मर रहे हैं ।
जानबूझ कर लोगों को काल की मूंह में पहुंचाना एक परम्परा सी इस देश में बन गई हैं । भूखमरी से लोगों को अनेक प्रकार की बिमरी आ घेरती हैं ,खून की कमी से बच्चे ग्रसीत हैं ,किशोरावस्था में गरीब घर की लड़किओं की जो दूर्गती होती हैं उसे लिखना भी कष्ट साध्य हैं ,जिस समय लड़कियों को पौष्टिक आहार की आवश्यकता हैं ,उसी समय यदि उसे भूखमरी की सामना करना पड़ें ,तो आगे जाकर देश के लिए माता बन कर वे कैसी सन्तान उत्पत्ति करेंगी यह तो सोचने की बात हैं ।
शासन सब कुछ जानती हैं , माताओं के लिए अनेक प्रकार की योजनायें भी प्रारंभ किया गया हैं पर उसका लाभ उसे कितना मिल पाता है ,यह तो परिस्थिति पर निर्भर करता है ।
गरिबी की बात तो एक और छोड़ दे, तो अमीर लोग भी आज सुरक्षित नहीं है । गुंडों के कारण रास्ते में चलना आज बहुत मुस्किल हो चुका हैं ,यदि गुंडों से बच भी गए तो भी सुरक्षित नहीं हैं ।
कब किस गाड़ी के नीचे कौन आ जाए, उसका कोई भरोसा भी नहीं ,रास्ते में तो अमीर -गरीब -नेता -कर्मचारि..अधिकारी सभी कीड़े मकदों की तरह पीसे जाते है। फिर हम किस विकास और उन्नती की बाते करते हैं ,समझ से परे है ।
बाजार से जो भी खाने पीने के लिए हम खरिदते हैं ,घर में यदि साफाई करके और उत्तम तरिके से उपयोग में लाया जाए ,तो भी हम नहीं कह सकते कि हमने सही आहार का सेवन किया है ,वह शरीर लिए दायक ही होगा ... हो सकता हैं कि हम घर की बनी हुई भोजन से ही अन्तिम श्वाश लेने लगे ,हम
बाहर सुरक्षित नहीं हैं ,जंगल में चले जाए तो वहॉं भी औद्योगिकरण का जो वातावरण तैयार हो चूका है जिसके चलते जंगल भी सुरक्षित नहीं रह गया हैं ,जंगली जानवर आज इस हद तक हिंसक बन चुका कि शहरों में आकर हाथी ,भालू ,शेर आदी हमला शुरू कर दिया हैं 1
बिहार के खगड़िया और दरभंगा जिले में नौका डुबने से 60 लोगों की मौत हो सकता हैं,और सरकार हर एक परिवार को 1लाख 50 हजार रूपये मुआवजा देती हैं तो 90 लाख रूपये तो एक झटके में जनता का ही चला गया ना ? आदमी का जान 1.5 लाख में सौदा हो गया ,कितनी सस्ती हैं आदमी का जान ! जबकि 100 जैकेट का किमत यदि 500 रूपये भी प्रति नग हो तो पचास हजार ही होती हैं ।
जहॉं नाव चलती है यदि पहले से ही सुरक्षा की व्यवस्था की जाती तो क्या 60 लोग डुबने नहीं बच सकते थें , नाव में प्रत्येक को सुरक्षित जैकेट पहनना आवश्यक होता हैं ,पर भारत में मनुष्य थोडे ही रहते हैं ,यहॉं तो प्राय: भेड़ बकरी ही नजर आने के कारण उनके किस्मत में हलाल या बली ही
लिखा है ।
आज भी हम लोगों को भर पेट भोजन की व्यवस्था नहीं कर पाए है ,उचित शिक्षा की बात तो दूर हम अक्षर ज्ञान तक बच्चों को उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं ,रास्ते में कैसे चलना चाहिए यह भी सिखाने में हम असमर्थ हैं । लोग जल के बीना बेमौत मारे जाते हैं ,पिलिया तो जल के कारण ही होता हैं , गन्दगी के कारण लाखों लोग प्रत्येक वर्ष मारे जाते हैं । मलेरिया ,हैजा ,डेंगू आदी तो गंदगी के कारण ही पैदा होता है ,हम आजादी के बाद बाते तो बहुत करते है ,साधनों की भी कमी नहीं है.... पर लोग साधन के अभाव में मर रहे हैं ।
जानबूझ कर लोगों को काल की मूंह में पहुंचाना एक परम्परा सी इस देश में बन गई हैं । भूखमरी से लोगों को अनेक प्रकार की बिमरी आ घेरती हैं ,खून की कमी से बच्चे ग्रसीत हैं ,किशोरावस्था में गरीब घर की लड़किओं की जो दूर्गती होती हैं उसे लिखना भी कष्ट साध्य हैं ,जिस समय लड़कियों को पौष्टिक आहार की आवश्यकता हैं ,उसी समय यदि उसे भूखमरी की सामना करना पड़ें ,तो आगे जाकर देश के लिए माता बन कर वे कैसी सन्तान उत्पत्ति करेंगी यह तो सोचने की बात हैं ।
शासन सब कुछ जानती हैं , माताओं के लिए अनेक प्रकार की योजनायें भी प्रारंभ किया गया हैं पर उसका लाभ उसे कितना मिल पाता है ,यह तो परिस्थिति पर निर्भर करता है ।
गरिबी की बात तो एक और छोड़ दे, तो अमीर लोग भी आज सुरक्षित नहीं है । गुंडों के कारण रास्ते में चलना आज बहुत मुस्किल हो चुका हैं ,यदि गुंडों से बच भी गए तो भी सुरक्षित नहीं हैं ।
कब किस गाड़ी के नीचे कौन आ जाए, उसका कोई भरोसा भी नहीं ,रास्ते में तो अमीर -गरीब -नेता -कर्मचारि..अधिकारी सभी कीड़े मकदों की तरह पीसे जाते है। फिर हम किस विकास और उन्नती की बाते करते हैं ,समझ से परे है ।
बाजार से जो भी खाने पीने के लिए हम खरिदते हैं ,घर में यदि साफाई करके और उत्तम तरिके से उपयोग में लाया जाए ,तो भी हम नहीं कह सकते कि हमने सही आहार का सेवन किया है ,वह शरीर लिए दायक ही होगा ... हो सकता हैं कि हम घर की बनी हुई भोजन से ही अन्तिम श्वाश लेने लगे ,हम
बाहर सुरक्षित नहीं हैं ,जंगल में चले जाए तो वहॉं भी औद्योगिकरण का जो वातावरण तैयार हो चूका है जिसके चलते जंगल भी सुरक्षित नहीं रह गया हैं ,जंगली जानवर आज इस हद तक हिंसक बन चुका कि शहरों में आकर हाथी ,भालू ,शेर आदी हमला शुरू कर दिया हैं 1
बिहार के खगड़िया और दरभंगा जिले में नौका डुबने से 60 लोगों की मौत हो सकता हैं,और सरकार हर एक परिवार को 1लाख 50 हजार रूपये मुआवजा देती हैं तो 90 लाख रूपये तो एक झटके में जनता का ही चला गया ना ? आदमी का जान 1.5 लाख में सौदा हो गया ,कितनी सस्ती हैं आदमी का जान ! जबकि 100 जैकेट का किमत यदि 500 रूपये भी प्रति नग हो तो पचास हजार ही होती हैं ।
जहॉं नाव चलती है यदि पहले से ही सुरक्षा की व्यवस्था की जाती तो क्या 60 लोग डुबने नहीं बच सकते थें , नाव में प्रत्येक को सुरक्षित जैकेट पहनना आवश्यक होता हैं ,पर भारत में मनुष्य थोडे ही रहते हैं ,यहॉं तो प्राय: भेड़ बकरी ही नजर आने के कारण उनके किस्मत में हलाल या बली ही
लिखा है ।
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009
गाँधी जयंती पर--राम रावण की जय -----
हे गान्धीजी ! मैंने अनेक बार चाहा ताकि आपसे बहुत प्यार कर सकूँ ,आपको श्रेष्ट पुरूष मान कर दिल की गहरीई में बीठा सकूँ ,पर आज तक ऐसा नहीं हो सका , इसका अर्थ यह नहीं हैं कि मैं आपसे नफरत करता हूं ।
आपसे मानवता के खातिर नफरत कोई भी नहीं कर सकता ,विचार भिन्नता होते हुए भी नेताजी सुभाष ने ही आपको सबसे पहले महात्मा कहा था ,आज देश के अधिकांश लोगा आपको महात्मा के नाम से ही जानते है ।
मैं आपके राम -नाम जपते जपते-- पता नहीं कब मेरे मूंह से रावण -रावण भी आना शुरू हो गया हैं ,गलती मेरा नहीं है ,मैंने तो राम -राम ही सत्य हैं की कल्पना करता हूं .... पर मुंह में राम और बगल में छुरी रखने वाले लोगों को देखते हुए , आजकल मुझे राम-राम जपने वालों से बहुत भय होने लग गया हैं ।
रावण से मुझे भय नहीं लगता क्योंकि रावण आज सामने से वार करता हैं, और राम-नाम जपने वाले पीछे से , रावण से तो बचा जा सकता हैं , पर राम भक्तों से बचना आज कठीन हो गया है ।
हे गॉंन्धी जी ! आपके टोपी का तो क्या कहने ,टोपी के साथ और खादी के साथ दिन में न जाने कितने वार बलात्कार होता है .उसे यदि आप देखते तो हो सकता था कि , आप स्वयं ही आत्महत्या कर बैठते !
नाथूराम गोडसे ने तो आपकी शरीर को मारा हैं ,पर आपके चाहने वालों ने तो आपकी आत्मा को ही मार डाला है । गीता में कहा गया हैं कि ..आत्मा अमर हैं ,अजर हैं ,आजन्मा हैं ...पर कलियुग में आत्मा को मानने वालों को तो पिछड़ा ,अशिक्षित ,मूरख,और न जाने कौन -कौन सी अलंकारों से अलंकृत किया जाता हैं ।
कल आपका जन्म दिन हैं .... मै किस मूंह से आपको जन्म दिन का बधाई दूँ ॥ यह सोच-सोच कर परेशान भी हूँ , अभी पिछले कुछ साल पहले आपने सुनिल दत्त को साक्षात्कार दिया था ,दत्त जी तो आपके कृपा से माला माल हो गए हैं ,परन्तु मेरे जैसे को क्या आप कुछ सूनने का समय दे सकेंगें ?
आप मुझ पर अब नराज मत होईएगा ...... मैं अब न आपसे और न रावण से नफरत करूंगा ,राम और रावण दोनों को पूरक मानते हुए चलने का दिल चाहता है ।
लोहा -लोहा को काटता हैं ,जहर का दवाई भी जहर ही है ,अत: जब राम के नाम पर रावण ही अधिक हो गया, तो कोई रावण ही इसे खत्म कर सकता है ,अत: रावनम् शरणाम् गच्छामी .......
रावण तो अपने राज्य को स्वर्ण लंका बना दिया था ,यदि रावण जपते हुए मेरे देश भी स्वर्ण भारत बन जाए ,और इस लिए मेरे जैसे कुछ लोगों को गाली भी सहना पड़े , तो बहुत ही कम हैं .........
रावण जी को कहना चाहूंगा कि आपके बहन को यदि कोई नाक कान काट दे ,अपमान करें ,तो कलियुग में बदला लेने के लिए किसी की पत्नी को उठाकर न ले जाए ,हॉलाकि रामायण में सीता जी को बहुत ही इज्जत के साथ लंका पुरी में रखने की बाते लिखी हुई है ।
एक नारा आज क्यों नहीं दिया जा सकता है कि राम -रावण की जय !.
आपसे मानवता के खातिर नफरत कोई भी नहीं कर सकता ,विचार भिन्नता होते हुए भी नेताजी सुभाष ने ही आपको सबसे पहले महात्मा कहा था ,आज देश के अधिकांश लोगा आपको महात्मा के नाम से ही जानते है ।
मैं आपके राम -नाम जपते जपते-- पता नहीं कब मेरे मूंह से रावण -रावण भी आना शुरू हो गया हैं ,गलती मेरा नहीं है ,मैंने तो राम -राम ही सत्य हैं की कल्पना करता हूं .... पर मुंह में राम और बगल में छुरी रखने वाले लोगों को देखते हुए , आजकल मुझे राम-राम जपने वालों से बहुत भय होने लग गया हैं ।
रावण से मुझे भय नहीं लगता क्योंकि रावण आज सामने से वार करता हैं, और राम-नाम जपने वाले पीछे से , रावण से तो बचा जा सकता हैं , पर राम भक्तों से बचना आज कठीन हो गया है ।
हे गॉंन्धी जी ! आपके टोपी का तो क्या कहने ,टोपी के साथ और खादी के साथ दिन में न जाने कितने वार बलात्कार होता है .उसे यदि आप देखते तो हो सकता था कि , आप स्वयं ही आत्महत्या कर बैठते !
नाथूराम गोडसे ने तो आपकी शरीर को मारा हैं ,पर आपके चाहने वालों ने तो आपकी आत्मा को ही मार डाला है । गीता में कहा गया हैं कि ..आत्मा अमर हैं ,अजर हैं ,आजन्मा हैं ...पर कलियुग में आत्मा को मानने वालों को तो पिछड़ा ,अशिक्षित ,मूरख,और न जाने कौन -कौन सी अलंकारों से अलंकृत किया जाता हैं ।
कल आपका जन्म दिन हैं .... मै किस मूंह से आपको जन्म दिन का बधाई दूँ ॥ यह सोच-सोच कर परेशान भी हूँ , अभी पिछले कुछ साल पहले आपने सुनिल दत्त को साक्षात्कार दिया था ,दत्त जी तो आपके कृपा से माला माल हो गए हैं ,परन्तु मेरे जैसे को क्या आप कुछ सूनने का समय दे सकेंगें ?
आप मुझ पर अब नराज मत होईएगा ...... मैं अब न आपसे और न रावण से नफरत करूंगा ,राम और रावण दोनों को पूरक मानते हुए चलने का दिल चाहता है ।
लोहा -लोहा को काटता हैं ,जहर का दवाई भी जहर ही है ,अत: जब राम के नाम पर रावण ही अधिक हो गया, तो कोई रावण ही इसे खत्म कर सकता है ,अत: रावनम् शरणाम् गच्छामी .......
रावण तो अपने राज्य को स्वर्ण लंका बना दिया था ,यदि रावण जपते हुए मेरे देश भी स्वर्ण भारत बन जाए ,और इस लिए मेरे जैसे कुछ लोगों को गाली भी सहना पड़े , तो बहुत ही कम हैं .........
रावण जी को कहना चाहूंगा कि आपके बहन को यदि कोई नाक कान काट दे ,अपमान करें ,तो कलियुग में बदला लेने के लिए किसी की पत्नी को उठाकर न ले जाए ,हॉलाकि रामायण में सीता जी को बहुत ही इज्जत के साथ लंका पुरी में रखने की बाते लिखी हुई है ।
एक नारा आज क्यों नहीं दिया जा सकता है कि राम -रावण की जय !.
बुधवार, 30 सितंबर 2009
२३-०९ -२००९ को बालको में नव निर्मित बिजली सयंत्र की चिमनी धराशाई पर विस्तृत जानकारी
2 फरवरी 2001 का दिन कोरबा शहर के लिए एक मनहुस दिन सभी को आज भी याद हैं ,इसी दिन छत्तीसगढ विधान सभा में बालको निजीकरण के पक्ष और विपक्ष में गरमा- गरम बहस भी चल रहा था, 2001 में केंद्रीय सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी और राज्य में कांग्रेस के तेज तर्रार नेता और छत्तीसगढ के प्रथम मुख्य मंत्रि श्री अजित जोगी जी रहे हैं ।
बालको का निजीकरण किसी भी कीमत पर न करने का संकल्प विधान सभा में लेना था और कांग्रेस के सभी नेता एक जुटता दिखाते हुए बालको निजीकरण का विरोध ही नहीं किया बल्की यहॉं तक कहा कि हम बालको को बिजली-पानी नहीं देंगे । भारतीय जनता पार्टी की और से स्थानिय विधायक श्री बनवारी लाल अग्रवाल ,श्री ननकी राम कवंर ,विधान सभा में निजीकरण के पक्ष में भाषण दिए एवं केंद्र में बैठे भा ज पा का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा -कि बालको का निजीकरण होना ही चाहिए ।
बालको का निजीकरण किसी भी कीमत पर न करने का संकल्प विधान सभा में लेना था और कांग्रेस के सभी नेता एक जुटता दिखाते हुए बालको निजीकरण का विरोध ही नहीं किया बल्की यहॉं तक कहा कि हम बालको को बिजली-पानी नहीं देंगे । भारतीय जनता पार्टी की और से स्थानिय विधायक श्री बनवारी लाल अग्रवाल ,श्री ननकी राम कवंर ,विधान सभा में निजीकरण के पक्ष में भाषण दिए एवं केंद्र में बैठे भा ज पा का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा -कि बालको का निजीकरण होना ही चाहिए ।
विनिवेश मंत्रि श्री अरूण शौरी , पता नहीं कौन सी जुनून में रहे हैं, कि वे चून-चून कर लाभ में चल रही कंपनीयों को मिट्टी के मौल सौदा करते जा रहे थे । उस समय यदि बाजार मूल्य से बालको का मुल्यांकण किया जाता तो अधिकांश बुद्धिजिवीओं का कहना था -कि बालको किसी भी हालत में 5000 हजार करोड़ से कम की नहीं हो सकता हैं ।
बालको निजीकरण के साथ ही साथ उसका एक केप्टिक बिजली संयंत्र को भी एक साथ बेच दिया गया ,मात्र बिजली संयंत्र ही 1500 हजार करोड़ से कम नहीं था ,कुल मिला कर 551 करोड़ में एक विदेशी कंपनी को बालकों बेचने का सौदा पक्का करके, कोरबा वासीयों के साथ ही साथ बालको कर्मचारियों पर थौप दिया गया था ।
कांग्रेस की विधान सभा में संकल्प पास होना ,और बिजली पानी बंद कर देने का जो बातें विधान सभा में किया गया था, वह मात्र एक दिखावा साबित हुआ ,अजित जोगी तो बालको संयंत्र के भितर जाकर धरना में बैठ गए थे । केंद्र सरकार को ललकारते हुए वे कह रहे थे कि 551 करोड़ में 51 प्रतिशत हिस्सा छत्तिसगढ सरकार को दे दिया जाए ,हम बालको को अच्छी तरह चला लेंगे ,परन्तु सारी बाते केवल हवा बन कर रह गया ।
मुख्यमंत्री राजधानी जाते ही बालको निजीकरण से अपनी हाथ ही खिंच लिए ,वे यहॉं के नेताओं से मिलना तक मुनासिब नही समझे ,बेइमानी का पराकाष्टा ,गद्दारी का जिता जागता उदाहरण-- साक्षात देखकर कर्मचारि और छत्तिसगढ के जनता सहम गए थे, किंम्कर्तव्य विमुढ हो कर अनिष्ट की कल्पना करके जहर की घूंट पीकर वे अपने से जो कुछ हो सकता हैं ,जैसे भी हो, विरोध करते रहे हैं ।
मजेदार बात जो बाद में सामने आई ,वह यह कि श्रमिक संघ के नेताओं ने दिल्ली में पहले से ही सौदा करके बालको लौटे थे ,जिसके तहत अपने बच्चों और चहेतों को नौकरी के अलावा पदोन्नती के साथ भेंट आदी की पक्की इंतेजाम करते हुए मात्र श्रमिकों को वेवकुफ बनाने के लिए ,दिखावा स्वरूप बालको के हडताल में शामिल हुए थे । जिसमें भारतीय मजदूर संघ ,इंटक और समर्थीत संगठन का नाम लेना अनुचित न होगा ।
आज जो परिस्थिती बालको का है, उसे देख कर मन हाहाकार कर उठता है , बालको का पहचान एल्युमिनियम से जुड़ा हुआ था ,अनिल अग्रवाल जो एक अप्रवासी भारतीय ,इंग्लैण्ड से करोड़ों रूपये लाकर बेदान्ता समूह के नाम से ,ऐसा लगता है कि यह भारतीय कंपनी हैं ,जबकि वे विदेशी कंपनी का दलाल है -जो कि देश के साथ ईस्ट इण्डिया कंपनी से भी बढ कर गद्दारी करने की तैयारी में है।
कुछ लोगों को यह कहते हुए सुना गया हैं कि अजित जोगी ने बेदान्ता समूह से बहुत लाभ पाकर चुप हो गए और जब कार दुर्घटना में चलना फिरना भी मुस्किल हो गया था, तो लोगों को यह कहते हुए सुना गया कि ..ये बला दुनियॉ से चले क्यों नहीं गये ? मनुष्य संवेदनशील प्राणी हैं ,विपत्ति में तो कोई इस तरह की सोच भी नहीं रखता ,परन्तु जोगी जी ने लोगों का मन किस हद तक दुखाया होगा, जिसके चलते लोगों के मुंह से सहानुभूती के भी शब्द निकल नहीं रहा था । ..................
आगे चलकर उसका राज पाट खत्म हो जाता हैं, और राजधानी में जग्गी हत्याकांड में फँस कर राजनैतिक जीवन को चौपट कर बैठा ।
अति सर्वथा वर्जते ,ऐसा शास्त्रों में लिखा है , बालको के साथ भी अत्याचार का अति हो चुका है ,जो भी इस प्रकारण में लिप्त हैं , उसका भला कभी हो नहीं सकता ।बालको के एक श्रमिक नेता का जो दुर्गति हुई ,उसे देखकर भी वर्तमान श्रमिक नेताओ को होश नही आ रहा हैं , कहते हैं कि उस समय के भापजा मंत्री प्रमोद महाजन का हिस्सा भी बालको में था ......
आगे चलकर उसका राज पाट खत्म हो जाता हैं, और राजधानी में जग्गी हत्याकांड में फँस कर राजनैतिक जीवन को चौपट कर बैठा ।
अति सर्वथा वर्जते ,ऐसा शास्त्रों में लिखा है , बालको के साथ भी अत्याचार का अति हो चुका है ,जो भी इस प्रकारण में लिप्त हैं , उसका भला कभी हो नहीं सकता ।बालको के एक श्रमिक नेता का जो दुर्गति हुई ,उसे देखकर भी वर्तमान श्रमिक नेताओ को होश नही आ रहा हैं , कहते हैं कि उस समय के भापजा मंत्री प्रमोद महाजन का हिस्सा भी बालको में था ......
एक कबाड़ बेचने वाला वह भी बालको का कबाड़ बेचकर जीवन चलाने वाला ,रातों रात बालको का मालिक कैसे बन सकता हैं ? सबसे पहले तो इस बात की जॉंच होनी चाहिए ,ऐसे व्यक्ति पाप छिपाने के लिए सामाजिक कार्य के आड़ में लोगों के ऑंखों धूल झोंकता हैं, दोचार सामूदायिक कार्य इसलिए किया जाता है ताकि स्थनीय लोग सोचे कि यह हमारा मसीहा है ,साधारण जनता ऐसे लोगों को बहुत बाद में पहचान पाते हैं ,जब तक समझ आता है ,तब तक सबकुछ लूट गया होता है।
जबसे वेदान्ता समूह बालको में आया हैं, यहॉं के कर्मचारियों से लेकर स्थानिय जनता ,सभी पेरेशान है1 बालको का निजीकरण न हो इसलिए कोरबा जिला बंद का अह्वान किया गया था, ऐसा बंद स्वस्फूर्त हो कर महाबंद का रूप ले लिया था ,इसका मतलब यह हुआ कि यहॉं के जनता बालको निजीकरण के पक्ष में कभी न थे, और न आज है ।
विनिवेश के नाम से विरोध को दबाने के लिए 2001 में बालको कोरबा को छावनी बना दिया गया था ,और आज जब चीन के कंपनी सेपको के सहयोगी कंपनी जे डी सी एल के भ्रष्टाचार के कारण ऊँची चिमनी धराशायी होकर सैकडों लोगों की जान चली गई और यहॉं किसी भी तरह की विरोध न हो सके इसलिए फौज मंगा लिया गया है ,शासन प्रशासन के सहयोग से चीन के भ्रष्ट कर्मचारि अधिकारीयों को कोरबा से बाहर जाने दिया गया , जिन्हें तुरन्त ग्रिप्तार करके जेल में डाल देना था ,उन लोगों को सुरक्षित दिल्ली तक जाने देना...शासन -प्रशासन की मंशा का पर्दाफाश करने में काफि हैं ।
घटना 23.09.2009 के दोपहर लगभग ३ बजकर ४० मिनट के लगभग होगा .29.09 09 तक 41 शव निकाला जा चुका था ,कुछ लोगों का कहना हैं कि यह संख्या सौ से अधिक है । सैकडों लोग घायल भी हुए कुछ लोगा लापता भी हैं । यदि स्थानीय समाचार पत्र विरोध न करते तो, हो सकता था कि भ्रष्टाचार में लिप्त सभी विदेशी चीन भाग गए होते ,इसके बाद किसकी जॉच और कैसी जॉच ....?
हमने तो भोपाल गैस काण्ड देख चुके है ,आज भी गैस से त्रस्त लोग टुट- टुट कर जीवन को ढो रहे है। और भारत सरकार महाराष्ट्र सरकार इस प्रकरण में तमाशा देख रही है ,हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने वाले एंडरसन का बाल तक बॉंका नहीं कर सकें । भारत में हत्या के आरोपी को फॉसी की सजा होती हैं ! परन्तु किसको होती हैं फॉसी की सजा ? भारतीयों को फॉसी हो जाती हैं, और विदेशीयों को हम फॉंसी नहीं दे सकते ,इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कोई प्रवासी भारतीय हो जाए तो उसके लिए कानून ही बदल जाता है ।
देश्द्रोही के अपराधी अफजल गूरू को कई साल बित जाने पर भी उसे सजा नहीं दिया जा सका हैं ..ऐसा क्यों हो रहा हैं ..... ? जिस चिमनी को सेपको द्वारा बनाई जा रही थी ,पूर्ण रूप से अमानक था ,लोहे की छड ,गिट्टी ,बालू , क्यूरींग ,पाईलिंग ,नींव आदी सभी अमानक निकला ,जिस चिमनी धराशायी हो चुकी है उसके बाजू में एक और चिमनी बन कर तैयार होने को हैं ,उसका भी यही हाल हैं कि कब वह गिरकर सैकडों लोगों का जान ल ेले और फिर एक बार जख्म को ताजा कर दे , किसीको पता नहीं है ।
एक चिमनी बनाने मे पिछले वर्ष आठ लोगों का जान ले लिया था , जान लेने वाली कंपनी को ही दूसरी चिमनी बनाने के लिए ठेका दे दिया गया हैं , भ्रश्टाचार का क्या क्या बयान करू ..... जब से एल्युमिनियम के नाम से कोरबा में अनिल अग्रवाल आया है ,तब से यहॉं लंूट ,दंगा ,गुंडागदी डकैती , शराब खोरी ,बलात्कार, हत्या ,नशेडि,गंजैडी , दूघजटना , प्रदूशण ,अवैध धंधा , वेश्यावृति,नकली नोटों का धंधा , आदी .....ऐसी कोई अपराध नहीं बचा हैं जो अनिल अग्रवाल के साथ यहॉं न आया हो ।
अत: अनिल अग्रवाल को सबसे पहले िग्रप्तार करते हुए उनके चमचों को भी िग्रप्तार करना आवश्यक है । श्रमिक संघ वाले तो ठेकेदारों से उगाही करने में मस्त रहे हैं ,इसलिए इसबार ऐसा कोई विरोध भी देखने को नहीं मिल रहा है । एकट ,इंटक ,सीटू सभी मात्र बयान बाजी तक सीमित हैं ,सैकडों लोगों का जान चला गया और आज तक एक भी लोगों का िग्रप्तारी न होना आश्चर्य ही नही , महा आश्चर्य है।
वन विभाग के जमीन पर अवैद्य रूप से चिमनी बनने का कार्य बालको कर रहा था ,न्यायालय के आदेश का पालन न करते हुए दादागीरि से कार्य करने का साहस स्थानिय प्रशासन के होते हुए भी किसने दिया हैं ,इस पर जॉच होना आवश्यक है।
श्रम विभाग के पास यह भी आकड़े नहीं हैं कि चिमनी स्थल में कितने लोग कार्य कर रहे थे ,बहुत लापता लोगों का लाश नही मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में मरने वालों की संख्या कैसे पता लगेगा ?श्रम विभाग भी बालको और ठेकेदारों से मिले हुए हैं , जॉंच निष्पक्ष रूप से होना आवश्यक हैं ।
वन विभाग के जमीन पर अवैद्य रूप से चिमनी बनने का कार्य बालको कर रहा था ,न्यायालय के आदेश का पालन न करते हुए दादागीरि से कार्य करने का साहस स्थानिय प्रशासन के होते हुए भी किसने दिया हैं ,इस पर जॉच होना आवश्यक है।
श्रम विभाग के पास यह भी आकड़े नहीं हैं कि चिमनी स्थल में कितने लोग कार्य कर रहे थे ,बहुत लापता लोगों का लाश नही मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में मरने वालों की संख्या कैसे पता लगेगा ?श्रम विभाग भी बालको और ठेकेदारों से मिले हुए हैं , जॉंच निष्पक्ष रूप से होना आवश्यक हैं ।
राज्य शासन का जॉच तो मात्र दिखावा के सिवाय कुछ भी नहीं रहेगा,जॉच के नाम पर लिपाई -पुताई ही अधिक होने की सम्भवना के कारण सीबीआई से ही जॉच करना आवश्यक हैं ।
पुलिस विभाग भी इस प्रकरण में अपनी दाइत्व से बच नहीं सकता ,जहॉ घटना घटी है उस स्थान से पुलिस थाना बहुत ही नजदीक है ,फिर भी अपराधीयों को पुलिस ने घटना स्थल से जाने क्यों दी ?
पुलिस विभाग भी इस प्रकरण में अपनी दाइत्व से बच नहीं सकता ,जहॉ घटना घटी है उस स्थान से पुलिस थाना बहुत ही नजदीक है ,फिर भी अपराधीयों को पुलिस ने घटना स्थल से जाने क्यों दी ?
घटना स्थल से लगा रिकार्ड रूम को बहुत ही सुनियोजित ढंग से जला दिया गया हैं ,ताकि भ्रश्टाचार से सम्बन्धित सम्पूर्ण दस्तावेज जल जाए और सबूत खत्म हो जाने से प्रकरण को दबाने में सरल हो । बालको आज रहने लायक नहीं रह गया हैं ,नया संयंत्र लगने के बाद ही परिवार सहित कर्मचारि रहने के लिए आते है। यहॉं तो एक बार बालको संयंत्र बन चूका था ,फिर एल्युमिनियम संयंत्र को यदि नया रूप दे कर उत्पादन बढया जाता तो कुछ समझमें भी आता और त्याग भी किया जा सकता था ,लेकिन आज बालको के संयंत्र तो पुरा का पुरा बंद हो चुका हैं । मात्र स्मेलटर को छोड कर सभी बंद है ,पी टी एस –प्रोफा्रईल एण्ड टयूब शॉप , सी डब्ल्यू एस – सेन्ट्ल वर्क शॉप ,पुराना सेल हाउस ,एल्युमिना प्लांट , सभी बंद पड़ा हुआ हैं ----
यहाँ के बाक्साईड को लांजीगढ उडीसा में भेज दिया जाता है । कर्मचारियों में भय का वातावरण तैयार करके व्ही आर एस लेने को वाद्य कर दिया गया ,बालको प्रशासन चाहती हैं कि एल्युमिनियम के आढ में बिजली का धंधा करें । हजारों एकड सरकारी भूमि को kabjaa karke ,हजारों पेडों का वली देकर ,चारों ओर अशान्ती का वातारण बनाकर ,पता नहीं कोरबा और देश का क्या विकास हो रहा हैं ।
विकास के नाम से ,विनाश का जो खेल प्रत्यक्ष दिख रहा है ,उसे देखकर भी शासन प्रशासन क्यो नहीं ? यह प्रश्न सबके मन में आज घर कर गई हैं ,लोग ऐसी नहीं कि समझती नहीं हैं ये सब समझती है ,वक्त बलवान हैं ,जरूर समय अपना हिसाब किताब मांगेगा ........... बेशर्मी का ,बेइमानी का तो हद ही हो गया हैं ,बालको प्रबंधन भ्रश्टाचार को प्राकृतिक कारण बताने की पूरी तैयारी करने में जूटी हुई है।
जिस समय चिमनी गिरी ,उसी समय थोडीसी हवा के साथ वर्षा हो रही थी ,कोरबा में जब कभी वर्षा होती हैं तो अधिकांश समय बिजली भी कडकती रहती हैं ,यहॉं के लोगों के लिए यह सब साधारण बात हैं ,प्रबंधन का कहना हैं कि हवा ,पानी के कारण चिमनी गिरी है ,यह बात करने वाले प्रबंधन किस हद तक मानव जीवन के साथ खिलवाड कर सकती हैं ,यह बयान ही समझने में बहुत है।
जब कभी ऊँची मकान निर्माण होती हैं उसके साथ ही साथ तडित चालक भी चढाया जाता है ,यह एक सामान्य सी नियम है । यदि हवा पानी ,बिजली से उची मकान और चिमनी धराशायी होने लगे तो इस दूनियॉं में ऊँची निर्माण ही बंद हो जाती ,इसका अर्थ यह हुआ कि तड़ित चालक ही निर्माण कार्य के साथ आगे नहीं बढाया गया ,यदि ऐसा होता हैं तो बहुत बड़ी खामि को किसी भी हालत में क्षमा योग्य नहीं माना जा सकता हैं ।
बालको प्रकरण तो मात्र एक उदाहरण ही हैं ,इस तरह की खामियॉं देश के अन्य भागों में आज विकास के नाम से किया जा रहा जनसंहार ,चाहे यह उडिसा के कोरियाई कंपनी पोस्तो का हो ,बिहार के कर्णपूरा क्षेत्र का हो ,हिमाचल प्रदेश के पन बिजली उत्पादन में लगे कंपनी का हो ,बडे सेजों द्वारा निर्माण किया जा रहा अन्य निर्माण कार्य हो ,सभी और पर्यावरण और जनहानी.... प्राणी और अन्य तरह की विनाश ही अधिक परिलक्षित हो रहा हैं । अत: इस तरह की विनाश अविलम्ब रोकना अतिआवश्यक हैं ।
विकास तो मानव या जीव जगत के लिए आवश्यक हैं ,विकास का अर्थ और किसके लिए विकास,यह दोनों बातों को नजर अन्दाज कर दिया जाता है ,मानव रहित और प्राणी रहित विकास से किसका भला होने वाला है ं ,यह विचार करने का भी किसी को समय नहीं मिल रहा है , शासन -प्रशासन सभी मदहोश होकर विनाश कार्य में लिप्त हैं ,एक मानसीक रोगी जिस तरह से अपनी जुनून में कुछ भी करता हैं ,और उसे रोगी मानकर चिकित्सा की व्यवस्था की जाती ,ठीक उसी प्रकार देश के शासन -प्रशासन एक मानसीक रोगी बन चुका हैं ,सही चिकित्सा यदि नहीं किया गया तो ,देश और दुनियॉं से जीवन का ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा ......
भोले भाले जनता के नाम से देश नहीं चलता ,और जो भोले भाले और निरस जीवन जीने वालों पर प्रजातंत्र जैसे शासन व्यवस्था का भार देना अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने का समान हैं ।
प्रजातंत्र में अधिकांश जनता को हमेशा जागरूकता का परिचय देना आवश्यक हैं ,यदि जनता जागरूक न हो तो प्रजातंत्र का अर्थ ही क्या रह जाएगा
सभी घटनाओं पर विचार करने पर एक बात साफ हो जाता हैं कि निजीकरण और सरकारी करण दोनों में विशेश अन्तर नहीं रह गया हैं । काम करने वाले सभी भारतीय होते हैं , हम यह मानकर चलते हैं कि यदि निजीकरण होगा तो लोग ज्यादा कार्य करेंगे और राश्ट्ीय कृत उद्योग में लोग अधिक कार्य नहीं करेंगे ,बात मात्र मानसीक तैयारी की हैं । अत: बालको जैसे अन्य उद्योगों का जो नीजिकरण के पश्चात कार्यकुशलता पूर्व संचालन नहीं कर पा रही हैं ,उन सभी उद्योगों को फिर से रािश्ट्यकरण कर देना समयानुसार उचित है ।
विकास तो मानव या जीव जगत के लिए आवश्यक हैं ,विकास का अर्थ और किसके लिए विकास,यह दोनों बातों को नजर अन्दाज कर दिया जाता है ,मानव रहित और प्राणी रहित विकास से किसका भला होने वाला है ं ,यह विचार करने का भी किसी को समय नहीं मिल रहा है , शासन -प्रशासन सभी मदहोश होकर विनाश कार्य में लिप्त हैं ,एक मानसीक रोगी जिस तरह से अपनी जुनून में कुछ भी करता हैं ,और उसे रोगी मानकर चिकित्सा की व्यवस्था की जाती ,ठीक उसी प्रकार देश के शासन -प्रशासन एक मानसीक रोगी बन चुका हैं ,सही चिकित्सा यदि नहीं किया गया तो ,देश और दुनियॉं से जीवन का ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा ......
भोले भाले जनता के नाम से देश नहीं चलता ,और जो भोले भाले और निरस जीवन जीने वालों पर प्रजातंत्र जैसे शासन व्यवस्था का भार देना अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने का समान हैं ।
प्रजातंत्र में अधिकांश जनता को हमेशा जागरूकता का परिचय देना आवश्यक हैं ,यदि जनता जागरूक न हो तो प्रजातंत्र का अर्थ ही क्या रह जाएगा
सभी घटनाओं पर विचार करने पर एक बात साफ हो जाता हैं कि निजीकरण और सरकारी करण दोनों में विशेश अन्तर नहीं रह गया हैं । काम करने वाले सभी भारतीय होते हैं , हम यह मानकर चलते हैं कि यदि निजीकरण होगा तो लोग ज्यादा कार्य करेंगे और राश्ट्ीय कृत उद्योग में लोग अधिक कार्य नहीं करेंगे ,बात मात्र मानसीक तैयारी की हैं । अत: बालको जैसे अन्य उद्योगों का जो नीजिकरण के पश्चात कार्यकुशलता पूर्व संचालन नहीं कर पा रही हैं ,उन सभी उद्योगों को फिर से रािश्ट्यकरण कर देना समयानुसार उचित है ।
निजीकरण ,सेज ,विनाश से सम्बंधित जो भी ,जैसे भी विषय मिले उस पर हमें कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य करना चाहिए ------
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
ब्लोगवाणी के सिरिल जी को टिपण्णी पर एक पत्र --
सिरिल गुप्ता जी !
यदि उत्तर न दू तो अच्छा नहीं लगता ,आपने तो ब्लॉग में लिख ही दिया कि ब्लागवाणी पर यह पहला आरोप नहीं है । इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ लोग हो सकता है कि आरोप लगाने में ही कोई भला समझते हो , लेकिन ऐसे लोगों को पुछना चाहिए कि आरोप लगाने से उसका क्या भला हो रहा हैं ,यदि आरोप से उसका भला होता हो और ब्लागवाणी को विशेष नुकसान न हो तो ,ऐसे व्यक्तियों को आरोप लगाने के लिए उत्साहित करना भी ठीक हैं ।
आजकल नकारात्मक विचार भी सकारात्मक की ओर ले जा सकता है ,मैंने एक पोस्ट में लिखा है कि यदि मरा -मरा जपने से राम -राम हो सकता हैं ,तो आरोप लगाते लगाते स्वयं आरोप रहित हो जाने की सम्भावना अधिक हो सकती हैं ।
आपने धीरज खोने की बातें लिखी है ,इससे तो साफ हो जाता हैं कि समस्याओं पर आपलोगों ने बहुत अधिक ध्यान दिया हैं , तभी तो मोडरेशन के बारे में ब्लोगारों का सुझाव भी आमंत्रित किया गया हैं । मैं बहुत ही स्पष्ट रूप से आपको बताना चाहता हूँ कि ईमानदारी पूर्वक सबसे अच्छा जो विकल्प आपलोगों को सही लगे ,आपलोग वही करें ,मैं तो भारत वर्ष की भेड़तंत्र पर विस्वास ही नहीं करता ,अत: आपसे निवेदन हैं कि आप सर्वमान्य पर अधिक ध्यान न देते हुए ,जो सबसे अच्छा विकल्प आपलोगों के विचार में लगे, उसी पर आमल करें तो उत्तम होगा ।
जारा ध्यान देने की बात हैं कि आप कितनी भी अच्छी विकल्प ढूंढ ले ,क्या फिर भी आरोप से रहित रह सकेंगें ... ? मुझे लगता हैं कि सम्भव ही नहीं हैं ॥ मैंने जीवन में ऐसे कुछ कार्य जो बहुत ही इमानदारी पूर्वक किया हैं ,उसका फल भी लोगों को अच्छा ही मिला ,फिर भी आरोपों से बच नहीं सका ....
हिन्दी का विकास बहुत जरूरी हैं ,जो भी प्रयत्न और जैसी भी प्रयत्न ,आपलोगों ने शुरू किया हैं उसका एक इतिहास बनेगा .... लोग चाहे कुछ भी कहें पर न्यु का ईंट तो दफन हो जाता ,और उस पर मंजिल खड़ी होती हैं ,आप तो न्यु की ईंट हो ,तो दफन होने में किसकी भय हैं ?
मेरे संदेश याद रखने की बात कहकर सिरिल जी ! आपने बडप्पन का परिचय दिया हैं ,ईश्वर आपको सही दिशा दे ,आपलोगों को नई उमंग दे ,हिन्दी की विकास के लिए आप लोग कृत संकल्पित रहें ...यही प्रार्थना करता हूं ............
यदि उत्तर न दू तो अच्छा नहीं लगता ,आपने तो ब्लॉग में लिख ही दिया कि ब्लागवाणी पर यह पहला आरोप नहीं है । इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ लोग हो सकता है कि आरोप लगाने में ही कोई भला समझते हो , लेकिन ऐसे लोगों को पुछना चाहिए कि आरोप लगाने से उसका क्या भला हो रहा हैं ,यदि आरोप से उसका भला होता हो और ब्लागवाणी को विशेष नुकसान न हो तो ,ऐसे व्यक्तियों को आरोप लगाने के लिए उत्साहित करना भी ठीक हैं ।
आजकल नकारात्मक विचार भी सकारात्मक की ओर ले जा सकता है ,मैंने एक पोस्ट में लिखा है कि यदि मरा -मरा जपने से राम -राम हो सकता हैं ,तो आरोप लगाते लगाते स्वयं आरोप रहित हो जाने की सम्भावना अधिक हो सकती हैं ।
आपने धीरज खोने की बातें लिखी है ,इससे तो साफ हो जाता हैं कि समस्याओं पर आपलोगों ने बहुत अधिक ध्यान दिया हैं , तभी तो मोडरेशन के बारे में ब्लोगारों का सुझाव भी आमंत्रित किया गया हैं । मैं बहुत ही स्पष्ट रूप से आपको बताना चाहता हूँ कि ईमानदारी पूर्वक सबसे अच्छा जो विकल्प आपलोगों को सही लगे ,आपलोग वही करें ,मैं तो भारत वर्ष की भेड़तंत्र पर विस्वास ही नहीं करता ,अत: आपसे निवेदन हैं कि आप सर्वमान्य पर अधिक ध्यान न देते हुए ,जो सबसे अच्छा विकल्प आपलोगों के विचार में लगे, उसी पर आमल करें तो उत्तम होगा ।
जारा ध्यान देने की बात हैं कि आप कितनी भी अच्छी विकल्प ढूंढ ले ,क्या फिर भी आरोप से रहित रह सकेंगें ... ? मुझे लगता हैं कि सम्भव ही नहीं हैं ॥ मैंने जीवन में ऐसे कुछ कार्य जो बहुत ही इमानदारी पूर्वक किया हैं ,उसका फल भी लोगों को अच्छा ही मिला ,फिर भी आरोपों से बच नहीं सका ....
हिन्दी का विकास बहुत जरूरी हैं ,जो भी प्रयत्न और जैसी भी प्रयत्न ,आपलोगों ने शुरू किया हैं उसका एक इतिहास बनेगा .... लोग चाहे कुछ भी कहें पर न्यु का ईंट तो दफन हो जाता ,और उस पर मंजिल खड़ी होती हैं ,आप तो न्यु की ईंट हो ,तो दफन होने में किसकी भय हैं ?
मेरे संदेश याद रखने की बात कहकर सिरिल जी ! आपने बडप्पन का परिचय दिया हैं ,ईश्वर आपको सही दिशा दे ,आपलोगों को नई उमंग दे ,हिन्दी की विकास के लिए आप लोग कृत संकल्पित रहें ...यही प्रार्थना करता हूं ............
सोमवार, 28 सितंबर 2009
ताकि तकनिकी मानव को समझने में भूल न हो जाए--ब्लॉगवाणी के टीम को संदेश
ब्लागवाणी टीम को विदाई दिजीए ...यह समाचार सुनते ही मुझे दु:खद आश्चर्य हुआ ,मैंने लगातार अनेक बार ब्लागवाणी पर जाने की कोशिस करता रहा ,मुझे विस्वास ही नहीं हो रहा था कि ब्लागवाणी बंद हो सकती हैं ।
मैंने तो किसी तकनिकी कारण से खराबी होने के कारण क्षणिक परेशानी समझते हुए कोशिस पर कोशिस किए जा रहा था ,मैंने सोचा हिन्दी समाचार पत्र सा एक स्वतंत्र ब्लागवाणी बंद हो ही नहीं सकता हैं ,और भला यह बंद क्यों ? ब्लागवाणी को कोई परेशानी तो हैं नहीं ,दिनों दिन वाणी --दिन दुगणी रात चौगुणी बढत के साथ आगे बढ रही है। भला मेरे जैसे लोग अन्दर की बाते कब समझता हैं ,जब मुझे कोई झकझोर न दे, तब तक तो मैं अपनी ही धुंध में पड़ा रहता हूं ।
ब्लागवाणी भी तो एक समाचार पत्र जैसे ही हैं ,समाचार पत्र में खिंचातानी तो होगी ही , पक्ष -विपक्ष में अनेक बात सामने आना हैं, और आना भी चाहिए ,कुछ बाते कुछ लोगों को अच्छी लगेगी , कुछ को उसी बात बुरी भी लग सकती हैं ,इस दुनियॉं में सभी को खुश रखना सम्भव ही नहीं हैं ।
यदि किसी ने ब्लागवाणी पर कोई आरोप लगाया हैं ,तो उससे ब्लागवाणी को तो एक नई सोच ही मिला ना ? नई सोच तो एक दिशा देती हैं । ब्लागवाणी के टीम को विशाल हृदय का परिचय देना चाहिए,आरोप लगा हैं तो डटकर उसका मुकाबला किजीए ! आप अगर सही हैं, तो आपका बाल बॉका कोई नहीं कर सकता है ।
जब से ब्लागवाणी से जुडा हूँ , एक लगाव सा हो गया हैं, यदि आपके टीम को भी हमारे साथ कोई लगाव नहीं है, और मात्र आरोप -प्रत्यारोप के भय से इसे बंद करने तक सोचते हैं, तो कृपया हमेशा के लिए ब्लागवाणी बंद कर दे ।
यदि मैं चिट्ठा जगत में जाकर कुछ ब्लोगारों को नहीं पढा होता ,तो मैं विस्वास ही नहीं कर सकता था,कि ब्लागवाणी बंद कर दिया गया है । मैंने तो मेरे मूर्खता पर मन ही मन हंसा और आश्चर्य भी हुआ ,ऐसा लगता हैं कि दिमाग को और अधिक तेज करना होगा ,ताकि आज के तकनिकी मानव को समझने में काई भूल न हो जाए .....
मैंने तो किसी तकनिकी कारण से खराबी होने के कारण क्षणिक परेशानी समझते हुए कोशिस पर कोशिस किए जा रहा था ,मैंने सोचा हिन्दी समाचार पत्र सा एक स्वतंत्र ब्लागवाणी बंद हो ही नहीं सकता हैं ,और भला यह बंद क्यों ? ब्लागवाणी को कोई परेशानी तो हैं नहीं ,दिनों दिन वाणी --दिन दुगणी रात चौगुणी बढत के साथ आगे बढ रही है। भला मेरे जैसे लोग अन्दर की बाते कब समझता हैं ,जब मुझे कोई झकझोर न दे, तब तक तो मैं अपनी ही धुंध में पड़ा रहता हूं ।
ब्लागवाणी भी तो एक समाचार पत्र जैसे ही हैं ,समाचार पत्र में खिंचातानी तो होगी ही , पक्ष -विपक्ष में अनेक बात सामने आना हैं, और आना भी चाहिए ,कुछ बाते कुछ लोगों को अच्छी लगेगी , कुछ को उसी बात बुरी भी लग सकती हैं ,इस दुनियॉं में सभी को खुश रखना सम्भव ही नहीं हैं ।
यदि किसी ने ब्लागवाणी पर कोई आरोप लगाया हैं ,तो उससे ब्लागवाणी को तो एक नई सोच ही मिला ना ? नई सोच तो एक दिशा देती हैं । ब्लागवाणी के टीम को विशाल हृदय का परिचय देना चाहिए,आरोप लगा हैं तो डटकर उसका मुकाबला किजीए ! आप अगर सही हैं, तो आपका बाल बॉका कोई नहीं कर सकता है ।
जब से ब्लागवाणी से जुडा हूँ , एक लगाव सा हो गया हैं, यदि आपके टीम को भी हमारे साथ कोई लगाव नहीं है, और मात्र आरोप -प्रत्यारोप के भय से इसे बंद करने तक सोचते हैं, तो कृपया हमेशा के लिए ब्लागवाणी बंद कर दे ।
यदि मैं चिट्ठा जगत में जाकर कुछ ब्लोगारों को नहीं पढा होता ,तो मैं विस्वास ही नहीं कर सकता था,कि ब्लागवाणी बंद कर दिया गया है । मैंने तो मेरे मूर्खता पर मन ही मन हंसा और आश्चर्य भी हुआ ,ऐसा लगता हैं कि दिमाग को और अधिक तेज करना होगा ,ताकि आज के तकनिकी मानव को समझने में काई भूल न हो जाए .....
रविवार, 27 सितंबर 2009
कम्युनिस्ट गाली बनकर रह गया ---सहयोग के लिए बहुत बहुत आभार
देश में क्रान्तिकारि परिवर्तण की आवश्यकता क्यों हैं ? क्रांति की बातें तो अनेक लोग और दल करती हैं ,परन्तु जब व्यवहारिक धरातल पर कार्यकलापों का मुल्यांकन किया जाता हैं, तो देश में अपवाद छोडकर सभी से निराशा ही निराशा .....कम्युनिष्टों ने तो हद ही कर दी, प.बं कम्युनिष्टों का गढ माना जाता है ,वहॉं सिंगुर की घटना ,लालगढ की घटना और बंगाल की आर्थिक सामाजिक स्थितियों को देखते हुए हम नहीं कह सकते कि कम्युनिष्ट गरिबों और मजदूरों का दल हैं ।
कम्युनिष्ट शासन ,गरिबों पर गोलीयॉं चलाती हैं और उनसे जमीन छिनकर अमीरों को बॉंटती है , बंगाल में तो कम्युनिष्टों का गुण्डागर्दी खुलेआम चलने के साथ ही साथ यदि कोई विरोध करें तो उसे भी मौत के घाट उतार दिया जाता हैं ।
चौथ वसूल करके दादाओं का धंधा चलता हैं ,राष्ट्रीय रोजगार योजना हो या गरिबी भत्ता सभी में दादाओं का हिस्सा होता हैं । सरकार को सभी खबर हैं फिर भी मौन है ,कम्युनिष्टों की ऐसा घिनौना रूप जिसे देख और सुन कर शर्म से सिर झुक जाती हैं ।
उक्त घटनाओं को देखते हुए आज भी कुछ लोग अपने आप को कम्युनिष्ट कहते हैं, उनका तर्क हैं कि मार्क्स और माओ दोनों के सिद्धान्त अच्छा हैं ,मै उन लोगों को पुछता हूं कि यदि सचमुच सिद्धान्त अच्छी होती तो अन्तिम भी अच्छा होना चाहिए था ,किन्तु जब अन्तिम ठीक उल्टा हो रहा है तो किस सिद्धान्त का तारिफ किया जाए ?
एक गायक जिसे साधारण बोलचाल में भले ही अच्छा न लगता हो , लेकिन गाने के पश्चात लोगों का मन मोह लेता है, ऐसी स्थिति को मैं अन्तिम स्थिति कहता हूँ । इसका अर्थ यह हुआ कि सिद्धान्त चाहे कुछ भी हो, पर उसकी अन्तिम स्थिति यदि कुरूप हो ,घिनौना भरा हो ,नफरत योग्य हो ,तो उस सिद्धान्त का समर्थन किसी भी हालत में नहीं किया जा सकता हैं ।
माओवादिओं के नाम से देश में जो कुछ भी हो रहा हैं ,क्या उन सभी का समर्थन करना पडेगा ? किसी की बहु बेटी को जोर-जबरदस्ती घर से उठा कर माओवादी बना देना , उनके विरोध करने पर हत्या कर देना ,घर को जला देना , स्कुलों को जला देना , बिजली खम्भों को उखाड़ कर सभी को अंधेरे में रहने को मजबुर कर देना , गरिबों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे अनाजों को लूट लेना , आदी ...अनेक घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता हैं, जो की अमानवीय और असभ्यता से परिपूर्ण है।
अमीर भी अत्याचार करते हैं और मैं उन अमीरों को फूटी ऑखों से देखना भी पसन्द नहीं करता ,परन्तु माओवादी के नाम से गरिबों पर अत्याचार कौन सी सिद्धान्त में आता हैं ?
भाई शरद कोकास ने मुझे प्रमाण पत्र दे दिया कि मैं भी मार्क्स का ही समर्थक हूँ , भाई शरद ! कृपया मुझे किसी वाद पर बॉधने का प्रयत्न न करें ,मैंने पूर्व पोस्ट में जो कुछ भी लिखा है ,उन सभी तथ्यों को मार्क्स समर्थन नहीं कर सकते है।
गुणानुपात का अर्थ यह हैं कि सुविधा, गुण के अनुपात में मिलना चाहिए ,जो अधिक गुणी है समाज उसे अधिक सुविधा दें ,शारिरीक श्रम और मानसीक श्रम में बहुत अन्तर हैं ,मैं यह भी मानता हूँ कि दोनों श्रम एक दूसरे का पूरक भी हैं, परन्तु जब आनुपातिक रूप से मानसिक श्रम अधिक हो तो उसे आनुपातिक रूप से शारीरिक श्रम के अपेक्षा अधिक सुविधा देना आवश्यक है ।
एक साफ्टवेयर इंजिनीयर को एसी की आवश्यकता हो सकती है ,परन्तु एक रास्ते में फावड़ा चलाने वाले को वह उपयोगी नहीं हैं । एक साधारण शिक्षक को पाठशाला जाने के लिए साईकल की आवश्यकता हो सकती हैं परन्तु एक अच्छी डाक्टर को मरीज देखने के लिए और त्वरीत सेवा उपलब्ध होसके इसलिए उसे मोटर साईकल या कार या हवाई जहाज की व्यवस्था किया जाना आवश्यक हैं ।
प्राकृतिक संशाधनों का उपयोग मात्र धन होने पर ही उपलब्ध करवाना ठीक नहीं है। जैसे पैट्रोल डीजल,आदी का उपयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए ।
समीर भाई ,रतन सिंह जी , राकेश झा जी को धन्यवाद १ सुमनजी ! हो सकता हैं इस पोस्ट द्वारा आपको कुछ टिप्पनी का झलक मिल जाएगा ,काजल जी ! मानव निर्मित व्यवस्था में यदि सडन पैदा हो गई हो तो उपचार भी जरूरी है !
कम्युनिष्ट शासन ,गरिबों पर गोलीयॉं चलाती हैं और उनसे जमीन छिनकर अमीरों को बॉंटती है , बंगाल में तो कम्युनिष्टों का गुण्डागर्दी खुलेआम चलने के साथ ही साथ यदि कोई विरोध करें तो उसे भी मौत के घाट उतार दिया जाता हैं ।
चौथ वसूल करके दादाओं का धंधा चलता हैं ,राष्ट्रीय रोजगार योजना हो या गरिबी भत्ता सभी में दादाओं का हिस्सा होता हैं । सरकार को सभी खबर हैं फिर भी मौन है ,कम्युनिष्टों की ऐसा घिनौना रूप जिसे देख और सुन कर शर्म से सिर झुक जाती हैं ।
उक्त घटनाओं को देखते हुए आज भी कुछ लोग अपने आप को कम्युनिष्ट कहते हैं, उनका तर्क हैं कि मार्क्स और माओ दोनों के सिद्धान्त अच्छा हैं ,मै उन लोगों को पुछता हूं कि यदि सचमुच सिद्धान्त अच्छी होती तो अन्तिम भी अच्छा होना चाहिए था ,किन्तु जब अन्तिम ठीक उल्टा हो रहा है तो किस सिद्धान्त का तारिफ किया जाए ?
एक गायक जिसे साधारण बोलचाल में भले ही अच्छा न लगता हो , लेकिन गाने के पश्चात लोगों का मन मोह लेता है, ऐसी स्थिति को मैं अन्तिम स्थिति कहता हूँ । इसका अर्थ यह हुआ कि सिद्धान्त चाहे कुछ भी हो, पर उसकी अन्तिम स्थिति यदि कुरूप हो ,घिनौना भरा हो ,नफरत योग्य हो ,तो उस सिद्धान्त का समर्थन किसी भी हालत में नहीं किया जा सकता हैं ।
माओवादिओं के नाम से देश में जो कुछ भी हो रहा हैं ,क्या उन सभी का समर्थन करना पडेगा ? किसी की बहु बेटी को जोर-जबरदस्ती घर से उठा कर माओवादी बना देना , उनके विरोध करने पर हत्या कर देना ,घर को जला देना , स्कुलों को जला देना , बिजली खम्भों को उखाड़ कर सभी को अंधेरे में रहने को मजबुर कर देना , गरिबों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे अनाजों को लूट लेना , आदी ...अनेक घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता हैं, जो की अमानवीय और असभ्यता से परिपूर्ण है।
अमीर भी अत्याचार करते हैं और मैं उन अमीरों को फूटी ऑखों से देखना भी पसन्द नहीं करता ,परन्तु माओवादी के नाम से गरिबों पर अत्याचार कौन सी सिद्धान्त में आता हैं ?
भाई शरद कोकास ने मुझे प्रमाण पत्र दे दिया कि मैं भी मार्क्स का ही समर्थक हूँ , भाई शरद ! कृपया मुझे किसी वाद पर बॉधने का प्रयत्न न करें ,मैंने पूर्व पोस्ट में जो कुछ भी लिखा है ,उन सभी तथ्यों को मार्क्स समर्थन नहीं कर सकते है।
गुणानुपात का अर्थ यह हैं कि सुविधा, गुण के अनुपात में मिलना चाहिए ,जो अधिक गुणी है समाज उसे अधिक सुविधा दें ,शारिरीक श्रम और मानसीक श्रम में बहुत अन्तर हैं ,मैं यह भी मानता हूँ कि दोनों श्रम एक दूसरे का पूरक भी हैं, परन्तु जब आनुपातिक रूप से मानसिक श्रम अधिक हो तो उसे आनुपातिक रूप से शारीरिक श्रम के अपेक्षा अधिक सुविधा देना आवश्यक है ।
एक साफ्टवेयर इंजिनीयर को एसी की आवश्यकता हो सकती है ,परन्तु एक रास्ते में फावड़ा चलाने वाले को वह उपयोगी नहीं हैं । एक साधारण शिक्षक को पाठशाला जाने के लिए साईकल की आवश्यकता हो सकती हैं परन्तु एक अच्छी डाक्टर को मरीज देखने के लिए और त्वरीत सेवा उपलब्ध होसके इसलिए उसे मोटर साईकल या कार या हवाई जहाज की व्यवस्था किया जाना आवश्यक हैं ।
प्राकृतिक संशाधनों का उपयोग मात्र धन होने पर ही उपलब्ध करवाना ठीक नहीं है। जैसे पैट्रोल डीजल,आदी का उपयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए ।
समीर भाई ,रतन सिंह जी , राकेश झा जी को धन्यवाद १ सुमनजी ! हो सकता हैं इस पोस्ट द्वारा आपको कुछ टिप्पनी का झलक मिल जाएगा ,काजल जी ! मानव निर्मित व्यवस्था में यदि सडन पैदा हो गई हो तो उपचार भी जरूरी है !
शनिवार, 26 सितंबर 2009
ब्लोगर बंधुओं मुझे आपका सलाह चाहिए !
ब्लोग लिखकर क्या फायदा ! समय ,स्वास्थ्य और धनहानि के सिवाय कुछ भी हॉंसिल नहीं होता ,रात-रात भर जगते हुए कुछ लिखना, जिससे समाज और देश का भला हो सकें ,परन्तु मैं यह देख कर हैरान हो जाता हूँ कि अधिकांश ब्लोगर्स स्वप्रचार में ही व्यास्त रहते हैं । कुछ पोस्ट उच्चकोटि के होते हुए भी लोग उसे पढना नहीं चाहते ,स्वप्रचार एक विज्ञापण के सिवाय कुछ भी नहीं हैं । ब्लोग लिखना आज सस्ता विज्ञापण साबित हो रहा है ।
अब पढने वाले भी कितने है ...अधिक पढे जाने वाले पोस्ट लगभग 175 से 200 तक सिमीत हैं ,जितने समय और धन बरबाद हो जाती हैं वही साधन यदि समाचार पत्रों में पर्चा छपवाकर बटवा दिया जाए, तो ज्यादा उपयोगी और असरदार होने की सम्भावना अधिक हो जाने से मुझे लगता है कि ब्लोग में अधिक ध्यान देना सही प्रतित नहीं होता ।
मै उक्त बातों से सम्पूर्ण सहमत भी नहीं हूँ ...हर सोच की दो पहलू होती हैं ,पहला जो तत्काल दिमाग में आता हो और दूसरी तो दिमाग सोचने के लिए तैयार ही नहीं होती ,मनोवैज्ञानिक क्या कहते है यह मुझे पता नहीं , परन्तु मैं दूसरी पहलू के लिए सभी ब्लोगर्स बन्धुओं और मेरे अनुसरणकर्ताओं से निवेदन करना चाहता हूँ कि जिस अनछुए पहलू को मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कृपया मुझे मार्गदर्शन करने का कष्ट करें ।
देश में क्रान्तिकारि परिवर्तण की आवश्यकता हैं ,लेकिन जब क्रान्ति की बाते आती हैं तो कृपया मुझे कोई कम्युनिष्ट न कहे ,यह शब्द मुझें आज गाली जैसी लगती हैं । फ्रान्स में हाब्स,लॉक,रूसो जैसे तिकड़ी ने एक इतिहास रचना कर अमर हो गए ,मैं फ्रांस की क्रांति से अधिक प्रभावित हूँ
मुझे समाजवाद से लगाव तो हैं परन्तु आयात किया गया समाजवाद से कोई सरोकार नहीं हैं ,आज समाजवाद का तो आधार ही नहीं रह गया हैं । रूस ,चीन ,जैसे समाजवादी देश अमेरिका के पिछलग्गु बन गए हैं,ऐसी स्थिति में समाजवाद एक सपना साबित हुआ ।
सभी को बराबर का दर्जा नहीं दिया जा सकता हैं ,प्राकृतिक नियमानुसार सभी प्राणी को जीने का अधिकार हैं ,कम्युनिस्टों ने तो मात्र विचार भिन्नता के कारण से उत्पन्न भावनाओं को कुचल देता हैं ,जब विचार ही नहीं रहेगा तो आगे बढने की साधन भी समाप्त हो जाता हैं ,इसिलिए आज कम्युनिस्ट आन्दोलन मृत प्राय: हो चुका हैं ।
मैंने विचारों से सम्बन्धीत और इन विचारों से देश में एक क्रान्तिकारि परिवर्तण कैसे हो सकें इस बात को अधिक महत्व देता हूँ ,अत: सभी बन्धुओं से विचार जानने को उत्सुक हूँ ,मात्र लिखने के लिए लिखना , किसी भी रूप से मान्य योग्य नहीं हैं ।
एक बात स्पश्ट रूप से लिखना भी आवश्यक हैं कि क्रान्ति का अर्थ परिवर्तण से हैं ,वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तण करते हुए जो धन सम्पत्ति मुठि्ठ भर लोगों में केंद्रित हो चुकी हैं उसे उचित इस तरह विकेंद्रियकरण करना जिससे कि धन सम्पदा का लाभ सभी को समुचित हो सकें और समाज में सन्तुलन की स्थिति बनी रहे ,बराबरी की कल्पना मैं नहीं करता । गुणानुपात के मूल्यांकण को आधार माना जा सकता हैं ।
बन्धुओं याद रखो ....उक्त परिवर्तण का रूप भले ही कुछ बदलता हुआ व्यावहारिक भूमि पर फुलता फलता दिखें ,पर विचारानुसार लगभग परिवर्तण को कोई रोक नहीं पाएगा ,अत: परिवर्तण वेला में साथ देकर युग धर्म का निर्वाहन करना ,सभी का पुणित कर्तव्य हैं ।
अब पढने वाले भी कितने है ...अधिक पढे जाने वाले पोस्ट लगभग 175 से 200 तक सिमीत हैं ,जितने समय और धन बरबाद हो जाती हैं वही साधन यदि समाचार पत्रों में पर्चा छपवाकर बटवा दिया जाए, तो ज्यादा उपयोगी और असरदार होने की सम्भावना अधिक हो जाने से मुझे लगता है कि ब्लोग में अधिक ध्यान देना सही प्रतित नहीं होता ।
मै उक्त बातों से सम्पूर्ण सहमत भी नहीं हूँ ...हर सोच की दो पहलू होती हैं ,पहला जो तत्काल दिमाग में आता हो और दूसरी तो दिमाग सोचने के लिए तैयार ही नहीं होती ,मनोवैज्ञानिक क्या कहते है यह मुझे पता नहीं , परन्तु मैं दूसरी पहलू के लिए सभी ब्लोगर्स बन्धुओं और मेरे अनुसरणकर्ताओं से निवेदन करना चाहता हूँ कि जिस अनछुए पहलू को मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कृपया मुझे मार्गदर्शन करने का कष्ट करें ।
देश में क्रान्तिकारि परिवर्तण की आवश्यकता हैं ,लेकिन जब क्रान्ति की बाते आती हैं तो कृपया मुझे कोई कम्युनिष्ट न कहे ,यह शब्द मुझें आज गाली जैसी लगती हैं । फ्रान्स में हाब्स,लॉक,रूसो जैसे तिकड़ी ने एक इतिहास रचना कर अमर हो गए ,मैं फ्रांस की क्रांति से अधिक प्रभावित हूँ
मुझे समाजवाद से लगाव तो हैं परन्तु आयात किया गया समाजवाद से कोई सरोकार नहीं हैं ,आज समाजवाद का तो आधार ही नहीं रह गया हैं । रूस ,चीन ,जैसे समाजवादी देश अमेरिका के पिछलग्गु बन गए हैं,ऐसी स्थिति में समाजवाद एक सपना साबित हुआ ।
सभी को बराबर का दर्जा नहीं दिया जा सकता हैं ,प्राकृतिक नियमानुसार सभी प्राणी को जीने का अधिकार हैं ,कम्युनिस्टों ने तो मात्र विचार भिन्नता के कारण से उत्पन्न भावनाओं को कुचल देता हैं ,जब विचार ही नहीं रहेगा तो आगे बढने की साधन भी समाप्त हो जाता हैं ,इसिलिए आज कम्युनिस्ट आन्दोलन मृत प्राय: हो चुका हैं ।
मैंने विचारों से सम्बन्धीत और इन विचारों से देश में एक क्रान्तिकारि परिवर्तण कैसे हो सकें इस बात को अधिक महत्व देता हूँ ,अत: सभी बन्धुओं से विचार जानने को उत्सुक हूँ ,मात्र लिखने के लिए लिखना , किसी भी रूप से मान्य योग्य नहीं हैं ।
एक बात स्पश्ट रूप से लिखना भी आवश्यक हैं कि क्रान्ति का अर्थ परिवर्तण से हैं ,वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तण करते हुए जो धन सम्पत्ति मुठि्ठ भर लोगों में केंद्रित हो चुकी हैं उसे उचित इस तरह विकेंद्रियकरण करना जिससे कि धन सम्पदा का लाभ सभी को समुचित हो सकें और समाज में सन्तुलन की स्थिति बनी रहे ,बराबरी की कल्पना मैं नहीं करता । गुणानुपात के मूल्यांकण को आधार माना जा सकता हैं ।
बन्धुओं याद रखो ....उक्त परिवर्तण का रूप भले ही कुछ बदलता हुआ व्यावहारिक भूमि पर फुलता फलता दिखें ,पर विचारानुसार लगभग परिवर्तण को कोई रोक नहीं पाएगा ,अत: परिवर्तण वेला में साथ देकर युग धर्म का निर्वाहन करना ,सभी का पुणित कर्तव्य हैं ।
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
बालको के चिमनी कांड --बहुराष्ट्रीय कंपनी का भारत में देशद्रोही के सामान हैं--
बालको में कल जो हादसा हुआ था लगभग तीस घन्टे बीत जाने पर भी लगातार लाशों का मिलना जारी है।चिमनी के मलवे में अभी अनेक लाश दबे पड़े है ,पता नहीं किन अभागों का कंकाल ही हाथ लगेगा, और यह शिनाख्त करना भी मुस्किल हो जाएगा कि किसका लाश है।
सूत्र बताते हैं कि ऐसे अनेक मजदूर हैं जिसके पास कोई प्रमाण पत्र ही नहीं है ,मजदूर ठेकेदार यदि तीस प्रमाण पत्र जारी किया हैं, उसी तीस के बदले पंचास -साठ मजदूर कार्य करने चले जाते थे ,यह कैसे सम्भव होता हैं ,यह मुझे पता नहीं, पर कहते है लेबर इन्सपेक्टर के साथ सॉंठ- गाठ करके ऐसा किया जाता है ,जो जानते हैं कि चिमनी बनाते समय इस तरह की हादसा होता हैं और मौत होने पर कम मुआवजा देना पड़े , इसलिए पहले से ही तैयारी किया जाता हैं ।
आज बालको प्रबंधन और जीडीसीएल पर गैर इरादा हत्या का मामला दर्ज किया गया हैं ,304 ए धारा लगाकर प्रथम सूचना थाने में दर्ज कर न्यायिक जॉंच की आदेश भी शासन ने दे दिया हैं , पर इससे क्या हासिल होगा , सभी जानते हैं ,जॉंच का समय बढता चला जाता हैं और तब तक सारे सबूत भी एक एक करके नष्ट हो जाने से अपराधी अन्तिम समय में न्यायिक दण्ड से बच निकलते है।
यदि मुम्बई होटल ताज का घटना हो तो देश के सभी दिल थाम कर दुआ के लिए निकल पड़ते है ,हिन्दु, मुस्लिम,इसाई सभी सारे भेद भाव भुल कर सहयोग का हाथ बढाते हैं ,देश में आक्रोश का माहोल बन जाता है । आज सैकडों लोगों का जान चला गया ,लाश अभी दबे पड़े है ,लाश सड़ चुकी हैं ,बदबु आने लगी है ऐसी स्थिति में बालको प्रबंधन के सारे जिम्मेदार लोग घटना स्थल पर जाना भी मुनासिब नहीं समझे ।
बालको प्रबंधन के स्थानीय प्रमुख श्री गूंजन गुप्ता जो 24 घन्टे के बाद घटना स्थल पर पहुँचने के कारण उपस्थित मजदूर भड़क गए और उसे मारने के लिए दौडाए ,उसके साथ भी अप्रिय घटना घट सकती थी ।
प्रत्यक्षदर्शीयों का कहना है कि लगभग तीन बज कर तीस मिनट को यहॉं ऑंधी और कड़कते हुए बिजली चमकने लगी एवं कुछ ही समय पश्चात चिमनी धराशायी हो गया ,यह भी बताया जा रहा हैं कि पहले तो चिमनी लगभग बीस मिटर जमीन के अन्दर धंश गई ,और बाद में झुकते हुए गिरी
प्रबंधन इसे एक प्राकृतिक घटना के साथ जोड़कर अपना पक्ष मजबुत बनने मे लगी हुई हैं ।यह धारणा बनाई जा रही हैं कि चिमनी तेज ऑंधी और बिजली गिरने के करण धराशायी हुई हैं । क्या तेज ऑधी और बिजली गिरने के कारण निर्माण कार्य धराशायी हो जाती हैं ? कुतुब मिनार क्यों नही गिर गई ? हजारों वर्षों तक आज भी दिल्ली में शान से खड़ी है । आज विज्ञान इतनी तरक्की कर चुकी है , फिर भी इस तरह की गिम्भर हादसा होना किसी भी तरह से प्राकृतिक नहीं कहा जा सकता हैं ।
कंक्रिट के मजबूत दीवारों से निर्मित लगभग 250 फीट की चिमनी जब गिरी तो कांक्रिट में फंसे छड़ को आसानी से हाथ से खिंचकर निकाला जाना आसान था जबकि साधारणत: छड को कंक्रिट से अलग करना बहुत कठीन होता हैं । एक बात और हैं कि १२०० मेगावाट के बिजली सयंत्र को मात्र ९०० करोड में चीन के कंपनी ने तैयार करने का ठेका लेता है और चिमनी में ३२ एम एम के छड़ के स्थान में २२ एम एम का छड़ लगा कर खर्च को कम किया गया ,जो गुणवत्ताहीन निर्माण की पोल खोलने के लिए प्रयाप्त हैं ।
एक बात यह भी हैं कि बालको में चीन के सिपको द्वाराएक और बिजली सयंत्र का निर्माण करते समय आठ लोगों की मृत्यु हो चुकी थी ,फिर भी दूसरी सयंत्र का ठेका सिपको को देना ,सन्देहास्पद हैं । तमाम तथ्यों पर निश्पक्ष जॉच कर दोशी का कठोर दण्ड देना आवश्यक है । यह देशद्रोही के समान अपराध हैं !
देशहित के मुद्दों पर समस्त ब्लोगारों को एक सशक्त दस्तक देना भी समयानुकुल जरूरी है ,अन्यथा लेखनी उठाना और प्रजातांत्रिक देश के नागरिक कहना किसी तरह उचित नहीं हैं । आशा करता हूँ कि ब्लोगर बन्धु ज्वलन्त मुद्दों पर अपना प्रतिक्रिया अपनी तरिके से अवश्य दर्ज करेंगें ।
सूत्र बताते हैं कि ऐसे अनेक मजदूर हैं जिसके पास कोई प्रमाण पत्र ही नहीं है ,मजदूर ठेकेदार यदि तीस प्रमाण पत्र जारी किया हैं, उसी तीस के बदले पंचास -साठ मजदूर कार्य करने चले जाते थे ,यह कैसे सम्भव होता हैं ,यह मुझे पता नहीं, पर कहते है लेबर इन्सपेक्टर के साथ सॉंठ- गाठ करके ऐसा किया जाता है ,जो जानते हैं कि चिमनी बनाते समय इस तरह की हादसा होता हैं और मौत होने पर कम मुआवजा देना पड़े , इसलिए पहले से ही तैयारी किया जाता हैं ।
आज बालको प्रबंधन और जीडीसीएल पर गैर इरादा हत्या का मामला दर्ज किया गया हैं ,304 ए धारा लगाकर प्रथम सूचना थाने में दर्ज कर न्यायिक जॉंच की आदेश भी शासन ने दे दिया हैं , पर इससे क्या हासिल होगा , सभी जानते हैं ,जॉंच का समय बढता चला जाता हैं और तब तक सारे सबूत भी एक एक करके नष्ट हो जाने से अपराधी अन्तिम समय में न्यायिक दण्ड से बच निकलते है।
यदि मुम्बई होटल ताज का घटना हो तो देश के सभी दिल थाम कर दुआ के लिए निकल पड़ते है ,हिन्दु, मुस्लिम,इसाई सभी सारे भेद भाव भुल कर सहयोग का हाथ बढाते हैं ,देश में आक्रोश का माहोल बन जाता है । आज सैकडों लोगों का जान चला गया ,लाश अभी दबे पड़े है ,लाश सड़ चुकी हैं ,बदबु आने लगी है ऐसी स्थिति में बालको प्रबंधन के सारे जिम्मेदार लोग घटना स्थल पर जाना भी मुनासिब नहीं समझे ।
बालको प्रबंधन के स्थानीय प्रमुख श्री गूंजन गुप्ता जो 24 घन्टे के बाद घटना स्थल पर पहुँचने के कारण उपस्थित मजदूर भड़क गए और उसे मारने के लिए दौडाए ,उसके साथ भी अप्रिय घटना घट सकती थी ।
प्रत्यक्षदर्शीयों का कहना है कि लगभग तीन बज कर तीस मिनट को यहॉं ऑंधी और कड़कते हुए बिजली चमकने लगी एवं कुछ ही समय पश्चात चिमनी धराशायी हो गया ,यह भी बताया जा रहा हैं कि पहले तो चिमनी लगभग बीस मिटर जमीन के अन्दर धंश गई ,और बाद में झुकते हुए गिरी
प्रबंधन इसे एक प्राकृतिक घटना के साथ जोड़कर अपना पक्ष मजबुत बनने मे लगी हुई हैं ।यह धारणा बनाई जा रही हैं कि चिमनी तेज ऑंधी और बिजली गिरने के करण धराशायी हुई हैं । क्या तेज ऑधी और बिजली गिरने के कारण निर्माण कार्य धराशायी हो जाती हैं ? कुतुब मिनार क्यों नही गिर गई ? हजारों वर्षों तक आज भी दिल्ली में शान से खड़ी है । आज विज्ञान इतनी तरक्की कर चुकी है , फिर भी इस तरह की गिम्भर हादसा होना किसी भी तरह से प्राकृतिक नहीं कहा जा सकता हैं ।
कंक्रिट के मजबूत दीवारों से निर्मित लगभग 250 फीट की चिमनी जब गिरी तो कांक्रिट में फंसे छड़ को आसानी से हाथ से खिंचकर निकाला जाना आसान था जबकि साधारणत: छड को कंक्रिट से अलग करना बहुत कठीन होता हैं । एक बात और हैं कि १२०० मेगावाट के बिजली सयंत्र को मात्र ९०० करोड में चीन के कंपनी ने तैयार करने का ठेका लेता है और चिमनी में ३२ एम एम के छड़ के स्थान में २२ एम एम का छड़ लगा कर खर्च को कम किया गया ,जो गुणवत्ताहीन निर्माण की पोल खोलने के लिए प्रयाप्त हैं ।
एक बात यह भी हैं कि बालको में चीन के सिपको द्वाराएक और बिजली सयंत्र का निर्माण करते समय आठ लोगों की मृत्यु हो चुकी थी ,फिर भी दूसरी सयंत्र का ठेका सिपको को देना ,सन्देहास्पद हैं । तमाम तथ्यों पर निश्पक्ष जॉच कर दोशी का कठोर दण्ड देना आवश्यक है । यह देशद्रोही के समान अपराध हैं !
देशहित के मुद्दों पर समस्त ब्लोगारों को एक सशक्त दस्तक देना भी समयानुकुल जरूरी है ,अन्यथा लेखनी उठाना और प्रजातांत्रिक देश के नागरिक कहना किसी तरह उचित नहीं हैं । आशा करता हूँ कि ब्लोगर बन्धु ज्वलन्त मुद्दों पर अपना प्रतिक्रिया अपनी तरिके से अवश्य दर्ज करेंगें ।
बुधवार, 23 सितंबर 2009
गुणवत्ता विहीन बालको विद्युत सयंत्र की चिमनी गिरा-- सैकड़ो घायल ,इंजिनियर ओर मजदूरों की मौत --मलवे में दबे हैं लाश
कोरबा -बालको -का नाम पहले जो नहीं जानते थे ,आज के बालको हादसे के बाद भारत में ही नहीं बल्की दुनियॉ के लोग जानने लगेंगे । आज लगभग 3 बजे बालको द्वारा स्थापित 1200 मेगावाट के विद्युत सयंत्र की चिमनी का निर्माण कार्य में लगे के लिए काला दिवस साबित हुआ , मजदूरों को क्या पता था कि आज उनके जीवन का अन्तिम दिन होगा ,100 मिटर लगभग 250 फीस उंची कुतूब मिनार जैसे चिमनी बनने का ठेका सिपाको ,चीन के कंपनी को दिया गया था ,मात्र कुछ कागज के नोटों के लिए बालकों के प्रबंधन द्वारा गुणवत्ता विहीन कार्य करने मे माहीर चीन के सिपाकों कंपनी को 1200 मेगावाट विद्युत संयत्र का ठेका दिया गया ,यह कंपनी देशी कंपनी भेल से बहुत ही कम किंमत में निर्माण कार्य करता है ,जोकि मानक किंमत में कभी सम्भव ही नहीं होता ।
बालको जिसका सीइओ अनिल अग्रवाल है ,कभी बालको में कबाड खरीदकर अपना जीवन यापन करता था ,एका एक करोडों का मालिक कैसे बन बैठा ,यह जॉंच का भी विषय हैं । एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के दलाल जो इंग्लैण्ड से संचालित होता हैं , भारत में प्रवेश कर वेदान्ता के नाम से व्यापार करने लगा ,आज अंग्रेज प्रत्यक्ष रूप से भारत न आकर यहॉं के पीट्ठुओं से अपना काम करवा लेता है ,यदि यहॉं के अच्छा दलाल अंग्रेजों के लिए फैदेमंद हो तो उनके कंधे पर बन्दुक रख कर भारत में लूट का साम्रज्य बनाना बहुत आसान है ।
अनिल अग्रवाल ने यही काम भारत में किया हैं ,किसी जमाने में मिर्जाफर ने देश के साथ जो गद्दारी किया था ,जिसका परिणाम देश के बच्चे -बच्चे आज जानते है। भारत में फिर इतिहास दोहराया जा रहा है।
चिमनी भर भरा कर गिर पड़ी ,चिमनी के ऊपर काम कर रहे मजदुर, इंजिनियर ताश के पत्तों की तरह नीचे बिखर गए ,250 फीट नीचे आते आते अधिकांश मजदूरों का जीवन लीला समाप्त हो चुका था , लाशों को पहचान पाना मुस्किल हो चुका है ,23 लाश मलबे से निकाल लिया गया है ,लगभग 40 मजदूर और इंजिनियर चिमनी के मलबे में दबे पड़े हैं ।
संयोग से हादसे की स्थान में जाने का मुझे मौका मिल गया था , गुणवत्ता विहीन निर्माण कार्य देखकर मैं हैरान और आश्चार्य चकित था , मजदुरों और कर्मचारियों के जीवन के साथ बालकों में जिस तरह से खिलवाड़ किया जा रहा हैं, उसे दिखकर और सुनकर मन हाहाकार कर उठता हैं --
मुझे याद हैं जब बालको का निजीकरण हो रहा था और मजदुरों ने 67 दिन का ऐतिहासिक आन्दोलन कर इसका विरोध किया ,परन्तु भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों ने मिलकर लाभ में चल रही बालको को मिटि्ट के मौल वेदान्ता समूह को दान में देकर ,पता नहीं अंग्रेजों के एक बहुराष्ट्रिय कंपनी को क्यों अनुग्रहित किया । लगभग पॉच हजार करोड़ की राष्ट्रिय सम्पत्ति को विनिवेश के नाम पर मात्र पॉच सौ करोड़ में देकर ,भष्ट्राचार का मिशाल कायम किया गया ,शर्म की बात हैं ....गद्दारी की चरम सीमा !!!!!
बालको का अर्थ भारत एल्युमिनिय कंपनी ,वेदान्ता समूह ने एल्युमिनियम कंपनी का ५१ प्रतिशत अधिग्रहरण करते हुए मालिक बन बैठा , बालको में एक केप्टिक विद्युत सयंत्र पहले से ही लगाहुआ होने के कारण विद्युत आपूर्ति में को कठिनाई नहीं होती थी ,वेदान्ता समूह ने देखा कि कोरबा में कोयला अधिक उत्पादन होता हैं अत: एल्युमिनियम के बहाने घुसपैठ करते हुए विद्युत संयत्र बनाने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
विद्युत संयत्र बनाने के लिए बालको का भूमि जिसे भुस्वामीओं ने एल्युमिनियम सयंत्र के लिए प्रदान किया था ,उसी भूमि में दो -दो विद्युत सयंत्र निर्माण करने का षडयंत्र यहॉं के शासन प्रशासन को उपकृत करके रचा ,हजारों एकड़ भुमि अवैध कब्जा करके ,हजारों हराभरा पेड़ों को रातों रात हत्या करते हुए जिस विकास बनाम विनाश का नंगा नाच कोरबा में शुरू किया गया, उसका मिशाल विरले ही देखने सुनने को मिलता हैं ।
चिमनी प्रकरण में बालको प्रबंधन ,अनिल अग्रवाल वेदान्ता समूह के आका जो इंग्लैण्ड में बैठे हुए हैं ,चीन के सिपको ,स्थानिय प्रशासन ,छत्तिसगढ शासन सभी दोषी हैं ,रमन सरकार मात्र जॉच का आदेश दे कर अपना कर्तव्य से बच नहीं सकते । छत्तिसगढ को बंजर और प्रदूषित करने में डा.रमन सिंह अपराधी के श्रेणी आ जाते हैं ।
बालको जिसका सीइओ अनिल अग्रवाल है ,कभी बालको में कबाड खरीदकर अपना जीवन यापन करता था ,एका एक करोडों का मालिक कैसे बन बैठा ,यह जॉंच का भी विषय हैं । एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के दलाल जो इंग्लैण्ड से संचालित होता हैं , भारत में प्रवेश कर वेदान्ता के नाम से व्यापार करने लगा ,आज अंग्रेज प्रत्यक्ष रूप से भारत न आकर यहॉं के पीट्ठुओं से अपना काम करवा लेता है ,यदि यहॉं के अच्छा दलाल अंग्रेजों के लिए फैदेमंद हो तो उनके कंधे पर बन्दुक रख कर भारत में लूट का साम्रज्य बनाना बहुत आसान है ।
अनिल अग्रवाल ने यही काम भारत में किया हैं ,किसी जमाने में मिर्जाफर ने देश के साथ जो गद्दारी किया था ,जिसका परिणाम देश के बच्चे -बच्चे आज जानते है। भारत में फिर इतिहास दोहराया जा रहा है।
चिमनी भर भरा कर गिर पड़ी ,चिमनी के ऊपर काम कर रहे मजदुर, इंजिनियर ताश के पत्तों की तरह नीचे बिखर गए ,250 फीट नीचे आते आते अधिकांश मजदूरों का जीवन लीला समाप्त हो चुका था , लाशों को पहचान पाना मुस्किल हो चुका है ,23 लाश मलबे से निकाल लिया गया है ,लगभग 40 मजदूर और इंजिनियर चिमनी के मलबे में दबे पड़े हैं ।
संयोग से हादसे की स्थान में जाने का मुझे मौका मिल गया था , गुणवत्ता विहीन निर्माण कार्य देखकर मैं हैरान और आश्चार्य चकित था , मजदुरों और कर्मचारियों के जीवन के साथ बालकों में जिस तरह से खिलवाड़ किया जा रहा हैं, उसे दिखकर और सुनकर मन हाहाकार कर उठता हैं --
मुझे याद हैं जब बालको का निजीकरण हो रहा था और मजदुरों ने 67 दिन का ऐतिहासिक आन्दोलन कर इसका विरोध किया ,परन्तु भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों ने मिलकर लाभ में चल रही बालको को मिटि्ट के मौल वेदान्ता समूह को दान में देकर ,पता नहीं अंग्रेजों के एक बहुराष्ट्रिय कंपनी को क्यों अनुग्रहित किया । लगभग पॉच हजार करोड़ की राष्ट्रिय सम्पत्ति को विनिवेश के नाम पर मात्र पॉच सौ करोड़ में देकर ,भष्ट्राचार का मिशाल कायम किया गया ,शर्म की बात हैं ....गद्दारी की चरम सीमा !!!!!
बालको का अर्थ भारत एल्युमिनिय कंपनी ,वेदान्ता समूह ने एल्युमिनियम कंपनी का ५१ प्रतिशत अधिग्रहरण करते हुए मालिक बन बैठा , बालको में एक केप्टिक विद्युत सयंत्र पहले से ही लगाहुआ होने के कारण विद्युत आपूर्ति में को कठिनाई नहीं होती थी ,वेदान्ता समूह ने देखा कि कोरबा में कोयला अधिक उत्पादन होता हैं अत: एल्युमिनियम के बहाने घुसपैठ करते हुए विद्युत संयत्र बनाने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
विद्युत संयत्र बनाने के लिए बालको का भूमि जिसे भुस्वामीओं ने एल्युमिनियम सयंत्र के लिए प्रदान किया था ,उसी भूमि में दो -दो विद्युत सयंत्र निर्माण करने का षडयंत्र यहॉं के शासन प्रशासन को उपकृत करके रचा ,हजारों एकड़ भुमि अवैध कब्जा करके ,हजारों हराभरा पेड़ों को रातों रात हत्या करते हुए जिस विकास बनाम विनाश का नंगा नाच कोरबा में शुरू किया गया, उसका मिशाल विरले ही देखने सुनने को मिलता हैं ।
चिमनी प्रकरण में बालको प्रबंधन ,अनिल अग्रवाल वेदान्ता समूह के आका जो इंग्लैण्ड में बैठे हुए हैं ,चीन के सिपको ,स्थानिय प्रशासन ,छत्तिसगढ शासन सभी दोषी हैं ,रमन सरकार मात्र जॉच का आदेश दे कर अपना कर्तव्य से बच नहीं सकते । छत्तिसगढ को बंजर और प्रदूषित करने में डा.रमन सिंह अपराधी के श्रेणी आ जाते हैं ।
सोमवार, 21 सितंबर 2009
सोना बिन सब सुन ----
सोना में आग लग गया हैं ,अब लगातार देश के सभी लोग देख रहे हैं किन्तु इसे बुझाने के लिए कोई सामने नहीं आ रहे हैं ,खाने पीने के सभी चीजों का तो क्या कहने ....सरकार में बैठे तिकड़ी तो इस मामले में झुठा नम्बर एक साबित हुए ,लगातार छ: साल का मेरे पास लेखा जोखा हैं ,महंगाई और शेयर बाजार पर इन तिकडियो ने कब कब झुठ बोल कर अपनी चमड़ी बचाई हैं ।
अभी मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने कहा कि छ: माह में मंदी का अन्त हो जाएगा ,यही महाशय ने एक बार कहा था कि तीन माह में महंगाई खत्म हो जायेगा ,तीन साल से अधिक होजाने के बाद भी न महंगाई खत्म हुई और न ही अन्य समस्या ।
एक बात अच्छी हो गई कि लोग धीरे -धीरे ही सही लोगों का भ्रम तिकडियो से टुटने लगी हैं ,अब नाम लेना तो अच्छा नहीं लगता पर बहुत लोगों को तिकड़ी का अर्थ मालूम नहीं हैं , तिकड़ी याने मनमोहन ,मोटेंक,और चिदम्बरम देश को बरबाद करने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते है 1
जमाखोरी ,भ्रष्ट्राचारी से ही तो अधिकांश नेताओं का पेट पलता हैं ,अभी कुछ नेताओं ने सादगी अपनाने का ढोंग रच रहे है। सौ चूहे खाकर बिल्ली चले हज को वाली कहावत चरितार्थ होने लगा हैं । नेताओं के हाथ में एक सूत्र लग गई हैं वह हैं भारतीय जनता सादगी पसन्द करती है ,आप लंगोट लगा कर या नागा साधु सा भेष बनाकर समाज सेवा में कूद जाईए ...देखिए फिर क्या मजा आता हैं ।
साधुओं के लिए रातों रात महल जैसे आश्रम तैयार हो जाता हैं, अब आप ऐश किजीए ।
मैंने शुरू किया था सोना में आग लगने की बात पर ,एक मानसीक कमजोरी इस देश में प्राचीन काल से रही है। अब कमजोरी कहे या शौक ,धन सम्पत्ति तो इस देश कमी थी नहीं ,अनेक बार लूटते रहने के बाद भी सोना-चॉदी का अभाव इस देश में कभी नहीं रहा हैं ।
विवाह आदी के समय गरीब से गरीब भी कुछ सोना लड़की और लड़के को देना अपना फर्ज समझते हैं ,यही मानसीकता को भाप कर जमाखोरों को मजा आ गया हैं ,सोना -चॉदी ,खाद्यान्न जैसे जमाखोरी करके कित्रिम महंगाइ बाजार में लाद कर अरबों का खेल इस देश में शुरू हो चुका हैं । अब तो चाहते हुए भी अधिक सोना विवाह आदी के समय देने की रिवाज ही खत्म हो रहा हैं सोना दान करने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह भी हैं कि यदि नव दम्पत्ति के सामने कभी आर्थिक विपत्ति हो तो सोना उस विपत्ति से उबारने का अच्छा माध्यम हो जाता हैं ।
एक सात्विक सोच को शोषण का माध्यम बनाया गया हैं ,सरकार समाज सब चुप हैं ,यह विचार करके कि सोना खाना नहीं हैं अत: इस पर ध्यान क्यों दिया जाए । पर बात ऐसी नहीं हैं ,सोना जीवन में अनेक सुरक्षा प्रदान करता हैं ,अत: इस कित्रिम महंगाइ के विरोध में हम सभी को एकत्रित हो कर जरूर लड़ना चाहिए ।
मैं तो सोचता हूँ कि सोना खरीदना बंद कर पोस्ट आफिस या बैंक की ओर नजरे दौड़ाना अच्छी बात हो सकती हैं । शेयर बाजार जैसे उतार चढाव वाली धंधा जुआरिओं को शोभा देता हैं । सभ्य मनुष्य इससे तो दूर ही रहना पसन्द करते हैं ,जिसे रात की नींद और सुख चैन खत्म करना हो ,रक्त चाप से ग्रसीत होना हो तो शेयर बाजार में चले जाए ,रातों रात करोड़पति ओर रातों रात खकपति दोनों का मजा लिया जा सकता हैं । करोड़पति बनने के जुनून परिवार को बरबाद कर देती हैं
सोना -चॉंदी तो भारत का जीवन रेखा हैं हम चाहे कुछ भी कहे पर सोना बीन सब सून वाली बात यहा लागू होता हैं । इसलिए सोना पर अंकुश लगाते हुए कित्रिम महंगाइ को राकना अति आवश्यक हैं ।
अभी मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने कहा कि छ: माह में मंदी का अन्त हो जाएगा ,यही महाशय ने एक बार कहा था कि तीन माह में महंगाई खत्म हो जायेगा ,तीन साल से अधिक होजाने के बाद भी न महंगाई खत्म हुई और न ही अन्य समस्या ।
एक बात अच्छी हो गई कि लोग धीरे -धीरे ही सही लोगों का भ्रम तिकडियो से टुटने लगी हैं ,अब नाम लेना तो अच्छा नहीं लगता पर बहुत लोगों को तिकड़ी का अर्थ मालूम नहीं हैं , तिकड़ी याने मनमोहन ,मोटेंक,और चिदम्बरम देश को बरबाद करने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते है 1
जमाखोरी ,भ्रष्ट्राचारी से ही तो अधिकांश नेताओं का पेट पलता हैं ,अभी कुछ नेताओं ने सादगी अपनाने का ढोंग रच रहे है। सौ चूहे खाकर बिल्ली चले हज को वाली कहावत चरितार्थ होने लगा हैं । नेताओं के हाथ में एक सूत्र लग गई हैं वह हैं भारतीय जनता सादगी पसन्द करती है ,आप लंगोट लगा कर या नागा साधु सा भेष बनाकर समाज सेवा में कूद जाईए ...देखिए फिर क्या मजा आता हैं ।
साधुओं के लिए रातों रात महल जैसे आश्रम तैयार हो जाता हैं, अब आप ऐश किजीए ।
मैंने शुरू किया था सोना में आग लगने की बात पर ,एक मानसीक कमजोरी इस देश में प्राचीन काल से रही है। अब कमजोरी कहे या शौक ,धन सम्पत्ति तो इस देश कमी थी नहीं ,अनेक बार लूटते रहने के बाद भी सोना-चॉदी का अभाव इस देश में कभी नहीं रहा हैं ।
विवाह आदी के समय गरीब से गरीब भी कुछ सोना लड़की और लड़के को देना अपना फर्ज समझते हैं ,यही मानसीकता को भाप कर जमाखोरों को मजा आ गया हैं ,सोना -चॉदी ,खाद्यान्न जैसे जमाखोरी करके कित्रिम महंगाइ बाजार में लाद कर अरबों का खेल इस देश में शुरू हो चुका हैं । अब तो चाहते हुए भी अधिक सोना विवाह आदी के समय देने की रिवाज ही खत्म हो रहा हैं सोना दान करने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह भी हैं कि यदि नव दम्पत्ति के सामने कभी आर्थिक विपत्ति हो तो सोना उस विपत्ति से उबारने का अच्छा माध्यम हो जाता हैं ।
एक सात्विक सोच को शोषण का माध्यम बनाया गया हैं ,सरकार समाज सब चुप हैं ,यह विचार करके कि सोना खाना नहीं हैं अत: इस पर ध्यान क्यों दिया जाए । पर बात ऐसी नहीं हैं ,सोना जीवन में अनेक सुरक्षा प्रदान करता हैं ,अत: इस कित्रिम महंगाइ के विरोध में हम सभी को एकत्रित हो कर जरूर लड़ना चाहिए ।
मैं तो सोचता हूँ कि सोना खरीदना बंद कर पोस्ट आफिस या बैंक की ओर नजरे दौड़ाना अच्छी बात हो सकती हैं । शेयर बाजार जैसे उतार चढाव वाली धंधा जुआरिओं को शोभा देता हैं । सभ्य मनुष्य इससे तो दूर ही रहना पसन्द करते हैं ,जिसे रात की नींद और सुख चैन खत्म करना हो ,रक्त चाप से ग्रसीत होना हो तो शेयर बाजार में चले जाए ,रातों रात करोड़पति ओर रातों रात खकपति दोनों का मजा लिया जा सकता हैं । करोड़पति बनने के जुनून परिवार को बरबाद कर देती हैं
सोना -चॉंदी तो भारत का जीवन रेखा हैं हम चाहे कुछ भी कहे पर सोना बीन सब सून वाली बात यहा लागू होता हैं । इसलिए सोना पर अंकुश लगाते हुए कित्रिम महंगाइ को राकना अति आवश्यक हैं ।
रविवार, 20 सितंबर 2009
जब भगवान मेरे सामने रोने लगे ----
दुनियॉं को बनाने ,सवॉरने वाले सर्वशक्तीमान भगवान को कुछ भी नाम से पुकारे ,पर पुकार तो एक ही स्थान में ही जाकर रूक जाता हैं ,जैसे पिता को पिताजी कहें,पापा कहें ,कहीं -कहीं भैया ही कहते हैं ,पिताश्री कहें ,फादर कहें या अन्य भाषाओं में कुछ भी कह ले पर पिताजी ही प्रतिक्रिया करते हैं । ईश्वर को भी अनेक नामों से पुकारने पर भी ईश्वर तक आवाज जरूर पहुंचता हैं । लेकिन मैंने कभी ईश्वर को रोता हुआ न सुना हैं, और न देखा हैं । परन्तु मेरे साथ तो आज कल कुछ अजीब -अजीब घटना घटने लगी है ।
कल ही भगवान मेरे सामने आकर रोने लग गए ,मैंने पूछा कि भगवान आप क्यों रो रहे हैं ? आपको तो कोई कष्ट रूला नहीं सकता , पल भर में सारे दु:ख -कष्टों को हरने वाले आप ...आज मेरे जैसे दो कौड़ी के आदमी के सामने रो रहे हैं !
मैंने कहा प्रभू यह तो मुझसे देखा नहीं जाता ,और विश्वास भी नहीं हो रहा हैं कि सत्य ही आप भगवान हैं ? मैंने जेब से रूमाल निकाला और ऑंखो को पोछने लगा और कहा भगवान यदि आप भगवान नहीं हैं, फिर भी मुझे आप के रोने से कष्ट हो रहा हैं,क्या मैं आपका कष्ट को दूर कर सकता हूँ ?
भगवान बोले राय ! तुमको पहले मुझ पर विश्वास करना होगा कि मैं भगवान ही हूँ ,इसके पश्चात ही मेरे दु:ख का कारण बताउंगा ।मैं तो आज बुरा फंश गया ,भगवान को मैंने कहा कि प्रभू ! मैं किसी के कहने पर कैसे विश्वास करू कि आप भगवान हैं ? आज तो नकली भगवान असली भगवान से अधिक सुन्दर और चमत्कारिक होते हैं ,भारत जैसे देश में तो आपके जैसे असली भगवान की आवश्यकता ही नहीं हैं ।
यहॉं तो एक नहीं हजारों भगवान हैं ,फिर आपके कहने से मैं आपको भगवान कैसे मानलूँ ? भगवान तो जैसे आगबबूला हो गए ,बोले राय मैं नराज होता हूँ , तो प्रलय हो जाता हैं--
परन्तु तुम्हारे सामने तो रो रहा था ,अब देखो मेरे विश्व रूप ......सचमुच भगवान ने मेरे सामने विश्वरूप दिखाया ,मैं रोमांचित हो रहा था और रूप देखकर भयभीत भी...
इतने में भगवान ने कहा बस आगे मेरे बारे में कुछ न लिखना.......
अब विश्वास हो गया कि नहीं ? मैं क्या कहूँ ,एका एक भगवान के चरणों में साष्टांग हो गया और बोला प्रभु मुझे क्षमा करना ,मैं तो अबोध हूँ , नराधाम हूँ ,द्वापर के अर्जुन को जो रूप आपने दिखाया था आज विश्व में मैं दूसरा हूँ , जिसको विश्व रूप का दर्शन हुआ हैं ।
मैंने कहा प्रभू अब तो आप जो भी बोलेंगे वही करूंगा ,जल्दी -जल्दी बताईए कि क्या करने से आपका रोना बंद होगा ? प्रभुबोले ...सुनो राय! अभी -अभी गणेश जी के पूजा के समय लोगों ने नदी नालों में इतनी कचरा भर दिया कि सालों तक देश के लाखों कल कारखाने से निकलने वाली मैले से अधिक है। अब दुर्गा पूजा के बाद नदियों का क्या हाल होगा वहीं सोच -सोच कर मैं रो रहा हूँ ।
दूनियॉं में जितनी प्राणी हैं उनके लिए शुद्ध जल तो क्या अशुद्ध पानी की व्यवस्था मैं कैसे कर पाउंगा, मेरे द्वारा बनाए गए सारे व्यावस्था तो मनुष्यों ने बिगाड़ दिया हैं ,जिसके कारण वर्षा भी समय से नहीं दे पा रहा हूँ ,जिस दूनियॉं को मैंने बनाया हैं उसी दुनियॉं को आखों के सामने बरबाद होते देखना पडेगा ? यह सब सोचता हुआ रो रहा हूँ । तुम जरा इस लोगों को समझाना कि दशहारा में मूर्तियों का विसर्जन नदी नालों में न करे उसके लिए अन्य व्यवस्था किया जा सकता हैं । भारत वर्ष में तो शरीर से आत्मा चले जाने के पश्चात दाह संस्कार और दफनाने का रिवाज हैं ,मूर्तियों को दोनों विधीयों से कोई एक विधी द्वारा शान्ति किया जा सकता है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो मैं प्राणीयों के लिए शुद्ध जल तो दूर अशुद्ध पानी भी व्यावस्था नहीं कर पाउंगा ......इतना कहते हुए प्रभु अंतर्ध्यान हो गए ,परन्तु रोने की आवाज आज भी हर रात को मेरे कान में गूंजता हैं ......पता नहीं प्रभु को कब तक रोना पड़ेगा ......................................
कल ही भगवान मेरे सामने आकर रोने लग गए ,मैंने पूछा कि भगवान आप क्यों रो रहे हैं ? आपको तो कोई कष्ट रूला नहीं सकता , पल भर में सारे दु:ख -कष्टों को हरने वाले आप ...आज मेरे जैसे दो कौड़ी के आदमी के सामने रो रहे हैं !
मैंने कहा प्रभू यह तो मुझसे देखा नहीं जाता ,और विश्वास भी नहीं हो रहा हैं कि सत्य ही आप भगवान हैं ? मैंने जेब से रूमाल निकाला और ऑंखो को पोछने लगा और कहा भगवान यदि आप भगवान नहीं हैं, फिर भी मुझे आप के रोने से कष्ट हो रहा हैं,क्या मैं आपका कष्ट को दूर कर सकता हूँ ?
भगवान बोले राय ! तुमको पहले मुझ पर विश्वास करना होगा कि मैं भगवान ही हूँ ,इसके पश्चात ही मेरे दु:ख का कारण बताउंगा ।मैं तो आज बुरा फंश गया ,भगवान को मैंने कहा कि प्रभू ! मैं किसी के कहने पर कैसे विश्वास करू कि आप भगवान हैं ? आज तो नकली भगवान असली भगवान से अधिक सुन्दर और चमत्कारिक होते हैं ,भारत जैसे देश में तो आपके जैसे असली भगवान की आवश्यकता ही नहीं हैं ।
यहॉं तो एक नहीं हजारों भगवान हैं ,फिर आपके कहने से मैं आपको भगवान कैसे मानलूँ ? भगवान तो जैसे आगबबूला हो गए ,बोले राय मैं नराज होता हूँ , तो प्रलय हो जाता हैं--
परन्तु तुम्हारे सामने तो रो रहा था ,अब देखो मेरे विश्व रूप ......सचमुच भगवान ने मेरे सामने विश्वरूप दिखाया ,मैं रोमांचित हो रहा था और रूप देखकर भयभीत भी...
इतने में भगवान ने कहा बस आगे मेरे बारे में कुछ न लिखना.......
अब विश्वास हो गया कि नहीं ? मैं क्या कहूँ ,एका एक भगवान के चरणों में साष्टांग हो गया और बोला प्रभु मुझे क्षमा करना ,मैं तो अबोध हूँ , नराधाम हूँ ,द्वापर के अर्जुन को जो रूप आपने दिखाया था आज विश्व में मैं दूसरा हूँ , जिसको विश्व रूप का दर्शन हुआ हैं ।
मैंने कहा प्रभू अब तो आप जो भी बोलेंगे वही करूंगा ,जल्दी -जल्दी बताईए कि क्या करने से आपका रोना बंद होगा ? प्रभुबोले ...सुनो राय! अभी -अभी गणेश जी के पूजा के समय लोगों ने नदी नालों में इतनी कचरा भर दिया कि सालों तक देश के लाखों कल कारखाने से निकलने वाली मैले से अधिक है। अब दुर्गा पूजा के बाद नदियों का क्या हाल होगा वहीं सोच -सोच कर मैं रो रहा हूँ ।
दूनियॉं में जितनी प्राणी हैं उनके लिए शुद्ध जल तो क्या अशुद्ध पानी की व्यवस्था मैं कैसे कर पाउंगा, मेरे द्वारा बनाए गए सारे व्यावस्था तो मनुष्यों ने बिगाड़ दिया हैं ,जिसके कारण वर्षा भी समय से नहीं दे पा रहा हूँ ,जिस दूनियॉं को मैंने बनाया हैं उसी दुनियॉं को आखों के सामने बरबाद होते देखना पडेगा ? यह सब सोचता हुआ रो रहा हूँ । तुम जरा इस लोगों को समझाना कि दशहारा में मूर्तियों का विसर्जन नदी नालों में न करे उसके लिए अन्य व्यवस्था किया जा सकता हैं । भारत वर्ष में तो शरीर से आत्मा चले जाने के पश्चात दाह संस्कार और दफनाने का रिवाज हैं ,मूर्तियों को दोनों विधीयों से कोई एक विधी द्वारा शान्ति किया जा सकता है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो मैं प्राणीयों के लिए शुद्ध जल तो दूर अशुद्ध पानी भी व्यावस्था नहीं कर पाउंगा ......इतना कहते हुए प्रभु अंतर्ध्यान हो गए ,परन्तु रोने की आवाज आज भी हर रात को मेरे कान में गूंजता हैं ......पता नहीं प्रभु को कब तक रोना पड़ेगा ......................................
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
रंजना जी ! राष्ट्रभाषा ओर राष्ट्रीयता दोनों समृद्धिशाली जरुरी हैं ---
अब रंजना जी से भी कुछ वार्तालाप करने की चाह हैं । आपने समीर जी के बारे में लिखने पर, कुछ खास अन्दाज में मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित कर दिया , एक बात तो साफ हैं कि भारत वर्ष
में हिन्दी के प्रति एक अलग ही मान सम्मान हैं ।
मैं समीर जी के टिप्पणी के लिए कतई नराज नहीं हूँ , ओर न ही समीर जी से असमत हूँ ,मुझे मात्र लकीर की बात पर भ्रम हो सकता हैं । यदि दूसरे से आगे बढना हो तो अपनी लकीर इतनी बढा दो, जिससे कि दूसरे की लकीर अपने आप बौना दिखने लगे,लकीर मिटाने की आवश्यकता नहीं हैं । अब इसी बात पर सारी बबाल खड़ी हो गई क्यूकि मैं लकीर मिटाने पर भी विश्वास करता हूँ ,समृद्धि के लिए लकीर मिटाने की खेल बहुत पुरानी हैं ।
बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती हैं ।
ज्ञान और भाषा में बहुत अन्तर हैं , अनेक भाषाओँ का ज्ञाता ,ज्ञानी होगा यह आवश्यक नहीं और ज्ञानी अनेक भाषाओँ का ज्ञाता होगा यह भी जरूरी नहीं हैं ।
यदि मूक ज्ञानी हो तो अनेक चमत्कारिक कार्य कर सकता हैं । जिस भाषा के कारण हमेशा गुलामी का अहसास होता हो , वह कितनी ही समृद्धशाली क्यों न हो उससे दूर रहना ही हितकर हैं । अब यदि गुंडों के हाथ में ए के 47 दे दिया जाए तो उसका उपयोग क्या होगा ? मुझे यदि मौका मिले तो मैं देश के सभी को अपनी -अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण के लिए प्रोत्साहित करूंगा । बच्चों को तो कतई अन्य भाषा से शिक्षा देना उचित नहीं हैं ।
सरलता से शिक्षा पाने का अधिकार बच्चों को हैं ,हम अन्य भाषाओँ को बचपन से उन पर लादते हैं, जिससे बच्चों का नैषार्गिक विकास रूक जाता हैं । वैज्ञानिक शोध से पता चला हैं कि अन्य भाषा से शिक्षा पाने वाले बच्चों को छ: गुणी अधिक मानसीक परिश्रम करना पड़ता हैं । एक बात और हैं कि हिन्दी इस देश के किसी की मातृ भाषा भी नहीं हैं ,परन्तु आज देश के प्राय: सभी हिन्दी समझते और बोलते भी हैं ।
देश के उ।प्र, बिहार ,में तो भोजपुरी, अंगिका , मागधी , मैथली आदी बोली जाती हैं, जिसे हिन्दी भाषी सरलता से समझ जाते हैं । हिन्दी एक सम्पर्क भाषा होने के कारण, मैं इसे गर्व के साथ अपनाने का निवेदन करता हूँ ।
आज गली -गली में जिस तरह कुकुर मुत्ते की तरह अंग्रेजी माध्यम के स्कुल खुलते जा रहे हैं और उसे चलाने वाले कोई बहुत विद्वान नहीं होते, वे तो मात्र देश के मानसीक गुलामी का फ़ायदा उठा कर शैक्षणिक व्यपार में लिप्त हैं, अत: ऐसे कुप्रयास का तो विरोध करना ही हैं , जो लकीर को मिटाने के समान होगा । इसी बात को मैं अपनी तरिके से निवेदन करना चाहता हूँ । बड़े होकर जिसे अंग्रेजी भाषी देश में जाना हो, वे अंग्रेजी सीखे ,जो चीन जाना चाहते हैं वे चाईनीज सीखे ,रूस जाने वाले रूसी सीखे ,अरब देश में अरबी सीख कर जाए, कोई मनाही नहीं है।
आपको बता दूँ कि मैं प्रतिक्रिया वादी नहीं हूँ ,दिल की गहराई से जो आवाज निकलती हैं उसे बाटंने का प्रयत्न करना चाहता हूँ ।
राष्ट्र को समृद्धिशाली बनाने के लिए ,राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीयता को समृद्धि बनाना आवश्यक हैं ।
में हिन्दी के प्रति एक अलग ही मान सम्मान हैं ।
मैं समीर जी के टिप्पणी के लिए कतई नराज नहीं हूँ , ओर न ही समीर जी से असमत हूँ ,मुझे मात्र लकीर की बात पर भ्रम हो सकता हैं । यदि दूसरे से आगे बढना हो तो अपनी लकीर इतनी बढा दो, जिससे कि दूसरे की लकीर अपने आप बौना दिखने लगे,लकीर मिटाने की आवश्यकता नहीं हैं । अब इसी बात पर सारी बबाल खड़ी हो गई क्यूकि मैं लकीर मिटाने पर भी विश्वास करता हूँ ,समृद्धि के लिए लकीर मिटाने की खेल बहुत पुरानी हैं ।
बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती हैं ।
ज्ञान और भाषा में बहुत अन्तर हैं , अनेक भाषाओँ का ज्ञाता ,ज्ञानी होगा यह आवश्यक नहीं और ज्ञानी अनेक भाषाओँ का ज्ञाता होगा यह भी जरूरी नहीं हैं ।
यदि मूक ज्ञानी हो तो अनेक चमत्कारिक कार्य कर सकता हैं । जिस भाषा के कारण हमेशा गुलामी का अहसास होता हो , वह कितनी ही समृद्धशाली क्यों न हो उससे दूर रहना ही हितकर हैं । अब यदि गुंडों के हाथ में ए के 47 दे दिया जाए तो उसका उपयोग क्या होगा ? मुझे यदि मौका मिले तो मैं देश के सभी को अपनी -अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण के लिए प्रोत्साहित करूंगा । बच्चों को तो कतई अन्य भाषा से शिक्षा देना उचित नहीं हैं ।
सरलता से शिक्षा पाने का अधिकार बच्चों को हैं ,हम अन्य भाषाओँ को बचपन से उन पर लादते हैं, जिससे बच्चों का नैषार्गिक विकास रूक जाता हैं । वैज्ञानिक शोध से पता चला हैं कि अन्य भाषा से शिक्षा पाने वाले बच्चों को छ: गुणी अधिक मानसीक परिश्रम करना पड़ता हैं । एक बात और हैं कि हिन्दी इस देश के किसी की मातृ भाषा भी नहीं हैं ,परन्तु आज देश के प्राय: सभी हिन्दी समझते और बोलते भी हैं ।
देश के उ।प्र, बिहार ,में तो भोजपुरी, अंगिका , मागधी , मैथली आदी बोली जाती हैं, जिसे हिन्दी भाषी सरलता से समझ जाते हैं । हिन्दी एक सम्पर्क भाषा होने के कारण, मैं इसे गर्व के साथ अपनाने का निवेदन करता हूँ ।
आज गली -गली में जिस तरह कुकुर मुत्ते की तरह अंग्रेजी माध्यम के स्कुल खुलते जा रहे हैं और उसे चलाने वाले कोई बहुत विद्वान नहीं होते, वे तो मात्र देश के मानसीक गुलामी का फ़ायदा उठा कर शैक्षणिक व्यपार में लिप्त हैं, अत: ऐसे कुप्रयास का तो विरोध करना ही हैं , जो लकीर को मिटाने के समान होगा । इसी बात को मैं अपनी तरिके से निवेदन करना चाहता हूँ । बड़े होकर जिसे अंग्रेजी भाषी देश में जाना हो, वे अंग्रेजी सीखे ,जो चीन जाना चाहते हैं वे चाईनीज सीखे ,रूस जाने वाले रूसी सीखे ,अरब देश में अरबी सीख कर जाए, कोई मनाही नहीं है।
आपको बता दूँ कि मैं प्रतिक्रिया वादी नहीं हूँ ,दिल की गहराई से जो आवाज निकलती हैं उसे बाटंने का प्रयत्न करना चाहता हूँ ।
राष्ट्र को समृद्धिशाली बनाने के लिए ,राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीयता को समृद्धि बनाना आवश्यक हैं ।
एक मिनट में एस.के.राय को बदल दिया---इसे कहते हैं हिन्दी का ताकत
परिवर्तण ही जीवन हैं ,दुनियॉं में हर वक्त कुछ न कुछ परिवर्तण होता ही रहता हैं ,होना भी चाहिए ,एक ही धारा में चलते -चलते थकान भी महशुस होता हैं 1 आज अंग्रेजी के बहाने मेरे अनेक मित्रों ने मुझे परिवर्तण कर दिया,अंग्रेजी एस.के.राय को हिन्दी राय बना दिया ,अब तो बहुत अच्छा लग रहा हैं ,जी.के. अवधिया जी ने भी इसमें बहुत मदद किया है ,समीर भाई का तो क्या कहने, आपने तो एक सरल तरीका ही टिप में डाल दिया 1
बार -बार सेटिंग में जाकर अंग्रेजी को हिन्दी में करना चाहा ,हर बार असफलता ..... अंकिता को बुला लिया ,अंकिता मेरी बेटी हैं । बोली जादु कर देती हूँ ,एक स्थान में एस.के.राय हिन्दी में लिख कर कॉपी -पेस्ट कर दी ,मैं जिसके लिए घन्टों परिश्रम कर रहा था ,एक मिनट में सचमुच जादु हो गया ...........अब ``मेरे विचार´´ लगता हैं समीर जी के शब्दों में एस.के.राय के विचार हो जाएगा ।
बार -बार सेटिंग में जाकर अंग्रेजी को हिन्दी में करना चाहा ,हर बार असफलता ..... अंकिता को बुला लिया ,अंकिता मेरी बेटी हैं । बोली जादु कर देती हूँ ,एक स्थान में एस.के.राय हिन्दी में लिख कर कॉपी -पेस्ट कर दी ,मैं जिसके लिए घन्टों परिश्रम कर रहा था ,एक मिनट में सचमुच जादु हो गया ...........अब ``मेरे विचार´´ लगता हैं समीर जी के शब्दों में एस.के.राय के विचार हो जाएगा ।
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
उड़न तश्तरी के समीर भाई ---आप तो मित्र हो ---
हिन्दी दिवस के स्थान पर अंग्रेजी की अर्थी दिवस पर जो विचार ब्लोग के माध्यम से मैंने लोगों तक पहुँचाने की कोशिस किया हैं उस पर अनेक टिका टिप्पणी के पश्चात मुझे लगता हैं कि हम सभी को हिन्दी के प्रति बहुत सम्मान हैं ,हो सकता हैं कि कुछ लोग किसी मजबुरी के लिए अंग्रेजी को सम्पर्क भाषा के रूप में इस्तेमाल करते हो ,पर समयानूकुल हिन्दी का ही पक्ष मजबुती से सामने रखना चाहते हैं ।
आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पनी भेजी हैं, जिसे मैंने कई बार पढा ,रोचक और ज्ञानवर्धक टिप्पणी के लिए ससम्मान धन्यवाद । टिप्पणी को प्रकाशित कर दिया गया हैं । विशेष रूप से महफूज अली जी के टिप्पणी तो गागर में सागर हैं ।
संगीता पुरी जी ने भी बहुत अच्छी बाते लिखी हैं ,हिन्दी सम्पन्न बने ,पर सकारात्मक सोच के साथ ,खुद बडा हो जाए तो सामने वाला छोटा होना तय हैं और अंग्रेजी ज्ञान का भण्डार हैं ,आदी ...जरा महाभारत काल को मनन करने की कोशिस करें तो सच्चाई पर चलने वाले पाण्डव के साथ क्या घटना घटती हैं और आखीर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लड़ाई करने का उपदेश दिया ,हम सच्चाई पर चलने पर भी कौरव पक्ष आज भी सक्रिय हैं अत: न चाहते हुए भी कौरव को सबक सिखाना अति आवश्यक हैं ।आप बडा होना चाहते हैं, पर आपका कद वर्तमान परिस्थिती के कारण छोटा कर दिया जाता हैं ,अत: परिस्थिती को अनुकुल करने के पश्चात ही कद बड़ा या छोटा प्राकृतिक नियमानुसार सम्भव हैं । काशिफ आरिफ जी ने तो मुझे प्रमाण पत्र ही दे दिया ,हिन्दी ही उत्तम ...
उडन तश्तरी और समीर जी ने प्रथम टिप्पणी न देखपाने की बाते लिखी हैं ,समीरजी !मैं कार्यक्षेत्र पर था ,आप देखिए मेरी अधिकांश आलेख रात की ही होगी ,रात में प्राय: सभी मेल और अन्य टिप्पनीयॉं देखने की कोशिस करता हूं, अत: आपको रात को ही पढ पाया ।
आलेख में मैंने हिन्दी को राष्ट्र भाषा होने के साथ ही साथ एक अच्छा सम्पर्क भाषा होने के लिए भाषा में सर्वोच्च स्थान पर रखने की कोशिस किया हैं । जैसे देश की राष्टीय ध्वज मात्र कपड़े की टुकड़े नहीं होती ,उसी तरह हिन्दी भी मात्र भाषा नहीं ,पर देश की प्राण हैं ।
अंग्रेज इस देश में मात्र राज करते तो शायद विशेष क्षती नहीं होती ,अंग्रेजों ने तो यहॉं के संस्कृति पर हमला किया हैं , शिक्षा पर हमला किया हैं ,जीवन के हर पहलूओं को नेस्तानाबुत किया हैं जोर जूल्म के साथ इस देश में गुरूकुल के स्थान पर कान्वेन्ट चालु किया हैं ,यहॉं जुल्म के साथ ईसाइ मत का प्रचार किया हैं । अंग्रेजी बहुत अच्छी भाषा , और भारत वर्ष की सभी भाषा तुच्छ हैं ,ऐसा प्रचार करना किसी भी तरह क्षम्य नहीं हैं ।
यदि गान्धीजी होते तो हो सकता था कि वे अंग्रेजों को क्षमा कर देते ,पर मैं किसी भी किंमत पर उन्हें क्षमा नहीं कर सकता हूँ । मैं अंग्रेज और अंग्रेजी को अलग नहीं कर सकता ,मैं अपराध और अपराधी को भी अलग नजर से नहीं देखता , यदि दोनों भीन्न होता तो न्यायालय अपराधी को कैद की सजा क्यों देते हैं ? अपराधी के मन से अपराध को निकालकर उस अप्रत्यक्ष अपराध बोध को कैद में क्यों नहीं डाल सकते ?
अंग्रेज दुनियॉं मे जहॉं -जहॉं गया ,वहॉं बरबादी को ही प्रोत्साहन दिया हैं, अत: अंग्रेज और अंग्रेजी क्षमायोग्य नहीं । अंग्रेजी धौस जमाने की भाषा हैं अत:, मुझे इस पर कोई सहानुभूती नहीं है।
समीरजी विचार तो विचार हैं ,दुनियॉं में सभी पहलुओं के लिए सभी का विचार एक जैसे हो ,कोई जरूरी हैं क्या ? आपने अपना काम किया ,मैंने मेरा काम किया हैं , विचार भिन्नता के कारण आज के नेताओं जैसे हम थोड़े ही लडेंगे ? आप तो मित्र हैं , तभी तो एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान होता हैं । खूब लिखिए और कोशिस करूंगा जवाब भी दे सकूँ । क्षमा वगैरा की कोई आवश्यकता नहीं ....................
प्रवीण शाह को भी धन्यवाद । एक बहुत अच्छी बात आपने लिखी हैं ,कि सबसे पहले एस.के.राय को अंग्रेजी से हटा कर हिन्दी किया जाए । मैंने भी अनेक बार कोशिस किया, पर हटता ही नहीं , यदि कोई टीप हो तो मुझे अवश्य बताने का कष्ट करें । देश में कानून की किताबे ,विज्ञान और अन्य किताबे भी अभी मिलने लगे हैं, यदि हम सभी बाजार में हिन्दी की मांग करें तो अधिकाधिक छपवाने का भी व्यवस्था करना ही पड़ेगा ।
आदरणीय पी.सी.गोदियाल जी ने बहुत ही अच्छी टिप्पनी भेजी हैं, जिसे मैंने कई बार पढा ,रोचक और ज्ञानवर्धक टिप्पणी के लिए ससम्मान धन्यवाद । टिप्पणी को प्रकाशित कर दिया गया हैं । विशेष रूप से महफूज अली जी के टिप्पणी तो गागर में सागर हैं ।
संगीता पुरी जी ने भी बहुत अच्छी बाते लिखी हैं ,हिन्दी सम्पन्न बने ,पर सकारात्मक सोच के साथ ,खुद बडा हो जाए तो सामने वाला छोटा होना तय हैं और अंग्रेजी ज्ञान का भण्डार हैं ,आदी ...जरा महाभारत काल को मनन करने की कोशिस करें तो सच्चाई पर चलने वाले पाण्डव के साथ क्या घटना घटती हैं और आखीर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लड़ाई करने का उपदेश दिया ,हम सच्चाई पर चलने पर भी कौरव पक्ष आज भी सक्रिय हैं अत: न चाहते हुए भी कौरव को सबक सिखाना अति आवश्यक हैं ।आप बडा होना चाहते हैं, पर आपका कद वर्तमान परिस्थिती के कारण छोटा कर दिया जाता हैं ,अत: परिस्थिती को अनुकुल करने के पश्चात ही कद बड़ा या छोटा प्राकृतिक नियमानुसार सम्भव हैं । काशिफ आरिफ जी ने तो मुझे प्रमाण पत्र ही दे दिया ,हिन्दी ही उत्तम ...
उडन तश्तरी और समीर जी ने प्रथम टिप्पणी न देखपाने की बाते लिखी हैं ,समीरजी !मैं कार्यक्षेत्र पर था ,आप देखिए मेरी अधिकांश आलेख रात की ही होगी ,रात में प्राय: सभी मेल और अन्य टिप्पनीयॉं देखने की कोशिस करता हूं, अत: आपको रात को ही पढ पाया ।
आलेख में मैंने हिन्दी को राष्ट्र भाषा होने के साथ ही साथ एक अच्छा सम्पर्क भाषा होने के लिए भाषा में सर्वोच्च स्थान पर रखने की कोशिस किया हैं । जैसे देश की राष्टीय ध्वज मात्र कपड़े की टुकड़े नहीं होती ,उसी तरह हिन्दी भी मात्र भाषा नहीं ,पर देश की प्राण हैं ।
अंग्रेज इस देश में मात्र राज करते तो शायद विशेष क्षती नहीं होती ,अंग्रेजों ने तो यहॉं के संस्कृति पर हमला किया हैं , शिक्षा पर हमला किया हैं ,जीवन के हर पहलूओं को नेस्तानाबुत किया हैं जोर जूल्म के साथ इस देश में गुरूकुल के स्थान पर कान्वेन्ट चालु किया हैं ,यहॉं जुल्म के साथ ईसाइ मत का प्रचार किया हैं । अंग्रेजी बहुत अच्छी भाषा , और भारत वर्ष की सभी भाषा तुच्छ हैं ,ऐसा प्रचार करना किसी भी तरह क्षम्य नहीं हैं ।
यदि गान्धीजी होते तो हो सकता था कि वे अंग्रेजों को क्षमा कर देते ,पर मैं किसी भी किंमत पर उन्हें क्षमा नहीं कर सकता हूँ । मैं अंग्रेज और अंग्रेजी को अलग नहीं कर सकता ,मैं अपराध और अपराधी को भी अलग नजर से नहीं देखता , यदि दोनों भीन्न होता तो न्यायालय अपराधी को कैद की सजा क्यों देते हैं ? अपराधी के मन से अपराध को निकालकर उस अप्रत्यक्ष अपराध बोध को कैद में क्यों नहीं डाल सकते ?
अंग्रेज दुनियॉं मे जहॉं -जहॉं गया ,वहॉं बरबादी को ही प्रोत्साहन दिया हैं, अत: अंग्रेज और अंग्रेजी क्षमायोग्य नहीं । अंग्रेजी धौस जमाने की भाषा हैं अत:, मुझे इस पर कोई सहानुभूती नहीं है।
समीरजी विचार तो विचार हैं ,दुनियॉं में सभी पहलुओं के लिए सभी का विचार एक जैसे हो ,कोई जरूरी हैं क्या ? आपने अपना काम किया ,मैंने मेरा काम किया हैं , विचार भिन्नता के कारण आज के नेताओं जैसे हम थोड़े ही लडेंगे ? आप तो मित्र हैं , तभी तो एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान होता हैं । खूब लिखिए और कोशिस करूंगा जवाब भी दे सकूँ । क्षमा वगैरा की कोई आवश्यकता नहीं ....................
प्रवीण शाह को भी धन्यवाद । एक बहुत अच्छी बात आपने लिखी हैं ,कि सबसे पहले एस.के.राय को अंग्रेजी से हटा कर हिन्दी किया जाए । मैंने भी अनेक बार कोशिस किया, पर हटता ही नहीं , यदि कोई टीप हो तो मुझे अवश्य बताने का कष्ट करें । देश में कानून की किताबे ,विज्ञान और अन्य किताबे भी अभी मिलने लगे हैं, यदि हम सभी बाजार में हिन्दी की मांग करें तो अधिकाधिक छपवाने का भी व्यवस्था करना ही पड़ेगा ।
उड़न तश्तरी के लाल जी को हिन्दी टिपण्णी पर सादुवाद ओर सुझाव---
जब से मैंने ब्लोग में लिखना शुरू किया किया हैं तब से किसी पर व्यक्तिगत रूप में कुछ भी आक्षेप नहीं लगाया हैं ,न ऐसा मंशा कभी था और न आज है। जब राष्ट्रहित और जनहित की बात आती हैं तो विपरीत टिप्पनी पर लिखना मजबूरी के साथ फर्ज भी हो जाता हैं ।
मैं उड़न तस्तरी के लालजी को बताना चाहता हूँ कि जब अंग्रेजों के साथ आजादी सम्बन्धी चर्चा चल रही थी तो डोमिनियन स्टैट के बारे में भी विकल्प के रूप बात चली ,आपको पता होगा कि गान्धी जी के डोमिनियन स्टैट पर हामी भरने के कारण ,अधिकांश लोगों ने उसका विरोध भी किया ,नेताजी ने तो यहॉं तक कहॉं कि आजादी का अर्थ पुर्नस्वराज हैं ,हम लेंगे तो पूरी लेंगे ,अधुरी बातों पर हमें विस्वास नहीं हैं । डोमिनियन स्टैट का अर्थ रक्षा ,विदेश - नीति सम्बन्धी सभी अधिकार अंग्रेजों के हाथ में होगी और हमें केवल आन्तरिक मामले में अधिकार प्राप्त होगा ।
हमने अंग्रेजों को मीटाकर ही स्वराज हासिल कर सकें हैं ,यदि गुलामी का दर्द आजादी के दीवानों को न होता तो शायद देश आजाद भी नहीं होता ,अंग्रेजी का मोह जब तक हमारे मानसिक पटल से साफ न हो जाए, तब तक कितने ही अच्छे शब्द जाल से लिखते हुए लोगों को रिझा ले ,अपने पक्ष में व्होट डलवा ले , उससे देश और समाज का भला नहीं हो सकता हैं ।
लाल जी ! आज भारतवर्ष में आप सर्वे करवा लें कि कितने भारत वासी अंग्रेजी समझते और बोल सकते हैं ? मुठि्ठ भर लोग अंग्रेजी के नशे में अपने आप को महान घोषित कर रखा हैं । यदि चीन बगैर अंग्रेजी के तरक्की कर सकता हैं ,फ्रांस ,रूस ,जपान,जर्मनी,क्या अंग्रेजी के बलबुते में विकास हुआ हैं ? वहॉं तो अंग्रेजी में बाते करने पर उसे जोकर की तरह देखते हैं ।
अंग्रेजी जैसे भिखारी भाषा तो दुनियॉं में हैं ही नहीं ,जहॉं आज भी पारिवारिक रिस्तों के लिए सम्बोधन शब्दों का अभाव हैं । दुनियॉ के सभी भाषाओँ से उधार लेकर अंग्रेजी काम चलाता हैं ,अत: हिन्दी अंग्रेजी से सम्पन्न भाषा हैं, इसे समृद्ध बनाने के लिए लकीर को छोटी करने की आवश्यकता नहीं हैं ,जो छोटी हैं उसे बडी साबित करने की मुझे आवश्यकता नहीं हैं ,मैं तो हिन्दी जैसे समृद्ध भाषा को शडयंत्र पूर्वक छोटी करने का जो प्रयास करता हैं उस पर आवाज उठाता रहूंगा ,जरूरत हैं मानसिक समृद्धि की ,जरूरत हैं राष्ट्रवाद पर चलते हुए विश्व की सोच रखने की ,हम अपने घर में विदेशीपन को पनाह देकर ,राष्ट्र और राष्ट्रिय भाषा की समृद्धि कभी नहीं कर सकते हैं ।
मैं उड़न तस्तरी के लालजी को बताना चाहता हूँ कि जब अंग्रेजों के साथ आजादी सम्बन्धी चर्चा चल रही थी तो डोमिनियन स्टैट के बारे में भी विकल्प के रूप बात चली ,आपको पता होगा कि गान्धी जी के डोमिनियन स्टैट पर हामी भरने के कारण ,अधिकांश लोगों ने उसका विरोध भी किया ,नेताजी ने तो यहॉं तक कहॉं कि आजादी का अर्थ पुर्नस्वराज हैं ,हम लेंगे तो पूरी लेंगे ,अधुरी बातों पर हमें विस्वास नहीं हैं । डोमिनियन स्टैट का अर्थ रक्षा ,विदेश - नीति सम्बन्धी सभी अधिकार अंग्रेजों के हाथ में होगी और हमें केवल आन्तरिक मामले में अधिकार प्राप्त होगा ।
हमने अंग्रेजों को मीटाकर ही स्वराज हासिल कर सकें हैं ,यदि गुलामी का दर्द आजादी के दीवानों को न होता तो शायद देश आजाद भी नहीं होता ,अंग्रेजी का मोह जब तक हमारे मानसिक पटल से साफ न हो जाए, तब तक कितने ही अच्छे शब्द जाल से लिखते हुए लोगों को रिझा ले ,अपने पक्ष में व्होट डलवा ले , उससे देश और समाज का भला नहीं हो सकता हैं ।
लाल जी ! आज भारतवर्ष में आप सर्वे करवा लें कि कितने भारत वासी अंग्रेजी समझते और बोल सकते हैं ? मुठि्ठ भर लोग अंग्रेजी के नशे में अपने आप को महान घोषित कर रखा हैं । यदि चीन बगैर अंग्रेजी के तरक्की कर सकता हैं ,फ्रांस ,रूस ,जपान,जर्मनी,क्या अंग्रेजी के बलबुते में विकास हुआ हैं ? वहॉं तो अंग्रेजी में बाते करने पर उसे जोकर की तरह देखते हैं ।
अंग्रेजी जैसे भिखारी भाषा तो दुनियॉं में हैं ही नहीं ,जहॉं आज भी पारिवारिक रिस्तों के लिए सम्बोधन शब्दों का अभाव हैं । दुनियॉ के सभी भाषाओँ से उधार लेकर अंग्रेजी काम चलाता हैं ,अत: हिन्दी अंग्रेजी से सम्पन्न भाषा हैं, इसे समृद्ध बनाने के लिए लकीर को छोटी करने की आवश्यकता नहीं हैं ,जो छोटी हैं उसे बडी साबित करने की मुझे आवश्यकता नहीं हैं ,मैं तो हिन्दी जैसे समृद्ध भाषा को शडयंत्र पूर्वक छोटी करने का जो प्रयास करता हैं उस पर आवाज उठाता रहूंगा ,जरूरत हैं मानसिक समृद्धि की ,जरूरत हैं राष्ट्रवाद पर चलते हुए विश्व की सोच रखने की ,हम अपने घर में विदेशीपन को पनाह देकर ,राष्ट्र और राष्ट्रिय भाषा की समृद्धि कभी नहीं कर सकते हैं ।
बुधवार, 16 सितंबर 2009
भूल जाइए हिन्दी दिवस ---
मैंने अंग्रेजी दिवस मनाते हुए आज तक न देखा और न सुना हैं ,हर वर्ष धुमधाम से हिन्दी दिवस मनाने का एक परम्परा इस देश में चल निकला हैं । मेरे मित्र ने अभी हिन्दी दिवस के दिन फोन पर सम्पर्क किया और कहा कि फ्रेन्ड हिन्दी डे मनाना है होटल .....में 10 ए एम को आना जरूरी हैं । मैंने दोस्त को कहा कि भाई मैं तो आज का दिन अंग्रेजी की अर्थि दिवस के रूप में मनाना चाहता हूँ , क्या ऐसा नहीं हो सकता ?
हिन्दी दिवस में अग्रेजी की अर्थि दिवस मनाने से एक खास समाचार जनता तक पहुँचेगी कि जब तक अंग्रेजी का अर्थि इस देश से न निकले तब तक हिन्दी का भला हो ही नहीं सकता हैं । एक ही बील में सॉंप और चूहा कैसे रह सकता हैं ? अब अंग्रेजी सॉंप हैं या चूहा यह तो हम सबको मिलकर सोचना होगा । हमारे देश में तो दोनों का पूजा होता हैं ,एक ओर नाग देवता, दूसरी ओर गणेश जी के वाहन । मुझे तो बस भावना से आगे हिन्दी का विकास चाहिए ।
स्वामी विवेकान्द ने तो सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी को ही विशेष स्थान दिया था ,यदि राष्ट्रभाषा के रूप में आज भी हिन्दी उपेक्षित हैं तो उसका एक मात्र कारण हैं कि हम अंग्रेजी का गुलाम बन चूके हैं ।
जिस तरह घर के प्रियजन के मौत होने के पश्चात यथाशीघ्र शव को परम्परानुसार क्रिया कर्म किया जाता हैं ,क्योंकि सभी को भय रहता हैं कि यदि सडन लग जाए तो रहना मुस्किल हो जाएगा । ठीक उसी प्रकार जिस दिन इस देश से अंग्रेज सत्ता की मौत हो चूकी थी उसी दिन से अंग्रेजी और अंग्रेजीयत की शव को दफन कफन कर देना चाहिए था । पर ऐसा नहीं हुआ ,अत: उस शव के सडन से दुर्गन्ध तो आना ही हैं ।
जितनी जल्दी हो सके अंग्रेजी की अर्थि उठाकर दफन कर दिया जाए ,नही तो बदबू से तमाम प्रकार के रोगों से हम मरते रहेंगे ।
प्रथमत: धनादेश पर हिन्दी में ही हस्ताक्षर करना शुरू किया जा सकता हैं । अक्षरों को हिन्दी में लिखना और वाक्यों में लिखना अपने आप में कान्तिकारी कदम हो सकता हैं । मैंने यह किया हैं ,अच्छा लगता हैं, आप भी यदि सचमुच हिन्दी का भला चाहते हैं तो अवश्य शुरू किजीए । यदि असुद्ध होने लगे तो भय की क्या बात हैं ? शुद्ध असुद्ध तो हमने तय किया हैं ,जब मरा -मरा जपते हुए रत्नाकर दस्यु वािल्मकी बनकर रामायण की रचना कर सकते हैं तो क्या असुद्ध लिखते लिखते शुद्ध नहीं हो जाएगा ?
बंगला भाषी होने पर भी मैंने हिन्दी में लिखना शुरू किया हैं ,असुद्ध लिखता हूँ ,पहले और आज के लेखन में मैंने स्वयं बहुत अन्तर देख रहा हूँ ,उन अंग्रेजों के औलादों से तो मैं ठीक कर रहा हूं न ?? छोटी छोटी शुरूआत समुद्र भी बनेगा ...अवश्य बनेगा....इसलिए हिन्दी दिवस भूल जाइए ..अंग्रेजी का अर्थि दिवस प्रारंभ....तो देर किस बात की ...
हिन्दी दिवस में अग्रेजी की अर्थि दिवस मनाने से एक खास समाचार जनता तक पहुँचेगी कि जब तक अंग्रेजी का अर्थि इस देश से न निकले तब तक हिन्दी का भला हो ही नहीं सकता हैं । एक ही बील में सॉंप और चूहा कैसे रह सकता हैं ? अब अंग्रेजी सॉंप हैं या चूहा यह तो हम सबको मिलकर सोचना होगा । हमारे देश में तो दोनों का पूजा होता हैं ,एक ओर नाग देवता, दूसरी ओर गणेश जी के वाहन । मुझे तो बस भावना से आगे हिन्दी का विकास चाहिए ।
स्वामी विवेकान्द ने तो सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी को ही विशेष स्थान दिया था ,यदि राष्ट्रभाषा के रूप में आज भी हिन्दी उपेक्षित हैं तो उसका एक मात्र कारण हैं कि हम अंग्रेजी का गुलाम बन चूके हैं ।
जिस तरह घर के प्रियजन के मौत होने के पश्चात यथाशीघ्र शव को परम्परानुसार क्रिया कर्म किया जाता हैं ,क्योंकि सभी को भय रहता हैं कि यदि सडन लग जाए तो रहना मुस्किल हो जाएगा । ठीक उसी प्रकार जिस दिन इस देश से अंग्रेज सत्ता की मौत हो चूकी थी उसी दिन से अंग्रेजी और अंग्रेजीयत की शव को दफन कफन कर देना चाहिए था । पर ऐसा नहीं हुआ ,अत: उस शव के सडन से दुर्गन्ध तो आना ही हैं ।
जितनी जल्दी हो सके अंग्रेजी की अर्थि उठाकर दफन कर दिया जाए ,नही तो बदबू से तमाम प्रकार के रोगों से हम मरते रहेंगे ।
प्रथमत: धनादेश पर हिन्दी में ही हस्ताक्षर करना शुरू किया जा सकता हैं । अक्षरों को हिन्दी में लिखना और वाक्यों में लिखना अपने आप में कान्तिकारी कदम हो सकता हैं । मैंने यह किया हैं ,अच्छा लगता हैं, आप भी यदि सचमुच हिन्दी का भला चाहते हैं तो अवश्य शुरू किजीए । यदि असुद्ध होने लगे तो भय की क्या बात हैं ? शुद्ध असुद्ध तो हमने तय किया हैं ,जब मरा -मरा जपते हुए रत्नाकर दस्यु वािल्मकी बनकर रामायण की रचना कर सकते हैं तो क्या असुद्ध लिखते लिखते शुद्ध नहीं हो जाएगा ?
बंगला भाषी होने पर भी मैंने हिन्दी में लिखना शुरू किया हैं ,असुद्ध लिखता हूँ ,पहले और आज के लेखन में मैंने स्वयं बहुत अन्तर देख रहा हूँ ,उन अंग्रेजों के औलादों से तो मैं ठीक कर रहा हूं न ?? छोटी छोटी शुरूआत समुद्र भी बनेगा ...अवश्य बनेगा....इसलिए हिन्दी दिवस भूल जाइए ..अंग्रेजी का अर्थि दिवस प्रारंभ....तो देर किस बात की ...
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